छायाचित्रों में मनोभावों की सशक्त अभिव्यक्ति – भूपेंद्र अस्थाना
लखनऊ। किसी चित्र को चित्रित करने या किसी व्यक्ति का फोटो खींचने की प्रक्रिया को चित्रांकन कहा जाता है। यदि किसी कला प्रदर्शनी में केवल चेहरों के चित्र शामिल हैं, तो आप उसके फोकस को चित्रांकन के रूप में वर्णित कर सकते हैं। चित्रांकन चित्र बनाने की कला है, जिसमें एक व्यक्ति का बारीकी से अध्ययन किया जाता है। साथ ही उसके व्यक्तित्व की भी झलक आती है। उस व्यक्ति के तमाम भाव भंगिमाओं को भी कलाकार या छाया चित्रकार बड़े ही गहराई से देखता है और उसे प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। कुछ ऐसी ही भाव भंगिमाओं को दर्शाती हुई एक छायाचित्र प्रदर्शनी इन दिनों प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित कला स्रोत आर्ट गैलरी में चल रही है। यह उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कलाकार प्रो. जय कृष्ण अग्रवाल की शीर्षक “पावर ऑफ एक्सप्रेशन” पहली छायाचित्र की एकल प्रदर्शनी है। यह प्रदर्शनी प्रशंसित फोटोग्राफर रॉबिन बीच को समर्पित है। यदि आप लखनऊ में हैं तो इस प्रदर्शनी का अवलोकन अवश्य करें। यह छायाचित्र प्रदर्शनी 10 सितंबर तक अवलोकनार्थ लगी रहेगी।
कलाकार, छापा कलाकार, फोटोग्राफर और एक संस्मरण लेखक के रूप में प्रोफेसर जय कृष्ण अग्रवाल एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी हैं। आपके विचार और कलात्मक दुनिया से संबंधित जो भी और जब भी कुछ उनके रचनात्मक दिमाग से निकलता है, तो वह देखने और सोचने की चीज होती है। 82 वर्ष की अवस्था में भी आप बहुत ही सक्रिय हैं। हालांकि फोटोग्राफी आपका एक दूसरा पक्ष रहा है। वैसे तो कला एवं शिल्प महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य रहे कलाविद् जयकृष्ण अग्रवाल की ख्याति छापा चित्रकार के रूप में ज्यादा रही है। इसके अलावा चित्रकला के साथ-साथ फोटोग्राफी भी इनका प्रिय माध्यम रहा। जिसका एक विस्तृत स्वरूप इस प्रदर्शनी में चुनिंदा पोर्ट्रेट को देखते हुए महसूस हुआ। बातचीत से पता चला कि इन्होंने 6 दशकों से फोटोग्राफी के विभिन्न शैलियों में भी कार्य किया है, जिनमें प्रमुख रूप पोट्रेट फोटोग्राफी रही है।
लगभग 67 वर्षों की इस रचनात्मक कला यात्रा में से चयनित 50 फोटोग्राफिक पोर्ट्रेट का पहली बार प्रदर्शन किया गया। इन छायाचित्रों का चयन प्रदेश के वरिष्ठ छाया चित्रकार अनिल रिसाल ने किया। उन्होंने बताया कि जय सर के पास फोटोग्राफी का एक बड़ा संग्रह है जिसमे उनके संस्मरणों को भली भांति देखा जा सकता है। उनके जीवन काल में फोटोग्राफी एक दूसरे पक्ष में रहा है। जिसका जिक्र वे अक्सर करते रहते हैं। जब उन्होंने मुझे इन छायाचित्रों के चयन करने के लिए बुलाया तो मेरे सामने एक बड़ी चुनौती यह आयी की किन चित्रों को प्रदर्शनी के लिए चुना जाये और क्या छोड़ा जाये। बहरहाल प्रदर्शनी में कुछ ही रखनी थी तो 50 की संख्या में चुना गया जिसमे प्रमुख रूप से अलग-अलग समय में खींचे गए पोर्ट्रेट ही लिए गए। जिसमे ज्यादातर आर्टिस्ट के पोर्ट्रेट हैं। जो उन कलाकारों के वास्तविक व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो, एक चरित्र चित्र किसी व्यक्ति और उनकी विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन है। लेकिन यह सिर्फ उनकी शारीरिक विशेषताओं से परे है। चरित्र चित्रों का उपयोग किसी चरित्र के कार्यों, व्यवहार और यहां तक कि वे अन्य पात्रों को कैसा महसूस कराते हैं, इसका पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। हालाँकि यह जय सर की पहली छायाचित्र प्रदर्शनी थी अभी अन्य छायाचित्रों को फिर प्रदर्शनी के माध्यम से देखने का अवसर भविष्य में अवश्य मिलेगा। अनिल रिसाल मानते हैं कि कोई भी कला हो, कोई भी रचना हो उसे समाज के सामने अवश्य साझा करना चाहिए यह अत्यंत जरुरी है। और आज तो अनेकों माध्यम है अपनी कला को लोगों के सामने प्रस्तुत करने के लिए। प्रदर्शनी में प्रख्यात मूर्तिकार अवतार सिंह पंवार के जवानी के दिनों के पोर्ट्रेट देखा जाये तो उनके पर्सनालिटी को प्रमुखता से प्रदर्शित करती है। ऐसे लगभग सभी चित्र अपनी छाप को छोड़ते देखे जा सकते हैं।
प्रदर्शनी में बहुत दुर्लभ छायाचित्र भी शामिल किये गए हैं। जैसे कुँवर नारायण, अवतार सिंह पंवार, मदन लाल नागर, रीवा अग्रवाल, उत्तम नेपाली, हिम्मत शाह, आस्था गोस्वामी, विद्यासागर उपाध्याय सहित अनेक व्यक्तियों के छायाचित्र शामिल हैं। इसमे तमाम व्यक्तियों के भावाभिव्यक्ति को जय कृष्ण अग्रवाल ने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है। इस छायाचित्र प्रदर्शनी में हर उम्र के लोगों के फोटोग्राफ शामिल किए गए हैं। एक बच्चे से लेकर बूढ़े तक। जय कृष्ण अग्रवाल ने एक समय में छापाकला की दुनियाँ में भी बेहतरीन कार्य किया जो उनको प्रसिद्धि प्रदान की। जिसे वे अब छोड़ चुके हैं, लेकिन उन छापाकला में किए गए प्रयोग अब उनके छायाचित्रों में भी दिखते हैं। हालाँकि अब वे छायाचित्र और डिजिटली रूप में। वर्तमान में आप अपने संस्मरणों को लगातार साझा करते रहते हैं साथ ही उन पुराने छायाचित्रों के साथ जिन्हे समय समय पर खींचा है।
जय कृष्ण अग्रवाल बताते हैं कि मैं मूलरूप से चित्रकार और छापा चित्रकार हूं। फोटोग्राफी मेरे लिये सृजन का वैकल्पिक माध्यम रहा है। एक लम्बे अंतराल के उपरांत यह प्रथम एकल प्रदर्शनी है जिसमें मेरे पिछले सड़सठ वर्षो में लिये गये पचास चयनित फोटोग्राफ प्रदर्शित किये गये हैं। अग्रवाल का मानना है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके व्यक्तित्व की ताकत है जिसे उन्होंने अपने फोटोग्राफ्स में दर्शाने का प्रयास किया है। वे कहते हैं कि मेरे लिए फोटोग्राफी रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक और माध्यम है। मैं 1956 से तस्वीरें ले रहा हूं लेकिन मैंने कभी फोटोग्राफिक सैलून में प्रदर्शन नहीं किया है। फोटोग्राफी की दुनिया में मेरी सड़सठ साल की यात्रा को प्रदर्शित करने वाले चयनित चित्रों का यह मेरा पहला एकल शो है।
आप पिछले कुछ वर्षों में पोर्ट्रेट फ़ोटोग्राफ़ी में बदलते दृष्टिकोण और डिजिटल फ़ोटोग्राफ़ी के आरामदायक क्षेत्र में एनालॉग फ़ोटोग्राफ़ी की चुनौतियों को देखेंगे। मेरे फ़ोटोग्राफ़िक मॉडल मेरे लिए ज्ञात और अज्ञात लोग रहे हैं। उनकी पहचान कभी भी अधिक चिंता का विषय नहीं रही, इसके बजाय मैंने उनकी अभिव्यक्ति की शक्ति को पकड़ने की कोशिश की। मूल रूप से छापा चित्रकार रहे जय कृष्ण जी के लिये फोटोग्राफी भी एक सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। और इसके पूर्व भी वह फोटोग्राफिक आकृतियों को अपने छापा में समायोजित करते रहे है।
1 जुलाई 1941 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे जय कृष्ण ने 1962 में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, लखनऊ से ललित कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कई वर्षों तक इसी कला संस्थान के प्राचार्य के पद पर भी रहे। 50 वर्षों से अधिक के करियर के साथ, जय कृष्ण अग्रवाल ने कई समूह और एकल प्रदर्शनियों में अपने कार्यों का प्रदर्शन किया है। प्रिंटमेकिंग के माध्यम में उनके प्रयासों को तब मान्यता मिली जब उन्हें ललित कला अकादमी द्वारा दो बार राज्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शुरुआत में उन्हें कॉलेज के प्रिंसिपल रहे सुधीर रंजन खस्तगीर द्वारा प्रिंटमेकिंग की कला से परिचित हुए।
उसके बाद शिक्षक के रूप कला महाविद्यालय में अपनी सेवाएँ दीं। बाद में उन्हें मुकुल दे, रामिन्द्रनाथ चक्रवर्ती, फ्रैंक ब्रैंगविन और एल.एम. सेन और अन्य द्वारा लकड़ी/लिनो-कट्स, ड्राई पॉइंट और नक़्क़ाशी के बारे में पता चला। आपने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थोड़ी-बहुत सुविधाओं के साथ इस माध्यम को तलाशने की कोशिश की। आपको 1972-73 में ब्रिटिश काउंसिल स्कॉलरशिप पर स्लेड स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स, लंदन में प्रिंटमेकिंग में उन्नत काम करने का अवसर मिला। जहां उन्होंने दुनिया के अधिकांश हिस्सों के कई प्रिंटमेकर्स के साथ बातचीत की और मास्टर प्रिंटमेकर्स के सीधे संपर्क में आए।
जय कृष्ण अग्रवाल देश के स्वतंत्रता के बाद के युग के प्रमुख प्रिंट निर्माताओं में से एक माना जाता है। माध्यम के परिवर्तन के बावजूद, उनके गिकली (इंकजेट प्रिंटर पर बने ललित कला डिजिटल प्रिंट के लिए प्रिंटमेकर जैक डुगेन द्वारा 1991 में गढ़ा गया एक शब्द) प्रिंट न केवल धातु की प्लेटों पर उनकी सावधानीपूर्वक की गई नक्काशी और एक्वाटिंट का अनुकरण करते हैं, बल्कि उनकी रचनात्मकता के लिए एक अतिरिक्त आयाम भी प्रदर्शित करते हैं। 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको यश भारती सम्मान से भी सम्मानित किया। आपके कृतियों का संग्रह देश विदेशों में संग्रहीत है।