भाषाओं की मिठास- सिंधी भाषा दिवस 10 अप्रैल 2024 पर विशेष

सिंधी भाषा को 1967 के 21 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा, आठवीं अनुसूची में 10 अप्रैल 1967 को जोड़ा गया था
हर समाज की मातृभाषा अपनी संस्कृति अभिव्यक्ति समाज और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां में भारत ही एक ऐसा अकेला देश है, जहां बहुत भारी तादाद में हर समाज भाषाओं उपभाषाओं, बोलियां में अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करता है। यह भाषाएं वह बोलियां इतनी मीठी होती है कि हर भाषा को बोलने के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि काश मैं यह भाषा बोल पाता। हिंदी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, सिंधी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, असमिया, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती सहित पूरे भारत में हजारों लाखों बोलियां है, जिनकी मिठास का अद्भुत आगाज होता है। परंतु हमारे संविधान निर्माता और बाद में संशोधन द्वारा भारत में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को दर्ज किया गया है। इसमें से एक बहुत ही प्यारी मीठी बोली और भाषा सिंधी है, जिसे 10 अप्रैल 1967 से लागू की याद गया था और इसी दिन को सिंधी समाज हर वर्ष सिंधी भाषा दिवस के रूप में मनाता है। बहुत सारे कार्यक्रम किए जाते हैं, खुशियां मनाई जाती है परंतु आज 10 अप्रैल 2024 को यह खुशियां दोगुनी हो गई है, क्योंकि सिंधी समाज के इष्टदेव झूलेलाल की जयंती महोत्सव भी विक्रम संवत के अनुसार आज के दिन ही 10 अप्रैल 2024 को ही इस साल आया है। चूंकि सिंधी भाषा को 1967 में 21 में संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा आठवीं अनुसूची में 10 अप्रैल को ही लागू हुआ था इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे। हर समाज की मातृभाषा उसकी संस्कृति अभिव्यक्ति समाज और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए आइए भाषाओं की मिठास को पहचाने।

साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की करें तो, सिंधी भाषा को 1967 के 21 वें संशोधन अधिनियम द्वारा 8वीं अनुसूची में जोड़ा गया था। आठवीं अनुसूची उन भाषाओं को सूचीबद्ध करती है जिन्हें विकसित करने की जिम्मेदारी भारत सरकार के पास है। संविधान की आठवीं अनुसूची में मूल रूप से 14 भाषाओं को शामिल किया गया था।1992 में अधिनियमित 71वें संशोधन में तीन और भाषाएं जैसे कोंकणी, मैतेई (मणिपुरी) और नेपाली शामिल की गई थीं। 92वें संशोधन ने 2003 में बोडो, डोगरी, संथाली और मैथली को जोड़ा, जिससे भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गई। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक भारत की आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है। मूल रूप से, केवल 14 भाषाओं का उल्लेख किया गया था और बाद में, कई संशोधनों के बाद, अन्य भाषाओं को जोड़ा गया था। भारत के संविधान में और संशोधन करने के लिए एक अधिनियम। उद्धरण, 21वाँ संशोधन, प्रादेशिक सीमा भारत द्वारा पारित, राज्य सभा उत्तीर्ण 4 अप्रैल 1967 द्वारा पारित लोकसभा उत्तीर्ण, 7 अप्रैल 1967 को सहमति दी गई 10 अप्रैल 1967 शुरू किया।

साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में जोड़ने के कारणों की करें तो, संविधान (इक्‍कीसवां संशोधन) अधिनियम, 1967 संविधान (इक्कीसवां संशोधन) विधेयक, 1966 (1966 का विधेयक संख्या XXIV) से जुड़े उद्देश्यों और कारणों का विवरण, जिसे संविधान (इक्कीसवां संशोधन) अधिनियम, 1967 के रूप में अधिनियमित किया गया था। वस्तुओं और कारणों का विवरण सिंधी भाषी लोगों की ओर से सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की लगातार मांग की जाती रही थी। हालाँकि वर्तमान में सिंधी एक सुपरिभाषित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा नहीं है, यह अविभाजित भारत के एक प्रांत की भाषा हुआ करती थी और विभाजन के बिना, वैसे ही बनी रहती। भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त ने सिंधी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की भी सिफारिश की थी। 4 नवंबर, 1966 को यह घोषणा की गई कि सरकार ने सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का निर्णय लिया है। विधेयक इस निर्णय को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।

साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में जोड़ने की प्रक्रिया पूरी करने की करें तो, संविधान (इक्कीसवाँ संशोधन) विधेयक, 1967 (1967 का विधेयक संख्या 1) 20 मार्च 1967 को राज्यसभा में पेश किया गया था। इसे तत्कालीन गृह मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने पेश किया था और आठवीं अनुसूची में संशोधन करने की मांग की थी। संविधान में सिंधी को अनुसूची में सूचीबद्ध भाषाओं में से एक के रूप में शामिल करने के लिए। बिल के साथ संलग्न उद्देश्यों और कारणों के विवरण का पूरा पाठ नीचे दिया गया है। भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त ने सिंधी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की भी सिफारिश की है। विधेयक इस निर्णय को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।  वाईबी चव्हाण संविधान (बाईसवां संशोधन) विधेयक, 1966। विधेयक पर 4 अप्रैल 1967 को राज्य सभा द्वारा विचार किया गया और उसी दिन मूल रूप में पारित कर दिया गया। विधेयक, जैसा कि राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था, पर 7 अप्रैल 1967 कोलोकसभा द्वारा विचार किया गया और पारित किया गया। विधेयक को 10 अप्रैल 1967 को तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन से सहमति मिली। इसे भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया और पारित किया गया। उसी तिथि से लागू हुआ।

साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा के 10 रोचक तथ्यों की करें तो, सिंधी भाषा अखंड भारत की प्राचीन भाषा है। यह मूलत: सिंध प्रांत की भाषा है। इस भाषा का प्राचीन इतिहास रहा है। भारत औरअब पड़ोसी मुल्क में इस भाषा को बोलने वालों की संख्या अधिक है। सिन्धी भाषा के संबंध में 10 रोचक तथ्य…
(1) सिंधी भाषा द्रविड़ भाषाओं की ग्रुप की भाषा है। सिंधी भाषा भारतीय आर्य भाषाओं के पश्चिमोत्तर समूह की भाषा है।
(2) सिंधी भाषा की उत्पत्ति वेदों के लेखन या सम्भवत: उससे भी पहले सिन्ध क्षेत्र में बोली जाने वाली भारतीय-आर्य बोली या प्राकृत भाषा से हुई है। प्राचीन सिंधी भाषा में संस्कृत और प्राचीक ने शब्द बहुतायत होते थे।

(3) प्राकृत परिवार की अन्य भाषाओं की तरह सिंधी भी विकास के प्राचीन भारतीय-आर्य (संस्कृत) व मध्य भारतीय-आर्य (पालि, द्वितीयक प्राकृत तथा अपभ्रंश) के दौर से गुजर कर एक परिपक्व भाषा बनी।
(4) संस्कृत और प्राकृत सिन्धी जबान की बुनियाद रही हैं।
(5) भाषा का विक्रतिकरण तब प्रारंभ हुआ जब बाहरी लोगों का आक्रमण बढ़ा। लगातार तुर्क, ईरान और अरबों के आक्रमणों के चलते इस भाषा की लिपि भी बदली और इसमें अरबी एवं फारसी शब्दों की संख्‍या भी बढ़ती गई।
(6) सिंधी भाषा मुख्यत: दो लिपियों में लिखी जाती है, अरबी-सिंधी लिपि तथा देवनागरी-सिंधी लिपि। परंतु इसकी मूली लिपि सिंधी ही है, जिसकी उत्पत्ति आद्य-नागरी, ब्राह्मी और सिंधु घाटी लिपियों से हुई है।

(7) जब से भारत का बंटवारा हुआ है सिंध प्रांत ही नहीं पाकिस्तान के हर प्रांत पर ऊर्दू भाषा और अरबी लिपि को थोपा गया जिसके चलते वहां की मूल भाषा अब लुप्त होने की स्थिति में है। पाकिस्तान की चाहें सिंधी भाषा हो, पंजाबी हो या पख्‍तून। सभी भाषाएं अब पहले जैसी नहीं रही, उनमें फारसी और अरबी के शब्दों की भारमार हो चली है। बंटवारे ने जब इंसानी बस्तियों को अपनी जड़ों से बेदखल किया, तो इसमें नदी, नाले, इमारतें और दरख़्त तो वहीं रह गए, मगर जबान इंसान के साथ-साथ चली आई तभी आज भारत में सिंधि और पंजाबी बच गई।

(8) कहते हैं कि सिंध भाषा का जुड़ाव भी महाभारत काल के सिंधु देश और सिंधु घाटी की हड़प्पा और मोहनजोदड़ो संस्कृति से रहा है। सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी। भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। प्राचीनकाल में ब्राह्मी लिपि और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। इसमें ब्रह्मी लिपि इस क्षेत्र की मुख्य लिपि थी।
(9) सिंधी भाषा अरबी लिपि स्टाइल से यानि दाएं से बाएं लिखी जाती है। इसमें 52 अक्षर होते हैं। जिसमें 34 अक्षर फारसी भाषा के हैं और 18 नए अक्षर है। अरबी-सिंधी लिपि- 52 वर्ण (अरबी के 28 वर्ण, फारसी के 3 वर्ण), देवनागरी लिपि- हिंदी वर्णमाला से देवनागरी सिंधी वर्णमाला में अधिक वर्ण- ख, ग, ज, फ, ग, ज, ड, ब। गुजराती लिपि- गुजराती लिपि में सिंधी भाषा लिखने की परंपरा पिछली सदी से ही देखाई देती है। सिंध में थरपारकर लिजा के लोग इस लिपि का अधिक प्रयोग करते हैं।

(10) सिंधी की प्रमुख बोलियों में सिराइकी, विचोली, लाड़ी, लासी, थरेली या धतकी, कच्छी प्रमुख है। ‘उ’ से समाप्त होने वाले शब्द सिंधी भाषा में प्राचीन प्राकृत मूल से आए हैं। सिंधी भाषा ने कई प्राचीन शब्द और व्याकरण स्वरूपों को सुरक्षित रखा है, जैसे झुरूया से झुरू (प्राचीन), वैदिक संस्कृत के युति से जुई स्थान तथा प्राकृत वुथ्या से वुथ्थो बारिश हुई जैसे शब्द हैं।

साथियों बात अगर हम मातृभाषा के महत्व की करें तो परिवार के सदस्य मातृभाषा का प्रयोग कठोर करते हैं क्योंकि वे अपनी मातृभाषा को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग मानते हैं। भाषा उनके लिए संस्कृति, अभिव्यक्ति, समाज, और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है। वे अपनी मातृभाषा को अपने बच्चों और पीठ से आगे ले जाना चाहते हैं ताकि वे भी अपनी संस्कृति, अभिव्यक्ति, समाज, और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व कर सकें। भाषा मधुर होने के लिए, उसे सही ढंग से बोलना, सुनना, और लिखना आवश्यक होता है। एक व्यक्ति की भाषा मधुर होती है जब वह उस भाषा के व्याकरण, व्याकरण, शब्दावली, वाक्य रचना, और वाक्य विन्यास के नियमों का पूरी तरह से पालन करता है। भाषा का उच्चारण और विभिन्न शब्दों का सही उपयोग भी मधुरता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, भाषा मधुर होने के लिए, व्यक्ति को भाषा के संचार में सक्षम होना आवश्यक होता है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भाषाओं की मिठास- सिंधी भाषा दिवस 10 अप्रैल 2024 पर विशेष। सिंधी भाषा को 1967 के 21वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा, आठवीं अनुसूची में 10 अप्रैल 1967 को जोड़ा गया था। हर समाज की मातृभाषा अपनी संस्कृति अभिव्यक्ति, समाज और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है।

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