डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया* अपना सत्ता पक्ष है, राजनीति में दक्ष। किन्तु सामने लक्ष्य से, भटका हुआ विपक्ष।।

“कुरूक्षेत्र” मेरी नजर से द्वितीय भाग (कविता) : प्रमोद तिवारी

 कुरूक्षेत्रः मेरी नजर से द्वितीय भाग अनादि आज विफल क्यों? कुपात्र पात्र हो गया !

किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं (ग़ज़ल) : डॉ लोक सेतिया “तनहा” 

किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं  जो

“कनिया” (भोजपुरी कविता) : हृषीकेश चतुर्वेदी

“कनिया” झाँकि के झरोखा से पुरुआ झरकि आवे, बाँस-बँसवारी चोंइ-चोंइ चीखे चौंकि के। —————————————- अंगना

डीपी सिंह की कुण्डलिया

खेती के भी मायने, बदल गए श्रीमान। पहले केवल अन्न की, खेती करे किसान।। खेती

माहेश्वरी पुस्तकालय, कोलकाता में सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन संपन्न

कोलकाता : माहेश्वरी पुस्तकालय, बड़ाबाजार, कोलकाता में 5 फरवरी शुक्रवार को एक सरस काव्य गोष्ठी

बौद्धिक परिसंवाद : काश! आज ‘गांधी’ होते

बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा साहित्यिक मंच ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान में 30 जनवरी एक

डीपी सिंह की कुण्डलिया

बिचौलिए किसान में, बबूल ज्यों पलाश में शरीर भारतीय हैं, जमीर शत्रु पाश में जमीन

मेरी तन्हाई है (गजल) : पारो शैवलिनी

मेरी तन्हाई है हर तरफ गम ही गम रुसवाई ही रुसवाई है। तेरी यादें हैं,

डीपी सिंह की कुण्डलिया

अन्ना! छल कर देश को, किया आप ने पाप। दिल्ली, दिल में देश के, पैदा