बंगाल सरकार ‘लक्ष्मी भंडार’ योजना शुरू करने के बाद अन्य योजनाओं के वित्तपोषण को लेकर असमंजस में

कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार महिलाओं के लिए महत्वाकांक्षी ‘लक्ष्मी भंडार’ कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से अपनी विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण को लेकर असमंजस में है। राज्य सचिवालय के एक सूत्र ने यह जानकारी दी। ‘लक्ष्मी भंडार’ योजना, जिसमें सालाना लगभग 18,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे, का उद्देश्य परिवारों की महिला मुखियाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

इस कार्यक्रम के तहत, राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों की महिला प्रमुखों को प्रति माह 1,000 रुपये और सामान्य वर्ग से संबंधित लोगों को 500 रुपये प्रति माह प्रदान करने का वादा किया है। एक सूत्र ने बताया, ‘‘लक्ष्मी भंडार के शुरू होने के बाद अन्य सामाजिक योजनाओं के प्रबंधन में वित्तीय संकट प्रतीत होता है। राज्य सरकार की योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र के इसी तरह के कार्यक्रमों से सहायता लेने सहित विकल्प तलाशे जा रहे हैं… हालांकि, अभी तक कुछ भी तय नहीं किया गया है।’’

सूत्र ने कहा, ‘‘पिछले साल, कोविड-19 महामारी के कारण राज्य का राजस्व बुरी तरह प्रभावित हुआ था। स्थिति में सुधार हुआ है, और सरकार ने ‘लक्ष्मी भंडार’ के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन जुटाया है।’’ वित्त वर्ष 2021-22 के राज्य के बजट में 60,864 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया गया था। राज्य सरकार के अधिकारियों के एक वर्ग ने सहायता का एक हिस्सा केन्द्रीय योजनाओं से प्राप्त होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीरें संलग्न किये जाने को लेकर आशंका व्यक्त की है।

ममता बनर्जी सरकार राज्य में लागू होने वाले केंद्रीय कार्यक्रमों के लिए मोदी की तस्वीरों का उपयोग करने से हिचक रही है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री दीपांकर दासगुप्ता ने कल्याणकारी कार्यक्रमों की शुरुआत के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की सराहना की, लेकिन आश्चर्य जताया कि महामारी के बाद के आर्थिक संकट के मद्देनजर इन्हें कैसे बनाए रखा जा सकेगा। ‘

ऐसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को चलाने के लिए, आपके पास एक अच्छा वित्तीय समर्थन होना चाहिए। राज्य सरकार ने अब तक सराहनीय काम किया है।’’हालांकि, मुझे नहीं पता कि कोविड-19 के कारण दो साल के आर्थिक संकट के बाद, इन्हें चालू रखने के लिए पैसा कहां से आएगा। कार्यक्रमों को बनाए रखना मुश्किल होगा।’’

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