भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि बनाम जीवनयापी संसाधनों की स्थिति

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि, वार्षिक विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2024 जारी
भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ती दर के अनुपात में जीवनयापी संसाधनों की स्थिति को रेखांकित करना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत की जनसंख्या चीन को पछाड़ते हुए 142 करोड़ के ऊपर जाकर विश्व की नंबर वन जनसंख्या वाला देश भारत बन गया है। यह हमें पिछली बार 2023, में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में पता चल गया था परंतु दिनांक 17 अप्रैल 2024 को जारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि वार्षिक विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट ने मुझे हैरान कर दिया है, क्योंकि इसमें बताया गया है कि भारत की जनसंख्या अभी 144.17 करोड़ हो चुकी है और आने वाले 77 वर्षों में यह इसकी दोगुना हो जाएगी। जिसमें अनेक रेश्यो भी दिए हैं कि किस क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि के कैसे प्रभाव पड़े हैं जैसे उम्र लेवल पर जनसंख्या, महिलाओं की जनसंख्या लेवल पर स्थित, मातृ मृत्यु में असमानता महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ तथा प्रसव के दौरान रोज 800 महिलाओं की मृत्यु सहित 2006-2023 के बीच 23 प्रतिशत बाल विवाह सहित अनेको विश्लेषण दिए हैं। परंतु इस बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर मेरा मानना है कि इसके कंपनसेशन में जीवनयापी संसाधनों की क्या स्थिति है, बढ़ती बेरोजगारी को मिटाने का क्या प्लान है, जीवो को रहने के संबंध में कैसा प्रबंध प्रपोज्ड है जैसे अनेक मुद्दों पर गहन चर्चा कर नीति आयोग द्वारा नीति निर्माण करना होगा। क्योंकि मानव निर्मित संसाधनों को हम उपलब्ध करा सकते हैं, परंतु जब संसाधन कुदरत रचित हैं जैसे हवा पानी धरती के रूप स्थान के लिए तथा अनाज सहित अनेक ऐसी खाद्य वस्तु है जो सृष्टि द्वारा रचित है या कुदरत की देन है, इनमें हम कैसे इजाफा करेंगे ताकि जनसंख्या वृद्धि का संतुलन समय पर हम कर सकें क्योंकि भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि दर के अनुपात में जीवनयापी संसाधनों की स्थिति को रेखांकित करना समय की मांग है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि बनाम जीवनयापी संसाधनों की स्थिति।

साथियों बात अगर हम भारत में जनसंख्या के बढ़ते आंकड़े की करें तो, भारत में आखिरी जनगणना 2011 में की गई थी, उस वक्त भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा आबादी वाला देश था और देश की जनसंख्या 121 करोड़ थी। भारत की ताजा जनसंख्या पर यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) ने रिपोर्ट जारी की है, जिसके मुताबिक भारत दुनियां का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है। भारत की पॉपुलेशन 144 करोड़ से अधिक हो गई है, इसमें 24 फीसदी आबादी 0 से 14 साल से कम उम्र की है। इस रिपोर्ट में ये भी अनुमान लगाया गया है कि भारत की आबादी आने वाले 77 सालों में दोगुनी हो जाएगी। रिपोर्ट में जनसंख्या के साथ-साथ नवजात बच्चों की मौत, महिलाओं और एलजीबीटीक्यू की स्थिति आदी के बारे में भी डेटा दिया गया है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत में मातृ मृत्यु में काफी भारी गिरावट आई है।

साथियों बात अगर हम जनसंख्या के बायफरकेशन की करें तो, रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 144.17 करोड़ आबादी में 24 फीसदी आबादी 0-14 साल की है,जबकि 17फीसदी आबादी 10-19 साल के अंदर है। इतना ही नहीं, 10-24 साल वाले भी भारत में 26 फीसदी हैं, जबकि 15-64 आयु वर्ग के सबसे ज्यादा 68 फीसदी हैं। इसके अलावा भारत की 7 फीसदी जनसंख्या 65 साल और उससे ज्यादा उम्र की है, जिसमें पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 71 साल और महिलाओं की 74 साल है। मातृ मृत्यु पर भारत की सराहना रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मातृ मृत्यु दर में काफी गिरावट आई है, जोकि दुनिया भर में ऐसी सभी मौतें का 8 फीसदी है।भारत में इस सफलता का क्रेडिट सरकार के सस्ती और अच्छी स्वास्थ सेवाओं को जनता तक पहुंचाना और लैंगिक भेदभाव को कम करने के प्रायासों को दिया है। पीएलओएस की ग्लोबल पब्लिक हेल्थ रिपोर्ट का हवाला देते हुए यूएनएफपीए ने कहा कि सर्वे में पता चला है कि भारत के 640 जिलों में एक तिहाई जिलों ने मातृ मृत्यु कम करने के लिए सतत विकास लक्ष्य हासिल कर लिया है। बता दें भारत सरकार द्वारा नवजात की मृत्यु दर को कम करने और शिशुओं और माओं को पौष्टिक आहार मुहैया कराने के लिए कई स्कीम चलाई जा रही हैं। इसके अलावा अच्छे और सस्ते स्वास्थ ने भी जनसंख्या बढ़ोत्तरी में अहम किरदार निभाया है। देश में महज 7 फीसदी आबादी 65 वर्ष या इससे अधिक उम्र की है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (यूएनपीएफ) की तरफ से वार्षिक विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैं, जिसकी वजह से मातृ मृत्यु दर में कमी आई है और जीवन प्रत्याशा बढ़ी है।देश की आबादी में महज 7 फीसदी 65 साल या इससे अधिक उम्र के लोग हैं। देश में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेंटेसी) बढ़कर 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष हो गई है। 77 वर्ष बाद 2101 तक भारत की आबादी बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। रिपोर्ट में भारत में जनसंख्या बढ़ने के पीछे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार व जीवन प्रत्याशा में वृद्धि है। रिपोर्ट में गर्भवती व प्रसूताओं को पौष्टिक आहार मुहैया कराने को लेकर चलाई जा रहीं योजनाओं की भी प्रशंसा की गई है। यह भी बताया गया है कि 2006-2023 तक भारत में बाल विवाह की दर 23 फीसदी रही, जो अत्यंत चिंताजनक है।

साथियों बात अगर हम जनसंख्या के उपलब्ध आंकड़ों में महिलाओं का विश्लेषण करें तो, रिपोर्ट के मुताबिक देश के 640 जिलों में सतत विकास लक्ष्यों के मुताबिक मातृ मृत्यु दर का अनुपात एक लाख़ पर 70 या इससे कम है लेकिन 114 जिले ऐसे हैं, जहां यह अनुपात 1 लाख पर 210 या इससे ज्यादा है। अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले में यह सबसे ज्यादा एक लाख पर 1,671 है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लैंगिक भेदभाव कम हुआ है। हालांकि, दिव्यांग महिलाओं को सामान्य महिलाओं की तुलना में 10 गुना ज्यादा लैंगिक भेदभाव और हिंसा का शिकार होना पड़ता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के धनी परिवारों की महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का ज्यादा लाभ मिला। इसके अलावा विकलांग महिलाएं, लड़कियां, प्रवासी, शरणार्थी, जातीय अल्पसंख्यकों, एलजीबीटीक्यू प्लस, एचआईवी पीड़ित व वंचित जातियों को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य जोखिमों का अधिक सामना करना पड़ता है। कमजोर तबकों की स्थिति को जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर प्रवासन जैसी परिस्थितियों ने और खराब किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लाखों महिलाएं और लड़कियों को अब भी कई मायनों में आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। मसलन, एक चौथाई महिलाएं अपने साथी के साथ यौन संबंध बनाने से इन्कार नहीं कर सकती हैं। 10 में से एक महिला गर्भनिरोधक के बारे में कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं है। यूएनएफपीए की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में सेक्सुअल और रिप्रोडक्टिव हैल्थ 30 सालों के सबसे बेहतर स्तर पर है। यही कारण है कि डिलीवरी के दौरान होने वाली मौतों की संख्या में भी गिरावट आई है। दुनिया में हो रही ऐसी मौतों में भारत का हिस्सा आठ फीसदी है। रिपोर्ट में वैश्विक रूप से महिलाओं की यौन स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा गया है कि लाखों महिलाएं और लड़कियां अभी प्रमुख स्वास्थ्य उपायों से वंचित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि डाटा वाले 40 फीसदी देशों में महिलाएं शारीरिक संबंधों का फैसले लेने में पुरुषों से पीछे हैं।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि बनाम जीवनयापी संसाधनों की स्थिति संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि, वार्षिक विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2024 जारी।भारतीय जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ती दर के अनुपात में जीवनयापी संसाधनों की स्थिति को रेखांकित करना समय की मांग है।

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