पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
पड़े कुदृष्टि मुझ पर जिसका,
हाथ काट कर घर ले आऊं।
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
हर जगह घूम रहे दरिंदे,
अनुनय-विनय ना सुनें ये बंदे।
सर पकड़ कर सर कलम कर दूं,
ये कला मुझे सिखलाओ।
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
आपने तो बस कलम पकड़ाया,
पराजय का इतिहास पढ़ाया।
दुर्गा-काली का स्मरण करके,
इतिहास को मैं दोहराऊं।
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
नहीं हूं अबला, हूं भारत की सबला,
रणक्षेत्र में पापा भेजकर देखो।
दुश्मनों के सीने पर चढ़कर,
खंजर को सैकड़ों बार चलाऊं।
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
आपने शांति का पाठ पढ़ाया,
नारी अबला है, यही सिखलाया।
अगर छेड़े कोई रास्ते में,
तो सीधे घर मैं आ जाऊं।
मम्मी कहती, नहीं झगड़ना,
नारी हूं, लज्जा है मेरा गहना।
आगे आए कोई छेड़ने तो,
क्या प्रेम गीत उसे सुनाऊं?
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
पापा, अब बहुत हो गया,
जहां लोगों का जमीर सो गया।
ऐसे में सब इज्जत-आबरू,
दरिंदा सब धोकर ले गया।
जीने का अब एक ही रास्ता,
मत देना अबला का वास्ता।
बनूं वीरांगना भारत मां की,
ऐसा मंत्र बतलाओ।
पापा! मुझे खड्ग धरा दो,
इज्जत से मैं रह पाऊं।
अनुराधा वर्मा “अनु”
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