आशा विनय सिंह बैस की कलम से : महालया

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। बानी कुमार द्वारा लिखित और पंडित बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आध्यात्मिक वाणी और पंकज कुमार मलिक द्वारा संगीतबद्ध दुर्गा श्लोक 1932 साल से आकाशवाणी द्वारा महालया अमावस्या तिथि को मां महिषासुर मर्दिनी की वंदना और यशगान सुनना आज भी एक अलौकिक अनुभूति है विशेष कर बंगाल में रहने वालों और बांग्ला भाषियों के लिए। वस्तुतः महालया अमावस्या पितरों की विदाई व देवी भगवती के आगमन का संधिकाल माना जाता है। महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करता है। मान्यता है कि इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से सीधे धरती पर यानि अपने मायके आती हैं और यहां नौ दिन तक धरती लोक में वास करती है तथा अपनी कृपा के अमृत अपने भक्तों पर बरसाती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश ने मां दुर्गा के रूप में एक शक्ति सृजित किया था। जिसके बाद मां आदिशक्ति देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई। नौ दिनों तक देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। 10वें दिन मां दुर्गा ने दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध कर दिया। इसी उपलक्ष्य में हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है।

मां दुर्गा शाक्त सम्प्रदाय की मुख्य देवी हैं। मां दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामई, मोक्ष प्रदायनी तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं। नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। यह पर्व लोगों को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने और उन्हें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

शेष भारत के लिए शारदीय नवरात्र नियम, संयम, व्रत का पर्व है लेकिन बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा उत्साह, उमंग और आनंद का महापर्व है। जैसे शेष भारत के लोग अपने जीवनकाल में 80-90 बसंत जीने का सपना देखते हैं, वैसे ही एक आम बंगाली का सपना अपने जीवनकाल में 80-90 दुर्गा पूजा देखने का होता है। उनके लिए दुर्गा पूजा, मां के धरती पर आगमन की खुशी का महाउत्सव है। इसीलिए दुर्गा पूजा की तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है।

वायुसेना स्टेशन बैरकपुर के पास स्थित पलता के दुर्गा पूजा पंडाल की तैयारी भी पूरे एक महीने पहले शुरू हो चुकी थी। यूथ क्लब पलता के सदस्य घर-घर जाकर पूजा की पर्ची काट रहे थे। दुकानों, टैक्सियों और रिक्शा चालकों की भी पर्ची काटी गई है। यूथ क्लब पलता के सदस्य बता रहे थे कि इस बार पंडाल अत्यंत भव्य और विशिष्ट बनेगा, इसलिए पिछले साल की अपेक्षा सभी से ₹100 ज्यादा लिए जा रहे थे।

पंडाल का कार्य आज समाप्त हो चुका है, बस फाइनल टच देना बाकी है। इस बार पंडाल की थीम चंद्रयान-3 की लैंडिंग पर आधारित है। इसलिए चंद्रयान, प्रज्ञान, विक्रम और चंद्रमा का धरातल पंडाल में स्पष्ट दिख रहा है। बंगालियों को कोई कितना भी कोमल कहे लेकिन कलाकारी, सजावट और नफासत में उनका आज भी पूरे देश में कोई सानी नहीं है। पंडाल की फोटोग्राफी की जा चुकी है। पलता यूथ क्लब ने 1000 फोटो छपवा लिए हैं। इस बार पंडाल देखने आने वालों को यही फोटो ₹50 की वीआईपी एंट्री के बदले मिलेंगे।

महालया के दिन (पंचमी तिथि को) मुहूर्त के अनुसार घट स्थापना और कलश स्थापना होगी। पंडित बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आध्यात्मिक वाणी में मां महिषासुर मर्दिनी की वंदना और यशगान होगा। फिर देवी माँ को अपने बच्चों के साथ कैलाश से अपने पैतृक घर (पृथ्वी) की यात्रा शुरू करने के लिए निमंत्रण दिया जाएगा। यह निमंत्रण मंत्रों के जाप और “जागो तुमी जागो” और “बाजलो तोमार अलोर बेनु” जैसे भक्ति गीत गाकर किया जाएगा। उसके पश्चात पायल दे, सुभाश्री गांगुली जैसी विभिन्न कलाकार मां दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी रूप विभिन्न टीवी चैनलों पर सजीव करेंगी।

षष्टी के दिन से पंडाल सभी के लिए खुल जाएगा। पंडिताई का कार्य करने वाले भट्टाचार्य दादा पत्रा देखकर और गणना करके बता रहे थे कि चूंकि इस बार षष्ठी रविवार (15 अक्टूबर) को है इसलिए मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी। यह बहुत ही शुभ संकेत है इसका मतलब इस वर्ष अच्छी बारिश होगी और मां के भक्तों को धन-धान्य की प्राप्ति होगी।

षष्टी के दिन से ही पंडाल के बाहर फलों, आइसक्रीम, गोलगप्पा, झालमुड़ी, संदेश, रसगुल्ला, अंडा, माछ-भात, तंबाकू, सिगरेट की दुकाने सजने लगेगी। पूरे देश में कमाने गए बंगाली साल भर दुर्गा पूजा के लिए छुट्टी बचा कर रखते हैं और इस महीने का इंतजार करते रहते हैं। ऑफिस में लड़ाई हो जाए, वेतन कट जाए, चाहे नौकरी चली जाए लेकिन दुर्गा पूजा में ‘दादा’ को घर जाना है तो जाना है।

बैरकपुर के रॉयचौधरी परिवार का बेंगलुरु में रहने वाला इंजीनियर लड़का अपनी पत्नी और इकलौते बेटे के साथ तथा दिल्ली में डॉक्टरी की प्रैक्टिस करने वाली बिटिया अपने पति और अपने छोटी बिटिया के साथ घर वापस आ गए हैं। रॉयचौधरी परिवार में इस समय खूब धूम मची हुई है। सभी बच्चों के लिए नए कपड़े और जूते, महिलाओं के लिए तांत की साड़ी और पुरुषों के लिए रंग बिरंगा सूती कुर्ता खरीदा गया है।

षष्टी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी पूरे चार दिन रॉयचौधरी परिवार अपने घर के पास क्लब द्वारा स्थापित दुर्गा मां की पूजा करेगा। उनकी बहू-बेटा, दामाद-बेटी तथा बच्चे पूजा के बाद कोलकाता के सभी प्रमुख पंडाल देखने जाएंगे। अष्टमी के दिन सभी बड़े पंडालों में मिलने वाला प्रसाद (खिचड़ी और आलू दम) का अलौकिक स्वाद भला कौन नहीं चखना चाहेगा। बागबाजार और बागुईहाटी का भव्य और जग प्रसिद्ध पांडाल भी सबको देखना ही है।

दुर्गापूजा के इन चार दिनों केवल ब्रेकफास्ट ही घर पर बनेगा। लंच और डिनर बाहर ही होगा। पंडाल की असली खूबसूरती तो रात को ही निखर कर आती है। इसीलिए रात भर पंडाल देखने वालों की भीड़ लगी रहती है। अष्टमी के दिन भक्तों का विशेष रूप से तांता लगा रहता है। दशमी के दिन सिंदूर खेला करके मां को विदाई देने तक यह मस्ती और आनंद का उत्सव चलता रहेगा।

मैंने रॉयचौधरी दादा से पूछा कि हम उत्तर भारतीयों के लिए शारदीय नवरात्र नियम, संयम, व्रत का पर्व है लेकिन आपके लिए यह उत्साह, उमंग और आनंद का महापर्व क्यों है? इस पर दादा गंभीर होकर बोले –“अगर मां के घर आगमन पर बच्चे मस्ती और आनंद नहीं करेंगे तो माँ रेगे जाबे और मां को नाराज कौन करना चाहेगा?”

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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