एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, महिलाएं मस्जिदों में पढ़ सकती हैं नमाज

लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि मस्जिदों में नमाज अदा करने के लिए महिलाओं को प्रवेश की अनुमति है। बोर्ड ने एक बयान में कहा कि महिलाओं व पुरुषों को एक ही कतार में नमाज अदा करना इस्लाम के अनुरूप नहीं है, इसलिए यदि संभव हो तो मस्जिद प्रशासन को मस्जिद के परिसर के भीतर दोनों के लिए अलग कतार की व्यवस्था करनी चाहिए। बोर्ड ने कहा, इस्लाम के धार्मिक ग्रंथों में नमाज अदा करने के लिए महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति है।

बोर्ड ने मुस्लिम समुदाय से यह भी अपील की कि जहां भी नई मस्जिदें बनाई जाएं, महिलाओं के लिए उपयुक्त जगह की भी व्यवस्था की जाए। मस्जिदों में नमाज अदा करने के लिए मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश से संबंधित याचिका पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की। फरहा अनवर हुसैन शेख ने 2020 में शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि भारत में मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी अवैध और असंवैधानिक है।

महिलाओं को भी नमाज के लिए मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति दी जाए। मामले में शीर्ष अदालत द्वारा मार्च में सुनवाई किए जाने की संभावना है। बोर्ड ने यह भी कहा कि एक मुस्लिम महिला नमाज के लिए मस्जिद में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र है और यह उसका विकल्प है कि वह मस्जिद में नमाज के लिए उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाने के अपने अधिकार का प्रयोग करे।

बोर्ड ने कोर्ट में पेश हलफनामे में कहा कि याचिका में उठाए गए प्रश्न राज्य की कार्रवाई की पृष्ठभूमि में नहीं हैं। पूजा स्थलों में धर्म की प्रथाएं निजी हैं जो ‘मुत्तवलिस’ द्वारा विनियमित होती है। हलफनामे में कहा गया है कि एआईएमपीएलबी बगैर राज्य के हस्तक्षेप के एक विशेषज्ञ निकाय होने के नाते इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर सलाह दे सकता है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि एआईएमपीएलबी और शीर्ष अदालत एक धार्मिक स्थान की व्यवस्था के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, जो धर्म में विश्वास करने वालों की धार्मिक प्रथाओं के लिए पूरी तरह से निजी तौर मामला है।
हलफनामे में कहा गया है कि इस्लाम ने मुस्लिम महिलाओं पर जमावड़े में रोजाना पांच वक्त की नमाज में शामिल होना अनिवार्य नहीं किया है और न ही महिलाओं के लिए साप्ताहिक शुक्रवार की नमाज सामूहिक रूप से पढ़ना अनिवार्य है, हालांकि मुस्लिम पुरुषों के लिए ऐसा करना जरूरी है।

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