मैं अब जीना नहीं चाहता- मुझे मौत चाहिए!
परिस्थितियों, दुखों, पारिवारिक सामाजिक अपमान से व्यथित, मौत चाहने वाले मानवीय जीव को समाज में रेखांकित कर, जीवन जीने को प्रोत्साहित करना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर करीब-करीब हर देश में परिस्थितियों पारिवारिक सामाजिक व व्यसनों से व्यथित दुखों का अंबार लगा है। जिसमें व्यवस्थित होकर मानवीय जीव मौत को गले लगाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। भले ही 20 मार्च 2024 को घोषित विश्व खुशहाली सूचकांक रिपोर्ट 2024 में फिनलैंड लगातार सातवीं बार दुनियां का सबसे खुशहाल देश घोषित किया गया है, याने खुशहाली में प्रथम रैंकिंग पर है और सबसे आखरी रैंकिंग याने 143वें नंबर पर अफगानिस्तान आया है और भारत 126वें स्थान पर आया है, परंतु सोचने योग्य बात यह है कि क्या फिनलैंड में पारिवारिक स्थिति सामाजिक अपमान से व्यथित दुखों से पीड़ित मौत चाहने वाले लोग नहीं होंगे? मेरा मानना है कि दुनियां के हर देश में एक वर्ग मानव निर्मित समस्याओं से ग्रस्त दुखों से पीड़ित व्यक्ति होंगे जो मौत चाहने चाहते होंगे! उनमें जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो गई होगी और कहते होंगे मैं अब जीना नहीं चाहता, मुझे मौत चाहिए! कई बार हमने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पढ़ते सुनते हैं कि फलां व्यक्ति ने शासन प्रशासन से इच्छा मृत्यु के लिए आवेदन किया है, जो स्थानीय लेवल पर हेड लाइंस बन जाती है परंतु यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि वह ऐसा राजनीतिक स्टंट बाजी भी हो सकती है।
परंतु इस विषय के अगर हम तह में जाएंगे तो हमें एक वर्ग ऐसा मिलेगा जो वास्तविक में पारिवारिक सामाजिक शासकीय आर्थिक या व्यसनों से पीड़ित मिलेगा जो मौत को गले लगाने की इच्छा रखता है। हालांकि कई लोग झट से आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं जो कानूनी सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर गलत काम है ऐसा नहीं करना चाहिए। परंतु यह भी सत्य है कि ऐसे लोगों की पहचान करके प्रोत्साहन देने वालों की भी कमी है इसलिए ऐसे मेरा मानना है कि, सामाजिक सेवा के रूप में ऐसे संगठनों, संस्थाओं में विस्तार किया जाए जो ऐसे लाचार व मौत को गले लगाने वाले लाचार व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें जीवन जीने की कला सिखाने उनके पारिवारिक सामाजिक व्यवस्थाओं की समस्याओं से पीड़ित व्यक्तियों की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करें जिससे उनके जीवन में फिर जीवन जीने की इच्छा जागृत हो और अपनी खूबसूरत जिंदगी को पहचान कर उसे फिर जीने की इच्छा प्रबल हो जाए।
वैसे बता दें कि कुदरत की माया में इंसानी जीव हाथ नहीं डाल सकता, जिसकी मौत जब और जहां निश्चित है वही होगी, यह कुदरत की देन है, इसे कोई संगठन संस्था शासन या फिर स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी भी रोक नहीं सकती, वह होके रहती है। चूंकि पारिवारिक सामाजिक व्यसनों से व्यस्त व्यक्ति मौत को गले लगाने की और तेजी से बढ़ रहे हैं इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,परिस्थितियों दुखों पारिवारिक सामाजिक अपमान से व्यथित मौत चाहने वाले मानवीय जीव को समाज ने रेखांकित कर जीवन जीने को प्रोत्साहन करना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम खुदकुशी के तेजी से बढ़ते मामलों की ओर ध्यान दें तो, इन दिनों खुदकुशी के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर क्यों लोगों के मन इस तरह के विचार आते हैं। साथ ही अगर वक्त से कुछ लक्षणों की पहचान कर ली जाए, तो समय रहते ऐसे इंसान को यह कदम उठाने से रोका जा सकता है। क्यों आते हैं आत्महत्या के ख्याल?आत्महत्या के हर मामले के पीछे कोई न कोई राज छिपा होता है? लेकिन हर आत्महत्या के पीछे एक वजह बेहद सामान्य होती है और वह है मन में दबी गहरी निराशा। खुदकुशी कोई मानसिक बीमारी नहीं है। इसके पीछे कई सारी वजहें हो सकती हैं, जिसमें डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, पर्सनालिटी डिसऑर्डर, किसी घटना का गहरा असर और तनाव आदि शामिल है। अक्सर जीवन में आई कुछ परिस्थितियों की वजह से लोग हिम्मत हार बैठते हैं। उन्हें लगता है कि वह उन समस्याओं का सामना नहीं कर पाएंगे और ऐसे में वह घबराकर आत्महत्या को ही एकमात्र उपाय मान लेते हैं। लेकिन ऐसा करना कोई समाधान नहीं है। अक्सर अपनों से मिली चोट लोगों को ज्यादा तोड़ देती है।
साथियों बात अगर हम खुदकुशी के संभावित लक्षणों पर ध्यान देने की करें तो, इन लक्षणों को कभी न करें नजर अंदाज, अक्सर हालातों से हार मान लेने वाले लोग आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। लेकिन वह ऐसा अचानक नहीं करते हैं। अवसाद या खुदकुशी के विचार से जूझ रहे लोगों में कई ऐसे लक्षण नजर आने लगते हैं, जिनकी अगर समय रहते पहचान कर ली जाए, तो उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है।अगर आपके आसपास किसी शख्स में ये लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें बिल्कुल भी नजर अंदाज न करें।
(1) ऐसे लोग अचानक ही बात करते-करते खो जाते हैं या अचानक ही शांत रहने लग जाते हैं।
(2) इन लोगों के व्यवहार में अचानक ही बदलाव आने लगते हैं, जैसे- बात-बात पर गुस्सा करना, मूड स्विंग होना, उदास और निराश रहना आदि।
(3) आत्महत्या का विचार बना रहे लोग अक्सर अपने करीबियों से मिलना चाहते हैं। ऐसे में वह बार-बार उनसे मिलने का दबाव बनाते हैं।
(4) अक्सर अपनों से मिले धोखे या किसी चोट से टूटे लोगों के मन आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं, जिसका मुख्य कारण अकेलापन है।
(5) जिंदगी से हार मान चुके लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना कम कर देते हैं।
(6) ऐसे में लोग अगर पोस्ट शेयर करते भी हैं, तो भरोसा टूटने या दुखी वाले पोस्ट साझा करते हैं।
(7) वहीं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अचानक ही बेहद प्रेरणादायक पोस्ट डालने लगते हैं, ताकि वह सबको बता सकें कि सब कुछ ठीक है।
(8) सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे लोग, जो खुदकुशी का विचार बना रहे हैं, वह किसी दोस्त या करीबी से इसका जिक्र जरूर करते हैं।
ऐसे में इन बातों को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। डिप्रेशन की अवस्था में इस किस्म के विचार आते है, डिप्रेशन में आदमी का आत्मविश्वास खत्म होने लगता है। निराशा घेर लेती है, आदमी भविष्य के प्रति शंकित हो जाता है। इन परिस्थितियों में या गंभीर आर्थिक समस्याओं से घिरा व्यक्ति, अपने अत्यधिक प्रियजन की मृत्यु ऐसी परिस्थितियां है जिनमे आत्महत्या के विचार मन में आने लगते है, इसके लिए मनोचिकित्सक का इलाज और आध्यात्मिक जीवन की ओर मुड़ना ही उपाय है।
साथियों बात अगर हम सकारात्मक सोच से खुदकुशी मौत का रुख टालने की करें तो, यदि हम एक बार अपने माता पिता, जिन्होंने आपका पालन पोषण किया है, उनके बारे में सोचेंगे तो आपकी मरने की इच्छा नही होगी।क्या उन्होंने यह ही सोच कर आपका पालन पोषण किया? या आप अगर अपने भाई या बहन के बारे में सोचेंगे तो आपकी फिर जीने की इच्छा कर जाएगी या आप अपनी पत्नी/पति या बच्चों के बारे में सोचेंगे तो आपकी फिर जीने की इच्छा हो जाएगी। यह एक बहुत ही बड़ा फैसला होता है जो जल्दबाजी में कभी नही लिया जाता है। परन्तु हम उस स्थिति में होते है कि अगर कोई सही बात भी कहता है तो हमें गलत लगती है इस कारण पूर्णतः सोच समझकर यह फैसला करें। क्योंकि हम स्वतंत्र भारत के एक स्वतंत्र नागरिक है, इस कारण हमें ऐसा करने से कोई नही रोक सकता है बस समझाया जा सकता है। हो सकता है यह बात हमारे समझ आयेगी।
साथियों बात अगर हम खुदकुशी या मौत की चाहना को आकांक्षाओं असीमित इच्छाओं से जोड़कर देखने की करें तो, मेरा मानना है कि मनुष्य के जीवन की धुरी उसकी आकांक्षाएं असीमित इछाएं होती है,जिनके इर्द गिर्द सफलताओ को पिरोने का प्रयास किया जाता है।प्रयास एक लहर की भांति है, जिनमें सफलता, असफलताओ का ज्वर-भाटा निहित होता है। जब असफलता के वजन तले हमारी आकांक्षा घुटने लगती है, तब हताशा के चलते हम अपने को ही नुकसान पहुचाने की सोचने लगते है। इसमें कोई दो राय नहीं की हर आदमी के लिए उसकी समस्या बड़ी होती है। साथ ही कोई भी किसी दूसरे व्यक्ति के दुःख को पूर्णताः हल नहीं कर सकता।फिर भी स्मरण रहे की मनुष्य एक सामजिक प्राणी है, जिसका अर्थ है कि हम एकांकी नहीं रह सकते। हो सकता है असफल व्यक्ति के प्रति लोगो की भावना बदल जाए, परंतु कुछ लोग हमारे जीवन में बिना स्वार्थ के भी होते है।
कोई दोस्त या भाई ऐसे मौके जब आप में आत्महत्या की भावना आये तो फिर अकेले न रहे किसी कोने या कमरे में न बैठे, कही अकेले न जाए बल्कि लोगो के बीच रहे। हममें अपने आप को मौका देने की ज़रूरत है।आत्मचिंतन व चिंता के फर्क को समझते हुए कदम उठाने की जरुरत है।क्या हम असीमित इच्छओं को उत्पन्न होने से रोक सकतें हैं?? तर्कतज्ञ के अनुसार हम अपनी असीमित इच्छओं को उत्पन्न होने से बिल्कुल भी रोक नही सकतें। क्यों?? क्योंकि हमारी आँखे रंगों को विक्षेत कर नई-नई आकृति, ठोस रूप, तरल रूप, वाष्प रूप में नई-नई वस्तुओं का सृजन कर मस्तिष्क को जानकारी का स्त्रोत बना देती हैं और फिर यहीं मस्तिष्क हमारे अवचेतन में असीमित इच्छओं को उत्पन्न करता हैं। हम इन्हीं असीमित इच्छओं के भार तले दब कर मौत तक का सफर तय करते हैं, तो क्या वास्तव में ये असीमित इच्छाएं ही हमारी मृत्यु का कारण होती हैं?? जी हां! ये असीमित इच्छाएं ही हमारी मृत्यु का कारण होती हैं। क्या आप जानते हैं, समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती।
इच्छाएं ही हमारे भोग का अस्तित्व हैं। इच्छाएं ही हमारे सम्बन्धों की नींव हैं, इच्छाएं ही मानव सभ्यता का उदार हैं। इच्छाएं ही बदलते समय का हिसाब हैं। फिर भला कैसे हमारी इच्छाएं हमारी मृत्यु की बजह हैं??इच्छाएं अपनी संख्यकीक रूप में मौजूद ही नही हैं। मतलब साफ हैं, इच्छाएं अनंन्त समापन का स्वछ पहलू हैं। बिन इच्छओं के मानव सभ्यता का सृजन शून्य स्तर पर हैं। मानव सभ्यता की उत्पत्ति ही इच्छओं का दूसरा दर्पण हैं। दर समय दर मानव सभ्यता इच्छाओं की पूर्ति हेतु मस्तिष्क की जटिलताओं को सुलझाते हुए एक नए मानव सभ्यता का उदय कर सकें। मृत्यु एक निश्चित अभ्यंतर पहलू हैं। इसे सीधे और सरल भाषा में समझा जाए। हमारा मस्तिष्क स्वभाव इच्छाओं के लिए बाबला हैं। ये जानते हुए भी कि उसे इन इच्छाओं के ख़ातिर पूरे जीवन भर बेइंतहा मेहनत करनी पड़ेंगी।
किन्तु फिर भी हमारा मस्तिष्क इन इच्छाओं के लिए रजामंदी हो जाता हैं और फिर एक के बाद एक, ऐसी असंख्य अनेकों इच्छाओं का भार उठता चला जाता हैं। कभी हँसकर, कभी स्वयं को बहलाकर, तो कभी डिप्रेशन का बोझ उठाकर। फिर क्या- जब तक हमारे मस्तिष्क में सहने की ताकत होती हैं। तब तक ये इच्छाओं का भार उठाता चला जाता हैं। किंतु जैसे ही मस्तिष्क डिप्रेशन का घर बनकर इच्छाओं का भार समेटने की कोशिश में! अपनी इच्छा सीमाओं में बुझ कर मौत तक का सफ़र तय करता हैं। तो बेशक हमारी असीमित इच्छाएं ही हमें मौत तक का सफ़र तय करवातीं है। हमारी जानकारी में एक स्वस्थ मस्तिष्क से ही स्वस्थ शरीर का निर्माण संभव हैं। स्वस्थ मस्तिष्क ही हमारी ह्रदय गति को संतुलित रखने में मददगार हैं और स्वस्थ ह्रदय ही हमारे पूरे शरीर की नींव हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मैं अब जीना नहीं- चाहता मुझे मौत चाहिए।पारिवारिक, सामाजिक व व्यसनों से व्यथित व्यक्ति मौत को गले लगाने की ओर परिस्थितियों, दुखों, पारिवारिक सामाजिक अपमान से व्यथित, मौत चाहने वाले मानवीय जीव को समाज ने रेखांकित कर, जीवन जीने को प्रोत्साहित करना समय की मांग है।
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