*# जी हां, मैं आम आदमी हूं #*
उस दिन चाय की दुकान पर
हो रही बातचीत में
में भी शामिल हो गया
बात राजनीति की ओर मुड़ चली
मैंनै अपनी बात रखी ही थी
कि एक बोले अच्छा
तो आप उस्स पार्टी के
समर्थक हैं
मैंने कहा बंधु
जरा ध्यान से
सुनें मेरी बात
फिर किसी खांचे में
मुझे रखना आप
कल एक भाई साहब तो मुझे
दूसरी पार्टी का हूं कह रहा था
और परसों एक और बंधु तो
मुझे कोई और ही पार्टी का
बता रहा था
दरअसल …
मैं इस या
उस पार्टी का नहीं हूं
मैं तो पार्टी के लिए
फकत एक मतदाता हूं
सरकार के लिए करदाता हूं
निजी अस्पतालों के लिए
मैं वो मुर्गा हूं
जहां न चाहते हुए भी
हलाल होने जाता हूं
अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा
दिलाने का भ्रम पाले
निजी स्कूलों की दहलीज पर
नाक तक रगड़ने को
तैयार हो जाता हूं
किसी न्यायिक सहायता की
आस लिए थाने जाता हूं
तो लगता है किसी नवाब
या महाराजा के
दरबार पहुंच गया हूं
कहां तक बताऊं मैं
मेरे दुख और परेशानी की
कथा अनंत हैं
जिसका न कोई आदि
न कोई अंत है
कोई मेरा नहीं
मेरे लिए कोई नहीं
पर …
मैं सबका हूं
सबके लिए मैं हूं
बंधु,
मैं इस देश का
आम आदमी हूं।
श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’