नई दिल्ली। महाराजा अग्रसेन टेक्निकल एजुकेशन सोसाइटी ने नव संवत्सर विक्रम संवत 2081 का स्वागत वैदिक हवन रीति समारोह के साथ के किया। अपने संवत्सर विक्रम संवत पर गर्व करें क्योंकि सबसे बड़ी विशेषता है सबसे सबसे प्राचीन और सबसे प्रमाणिक संवत्सर विक्रम संवत है, जिसकी काल गणना पूरे विश्व में मानी जाती है, विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। डॉ. नंद किशोर गर्ग, संस्थापक और मुख्य सलाहकार, महाराजा अग्रसेन टेक्निकल एजुकेशन सोसाइटी।
महाराजा अग्रसेन टेक्निकल एजुकेशन सोसाइटी (मेट्स) ने मंगलवार, 09 अप्रैल 2024 को उत्साह और उमंग के साथ विक्रम संवत 2081 की शुभ शुरुआत की। समग्र शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए मशहूर संस्था ने महाराजा अग्रसेन परिसर के भीतर यज्ञशाला में एक पारंपरिक हवन समारोह का आयोजन किया।
इस अवसर पर संस्था के संस्थापक और मुख्य सलाहकार, डॉ. नंद किशोर गर्ग ने सभा को संबोधित किया। अपने संवत्सर विक्रम संवत पर गर्व करें क्योंकि सबसे बड़ी विशेषता है सबसे सबसे प्राचीन और सबसे प्रमाणिक संवत्सर विक्रम संवत है, जिसकी काल गणना पूरे विश्व में मानी जाती है , विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है।
उन्होंने देशभर में इस शुभ त्योहार को मनाए जाने के विविध तरीकों पर प्रकाश डालते हुए, नवरात्रि के महत्व पर अपनी गहन अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने चैत्र नवरात्रि, उगादि, गुड़ी पड़वा और अन्य क्षेत्रीय विविधताओं के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया और इस बात पर जोर दिया कि कैसे ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, वसंत की शुरुआत और नई शुरुआत का प्रतीक हैं। डॉ. गर्ग ने साल में चार बार मनाए जाने वाले नवरात्रि के अनूठे पहलू पर प्रकाश डाला, जिसे चैत्र नवरात्रि, माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य की जीत के बाद जब उनका राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने अपनी प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने की घोषणा करने के साथ ही भारतीय कैलेंडर को जारी किया इसे विक्रम संवत नाम दिया गया।
विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। सभी 12 महीने राशियों के नाम पर हैं, इसका समय 365 दिन का होता है। बात करें चन्द्र वर्ष की तो इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं। इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं। ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसके 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है।
सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है। यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र भी प्रारंभ होते हैं। सबसे खास बात इसी दिन ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। ताज्जुब होता है जिस भारतीय कैलेंडर ने दुनिया भर के कैलेंडर को वैज्ञानिक राह दिखाई आज हम उसे ही भूलने लग गए हैं।
हवन समारोह, एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव, महाराजा अग्रसेन परिवार के सभी सदस्यों को प्रार्थना और चिंतन में एक साथ लाया, जिससे एकता और सकारात्मकता की भावना को बढ़ावा मिला क्योंकि मेट्स ने विक्रम संवत 2081 की सुबह को गले लगा लिया। समारोह का समापन मां अंबे की उत्थानकारी आरती के साथ हुआ शैक्षणिक उत्कृष्टता और समग्र विकास की दिशा में संस्थान की निरंतर यात्रा के लिए आशीर्वाद दिया।
इस कार्यक्रम में संस्थान के संस्थापक और मुख्य सलाहकार डॉ. नंद किशोर गर्ग, ट्रस्टी उषा गर्ग; अध्यक्ष विनीत कुमार लोहिया; मेट्स के उपाध्यक्ष जगदीश मित्तल, एस.पी. गोयल, ज्ञान अग्रवाल एवं ओ.पी. गोयल की गरिमामयी उपस्थिति रही। इसके अतिरिक्त, कार्यकारी अध्यक्ष एस.पी. अग्रवाल; महासचिव टी.आर. गर्ग; सचिव सतीश गर्ग, संगीता गुप्ता, अविनाश अग्रवाल एवं रजनीश गुप्ता; संयुक्त महासचिव मोहन गर्ग एवं संजीव गोयल; कोषाध्यक्ष आनंद गुप्ता; और मेट्स के नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सतीश गुप्ता सीईओ ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव; उपस्थित थे। इसके अलावा, प्रो. (डॉ.) एस.के. गर्ग डायरेक्टर जनरल, एमएआईटी की निदेशक प्रो. डॉ. नीलम शर्मा, मैम्स की निदेशक डॉ. रजनी मल्होत्रा ढींगरा, एम ऐ बी एस के निदेशक प्रोफ़. संजीव मरवाहा), प्रो. एस.एस. देसवाल, डीन, प्रो. सचिन गुप्ता डीन , फैकल्टी, स्टाफ सदस्यों और छात्रों ने भी हवन समारोह में भाग लिया।
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