अमिताभ अमित-mango people की कलम से…नाई हैं तो हम शरीफ़ों में गिने जाते है!

अमिताभ अमित, पटना । नाई हैं तो हम शरीफ़ों में गिने जाते है!
सोचिए वो न होते तो हमारा, इस मनुष्यता का; सभ्यता का क्या होता?
हम सर पर झाड़-झंखाड लिए फिरते!
सारे ही जटा-जूट धारी!
आज गली-गली मौजूद, तर-माल उड़ाते बाबाओं की हमसे अलग पहचान मुमकिन नहीं होती!
उनकी कद्र करता कौन?
बेतरतीब दाढ़ी-मूँछें हमारे चेहरे पर राज करती!
महिलाओं के लिए अपने प्रेमी की शकल देखना मुहाल हो जाता! जैसे रणवीर वैसा ही नवाजुद्दीन!
सब एक जैसे भूत!
लंफगो के लिए आसानी होती! कोई भी किसी के घर घुस कर आसानी से बाहर निकल सकता था!

दरअसल बाल कभी बढ़ना बंद करते नही!
यदि उन्हें काटा न जाए, बेरोकटोक बढ़ने दिया जाए तो वो बढ़कर मुँह तक चले आ सकते हैं! वे बढ़ कर आपके कानों में घुस सकते हैं! फिर हर जगह बस वो ही होगे और फिर आप यह तय नहीं कर पाएँगे कि आपकी आँखें कहाँ है और नाक कहाँ है?

बढ़े बाल मेहमानों की उन बिगड़ी औलादों की तरह पेश आते हैं, वो जो आपके महँगे सोफ़े पर कूदते हैं; खाना फैलाते हैं और आपके सजे-संवरे ड्राइंग रूम की बैंड बजा देते है! ज़ाहिर है ऐसे में आप हेयर कटिंग सैलून की तरफ़ रूख करते है और वहाँ मौजूद कोई नाई आपको एक बार फिर सलीकेदार इंसान में बदल देता है! भगवान का शुक्र है उसने नाई बनाए! उसका मनुष्यता के प्रति सबसे बड़े उपहार है वे और उनकी कद्र की ही जानी चाहिए!

नाईयों की कद्र की भी गई! एक वक्त था हमारे यहाँ के ब्याह, बिना नाईयों के दखल के तय ही नहीं होते थे! लड़का-लड़की दोनों पक्षों से एक दूसरे की तारीफ़ों के पुल बांधता था, वो भरोसेमंद था! गाँव-परिवार का सम्मानित सदस्य था! ब्याह तो तय करवाता ही था वो, न्योते बाँटने का ज़िम्मा भी उसी के सर था! हमारे बाप-दादाओं के घर बसे नाईयों की वजह से! ऐसे में मेरे मन में उनके लिए श्रद्धा का भाव स्वभाविक रूप से है!

अमिताभ अमित : व्यंगकार

नाईयों की दुकान आजकल जैसी तो होती नही थी तब! उसके पास होती थी एक टीन की पेटी, पेटी में होती थी एक दो तरह की कैंचियाँ, उस्तरा, ब्लेड्स, कंघियाँ, फिटकिरी, नारियल के तेल की शीशी और कुछ सस्ते क़िस्म के खिजाब! वो बुलाने पर घर आता था, बाल काटता था आपके; जितने चाहे उतने काटता था! वह ही तय करता था कि बाल कितने बढ़ गए हैं और कितने और कैसे काटे जाना है ! बाल काटने के बाद वो आपकी मालिश करने के लिए, बाल रंगने के लिए भी प्रस्तुत बना रहता था! बाल काटते वक्त वो लगातार बोलता था! वो पुराने जमाने का अखबार था, उसे सब पता होता था!

वो दुनिया की आपसे और आपकी दुनिया से बता सकता था! वह करता था ऐसा, उसे ऐसा करने से रोकना; उसकी कहीं किसी बात का बुरा मानना मना था! आप बुरा मान कर कर भी क्या सकते थे उसका! अमूमन नाईयों का एक ही घर होता था गाँव में और उससे नाराज़गी जताना, उसे नाराज़ कर लेना आपके बाल बढ़ाए बाबा बैरागी होने, असामाजिक हो जाने जितना बड़ा ख़तरा था! इसके बदले उसे मिलता क्या था, कुछ रूपये! थोड़ा से अनाज चचा, बाबू, भैया जैसे संबोधन और ख़ूब सारी इज्जत! वो इतने भर से खुश रहता था और आपको एक सलीकेमंद इंसान में तब्दील कर देता था!

फिर वक्त बदला! गाँव-क़स्बों में और क़स्बे शहरों में बदले! आबादी बढ़ी, नाई भी बढ़े; उनकी दुकानें हुईं! दुकानों का नाम सेलून हो गया!
वे रूखे और महँगे हुए और उन्होंने बाल काटने के ऐसे-ऐसे तरीक़े ईजाद किए जो आपकी जेब काटने जैसे ख़तरनाक थे! ज़ाहिर है पैसा आया और पैसों के लालच मे वो भी नाई हुए जिनके बाप-दादाओं ने कभी कैंची को हाथ भी नहीं लगाया था!
हाल के दिनों की खबर है अब मुकेश अंबानी भी नाई होना चाहते है! उन्होंने पहले भी सैकड़ों दफ़ा बताया है हमें कि वो जो चाहे कर सकते है और ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता! उन्हें रोका भी नहीं जाना चाहिए! काटने का पर्याप्त अनुभव है ही उन्हें! नाई सदियों से हमें भद्र बनाते आए हैं हमें! अब अंबानी यह ज़िम्मेदारी उठाना चाहते है, उनका स्वागत है! उनकी इज्जत हम पहले भी करते थे! ज़ाहिर है अब और ज़्यादा करेंगे!!
अमिताभ अमित – mango people

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

6 − one =