।।जिंदगी के तराने।।
राजीव कुमार झा
प्रेम की नदी
सुबह बहती चली
आती
इसकी धारा में
जिंदगी के तराने
गूंजते रहते
तट पर आकर
यहां लोग कहते
सदियों से
नदी माता के समान
सबको स्नेह प्रेम देती
अरी सुंदरी
तुम धूप में
इसी पहर आकर
हवा को कहती
जंगल से अंधेरे में
रोज सुबह
ओ हवा!
तुम यहां आई
नये जीवन की
आहट
अब चारों तरफ
धूप में समायी
चिड़िया चहचहाई
याद आती
अरी प्रिया!
यह तनहाई
प्रेम की
नदी के पास
चांदनी छाई
नदी की धार में
तुम्हारे मन के गीत
गूंजते देते सुनाई