आजादी विशेष : 09 अगस्त 1947- दंगों में जल रहा था कोलकाता, शांति के लिए पहुंचे गांधी जी

वेब डेस्क, कोलकाता। भारत की आजादी केवल 05 दिन दूर थी। पूरे देश का एक सपना हकीकत में बदलने जा रहा था। ये दशकों चले आजादी की लड़ाई की सुखद परिणति थी। 09 अगस्त 1947 को गांधीजी पटना में थे। कलकत्ता में जबरदस्त दंगे भड़के हुए थे। हिंसा की खबरें आ रही थीं। पंजाब से आने वाली खबरें इससे अलग नहीं थीं। भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंटबेटन चाहते थे कि दो देशों की सीमा रेखा बांट रहे सर रेडक्लिफ उन्हें देर से रिपोर्ट दें लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं थे। गांधीजी कलकत्ता को शांत करने के लिए वहां चल दिए।

गांधीजी एक दिन पहले शाम को पटना पहुंच गए थे। उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहा। गांधी जी ने सुबह वहां अपना प्रार्थना मीटिंग के बाद फिर यही कहा, बेशक दो देश बन रहे हैं लेकिन हम लोग वही हैं। हमारी भावनाएं वैसी ही रहनी चाहिए। उन्होंने बिहार में बहुसंख्यकों से हिंसा नहीं होने देने के लिए भी आगाह किया।

गांधीजी से कलकत्ता जाने के लिए कहा गया

इसी प्रार्थना सभा में किसी ने गांधीजी से कलकत्ता जाने के कहा, जहां दंगे काफी ज्यादा भड़के हुए थे। उन्होंने कहा कि वो जरूर वहां जाना पंसद करेंगे। भले ही वहां सांप्रदायिक दंगों को शांत करने में उनकी जान ही नहीं चली जाए। गांधीजी शाम को वहां से कलकत्ता के लिए रवाना हुए। हालांकि उनको स्टेशन पहुंचने में देर हुई लेकिन ट्रेन भी लेट थी। ट्रेन में ही उन्होंने गुजराती हरिजन बंधु के लिए लेख लिखा।

माउंटबेटन का रेडक्लिफ पर दबाव

माउंटबेटन चाहते थे कि रेडक्लिफ अपनी सीमा बंटवारे संबंधी रिपोर्ट देर से दें। उन्हें लग रहा था कि ये 15 अगस्त से पहले आने और उसे प्रकाशित किए जाने के बाद व्यापक गड़बड़ियां हो सकती हैं। इसका ठीकरा ब्रिटेन पर फुटेगा। रेडक्लिफ नहीं माने। उन्होंने कहा कि वह हर हालत में ये रिपोर्ट 13 अगस्त तक दे देंगे।

वो आग्रह जो रेडक्लिफ के पास आ रहे थे

कई शहरों को लेकर भारत और पाकिस्तान के नेताओं के अपने आग्रह थे कि इसे किस देश में रहना चाहिए। तमाम समुदायों के भी अलग अलग दबाव थे। माउंटबेटन ने इस रिपोर्ट में कोई भी आग्रह या दबाव मानने से मना करते हुए कहा कि सीमा आयोग के अध्यक्ष रेडक्लिफ निष्पक्षता से अपना काम करें।

वो जो भी रिपोर्ट देंगे वो फाइनल होगी

गौरतलब है कि जून के आखिरी हफ्ते तक खुद सर सीरिल रेडक्लिफ तक को नहीं मालूम था कि उन्हें ये जिम्मेदारी दी जा रही है। सीमा रेखाएं खींचने से पहले वह बहुत से संबंधित इलाकों में भी नहीं गए। न ही उन्हें भारतीय संस्कृति के बारे में ही कुछ मालूम था। उन्हें ये काम करने के लिए सच कहिए तो बहुत कम समय मिला था। महज छह हफ्ते। इतने समय में दो देशों की हजारों किलोमीटर की सीमाएं खींचना आसान नहीं था। ये सब वाकई बहुत अटपटे तरीके से हुआ।

हैदराबाद पर चर्चा के लिए मीटिंग

माउंटबेटन ने पंजाब और हैदराबाद पर चर्चा के लिए सुबह 11 बजे अपने स्टॉफ की बैठक बुलाई, जिसमें कहा गया कि सीमा आयोग के अध्यक्ष शाम तक पंजाब पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर लेंगे। बैठक में अधिकारियों ने इसके प्रकाशन में देरी का सुझाव दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − 17 =