वाराणसी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है, आंवला नवमी को अक्षय नवमी, धात्री नवमी एवं कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है। इस वर्ष यह 21 नवंबर मंगलवार को है। इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान प्राप्ति और उनकी सलामती के लिए पूजा करती हैं। इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी चलन है।
कैसे उत्पन्न हुआ आंवला : जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जिंदगी नहीं थी, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। इस समय ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई।
आयुर्वेद और विज्ञान के अनुसार आंवला का महत्व : आचार्य चरक के मुताबिक आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल है। साथ ही विज्ञान के मुताबिक भी आंवला में विटामिन सी की बहुतायता होती है। जो कि इसे उबालने के बाद भी पूर्ण रूप से बना रहता है। यह आपके शरीर में कोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।
आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरूआत कैसे हुई : आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरूआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह् मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।
आंवला नवमी पूजा विधि : औरतें जल्दी उठ शुद्ध जल से स्नान कर आंवले के पेड़ की पूजा करती है। सुबह आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व की तरफ मुख करके “ॐ धात्रये नमः” मन्त्र से आह्वान करके षोडशोपचार पूजन किया जाता है, आँवले के वृक्ष में दूध चढ़ाया जाता हैं पूरी विधि के साथ पूजन किया जाता हैं। श्रृंगार का सामान एवम कपड़े किसी गरीब सुहागन अथवा ब्राह्मण पंडित जी को दान देते हैं। इस दिन दान का विशेष महत्व होता हैं गरीबो को अनाज अपनी इच्छानुसार दान देते हैं। सफ़ेद या लाल मौली के धागे से इसकी परिक्रमा करते है। औरतें अपने अनुसार 8 या 108 बार परिक्रमा करती है। इस परिक्रमा में 8 या 108 की भी चीज चढ़ाई जाती है। इसमें औरतें बिंदी, टॉफी, चूड़ी, मेहँदी, सिंदूर आदि कोई भी वस्तु का चुनाव करती है और इसे आंवला के पेड़ में चढ़ाती है।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी।
ज्योतिर्विद् वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो : 9993874848