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आइए दिव्यांगजनों को सम्मान जनक भाव वाले नजर से आत्मियता रख चुनौतियों में उनकी मदद करें
दिव्यांगजनों की चुनौतियों का समाधान करने कार्यवाही उन्मुख, समयबद्ध, दृढ़ प्रतिबद्ध समाधान करना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दिव्यांग जनों को विकलांगता शब्द के रूप में जाना जाता है। अधिकांश विकसित देशों में विकलांगता को मानव जीवन का हिस्सा माना जाता है। ऐसे समाज में ऐसी व्यवस्थाएँ की जाती हैं कि एक विकलांग व्यक्ति भी रोजमर्रा की हर गतिविधि में हिस्सा ले सके। इन जगहों पर अमूमन लोग यह मानते हैं कि स्थाई या अस्थाई रूप से हर व्यक्ति अपने जीवन में विकलांगता को कभी-न-कभी महसूस करता है। यही कारण है कि यहाँ विकलांगता को एक सामान्य प्राकृतिक घटना की तरह देखा जाता है। गैर-विकसित और कम पढ़े-लिखे समाज में विकलांगता को विकलांग व्यक्ति की निजी समस्या के रूप में देखा जाता है। विकलांगता को अक्सर पूर्व जन्म के बुरे कर्मों से भी जोड़ दिया जाता है। ऐसे समाज में आधारभूत संरचनाओं को विकलांग लोगों के लिए सुगम्य बनाने पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसी जगहों पर विकलांगजन के पास कोई विशेषाधिकार भी नहीं होते।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विकलांगता एक सापेक्ष शब्द है- जिसका अर्थ अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग हो सकता है। परंतु भारत में इनका नाम दिव्यांग रूपी सम्मान जनक भाव वाले नजर से रखा गया है।सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग द्वारा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अंतर्गत जागरूकता के लिए 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को शामिल किया गया है। अधिनियम में पूर्व में प्रचलित 7 प्रकार की दिव्यांगताओं के स्थान पर अब 21 प्रकार की दिव्यांगताएं शामिल की गई है। अधिनियम के अंतर्गत दिव्यांगता के 21 प्रकार एवं उनके लक्षण जैसे चलन दिव्यांगता, बौनापन, मांसपेशी दुर्विकास, तेजाब हमला पीड़ित, दृष्टि बाधित, अल्पदृष्टि, श्रवण बाधित, कम, ऊंचा सुनना, बोलने एवं भाषा की दिव्यांगता, कुष्ठ रोग से मुक्त, प्रमस्तिष्क घात, बहु दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, सीखने की दिव्यांगता, स्वलीनता, मानसिक रुग्णता, बहु-स्केलेरोसिस पार्किसंस, हेमोफीलिया, थेलेसीमिया, सिक्कल कोशिका रोग शामिल है।
वैसे तो भारत में दिव्यांगजनों के सम्मान हेतु अनेक योजनाएं बनाई गई है जो केंद्र राज्य से लेकर जिला स्तर पर कार्यालय है भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी अनेक स्तरों पर सुविधा दिव्यांगजनों को प्रदान की है। परंतु चूंकि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के नेतृत्व में दिव्यांगता पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड के छठे बैठक में अनेक योजनाओं कार्यों पर मंथन किया गया है और चुनाव आयोग द्वारा भी दिव्यांगों के लिए राजनीतिक दलों को दिशा निर्देश जारी किए गए हैं, इसलिए आज हम मीडिया पीआईबी में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे दिव्यांगजनों की चुनौतियों का समाधान करने कार्यवाही उन्मुख समयबद्ध समाधान करना समय की मांग हैं।
साथियों बात अगर हम दिनांक 21 दिसंबर 2023 को चुनाव आयोग द्वारा जारी राजनीतिक दलों के लिए दिशा निर्देशों की करें तो, दिशा निर्देशों की मुख्य विशेषताएं ये हैं –
(1) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक बयान/भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेख/आउटरीच सामग्री या राजनीतिक अभियान में नि:शक्तिता/दिव्यांगजनों पर गलत/अपमानजनक/निरादरयुक्त संदर्भों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
(2) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेखों याराजनीतिक अभियान में मानवीय अक्षमता के संदर्भ में नि:शक्तंता/दिव्यांगजनों का या नि:शक्तेता/दिव्यांगजनों को निरूपित करने वाले शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
(3) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को नि:शक्तपता/ दिव्यांगजनों से संबंधित ऐसी टिप्पणियों से सख्ती से बचना चाहिए जो आक्रामक हो सकती हैं या रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों को कायम रख सकती हैं।
(4) ऐसी भाषा, शब्दावली, संदर्भ, उपहास, अपमानजनक संदर्भ के उपयोग या दिव्यांगजनों का अपमान जैसा कि बिंदु (i), (ii) और (iii) में उल्लिखित है, पर दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के प्रावधान लागू हो सकते हैं।
(5) भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापनों और प्रेस विज्ञप्तियों सहित सभी प्रचार अभियान सामग्रियों की राजनीतिक दल के भीतर आंतरिक समीक्षा अवश्य की जानी चाहिए ताकि लोगों/ दिव्यांगजनों के प्रति सक्षमवादी भाषा, चाहे वह आक्रामक या भेदभावपूर्ण, सक्षमवादी भाषा के दृष्टांतों की पहचान और दोष सुधार की जा सके।
(6) सभी राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए और अपनी वेबसाइट पर घोषित करें कि वे नि:शक्त ता एवं जेंडर की दृष्टि से संवेदनशील भाषा और शिष्ट भाषा का उपयोग करेंगे और साथ ही अंतर्निहित मानवीय समानता, समता, गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करेंगे।
(7) सभी राजनीतिक दल सीआरपीडी (दिव्यांगजनों के अधिकारों पर कन्वेंशन) में उल्लिखित अधिकार-आधारित शब्दावली का उपयोग करेंगे और किसी भी प्रकार की अन्य शब्दावली के उपयोग से बचेंगे।
(8) सभी राजनीतिक दल अपने सार्वजनिक भाषणों/अभियानों/कार्यकलापों/कार्यक्रमों को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाएंगे।
(9) सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया विषय-वस्तु को डिजिटल रूप से अभिगम्य बनाएंगे, ताकि दिव्यांगजन सुगमतापूर्वक इंटरएक्शन कर सकें।
(10) सभी राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया के सभी स्तरों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए दिव्यांगता पर एक प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान कर सकते हैं और सक्षम भाषा के उपयोग से संबंधित दिव्यांगजनों की शिकायतों को सुनने के लिए नोडल प्राधिकारी नियुक्त करेंगे।
(11) राजनीतिक दल पार्टी और जनता के व्यवहार संबंधी अवरोध को दूर करने और समान अवसर प्रदान करने के लिए सदस्यों और पार्टी कार्यकर्ताओं जैसे स्तरों पर अधिक दिव्यांगजनों को शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं।
साथियों बात अगर हम छठवीं केंद्रीय सलाहकार समिति की बैठक की करें तो, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के सक्रिय नेतृत्व में दिव्यांगता पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की छठी बैठक डीएआईसी, नई दिल्ली में आयोजित की गई। बैठक में ओडिशा, यूपी, गोवा, तमिलनाडु के प्रतिष्ठित मंत्रियों के साथ-साथ राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विभिन्न संगठनों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने भाग लिया, बैठक में दिव्यांगता क्षेत्र के केन्द्रीय मुद्दों को संबोधित किया गया, जिससे परिवर्तनकारी प्रगति के एक नए युग की शुरुआत हुई। विचार विमर्श में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन की स्थिति, सुगम्य भारत अभियान, विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र परियोजना और दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के सशक्तिकरण के लिए डीईपीडब्ल्यूडी द्वारा अभिनव पहल शामिल हैं।
चर्चा में राज्य प्रतिष्ठानों में उपयुक्त पदों की पहचान, उच्च समर्थन आवश्यकताओं वाले दिव्यांगजनों के लिए योजनाएं और प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में पर्पल फेस्ट जैसे त्योहारों का आयोजन भी शामिल था। मंत्री जी सशक्त मार्गदर्शन में, बोर्ड ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम को तेजी से लागू करने, राज्य नियमों को अधिसूचित करने और राज्य सलाहकार बोर्ड और जिला स्तरीय समितियों की स्थापना करने का आह्वान किया। जिला-स्तरीय न्यायालयों को नामित करने और दिव्यांगजनों के लिए स्वतंत्र आयुक्तों की नियुक्ति की अनिवार्यता का प्रभावशाली समर्थन किया गया।
डीईपीडब्ल्यूडी सचिव ने इस बात पर बल दिया कि दिव्यांगजनों का सशक्तिकरण एक सामूहिक जिम्मेदारी है, उन्होंने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सभी मंत्रालयों/विभागों के बीच सहयोग का आग्रह किया। उन्होंने कई गुणा प्रभाव के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की वकालत की और दिव्यांगजनों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए कार्रवाई-उन्मुख, समयबद्ध समाधान की आवश्यकता पर बल दिया। बोर्ड के सदस्यों ने दिव्यांगों का एक व्यापक डेटाबेस बनाने से लेकर दिव्यांगों के लिए एक समर्पित टीवी चैनल की स्थापना के प्रस्ताव तक बहुमूल्य सुझाव दिए। दिव्यांगजनों को केवल लाभ प्राप्तकर्ता के बजाय करदाता बनने में सक्षम बनाने की दृष्टि को प्रमुखता मिली।इन विचार-विमर्शों के माध्यम से दिव्यांगों को सशक्त बनाने की केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की दृढ़ प्रतिबद्धता एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि चुनाव आयोग द्वारा दिव्यांगजनों के लिए सम्मान जनक भाव रखनें, राजनीतिक दलों के लिए जारी दिशा निर्देशों का पालन जरूरी आइए दिव्यांगजनों को सम्मान जनक भाव वाले नजर से आत्मियता रख चुनौतियों में उनकी मदद करें। दिव्यांगजनों की चुनौतियों का समाधान करने कार्यवाही उन्मुख, समयबद्ध, दृढ़ प्रतिबद्ध समाधान करना समय की मांग है।
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