स्वीटी दास की कविता : झुक गया सिर इस धरा पर

।।झुक गया सिर इस धरा पर।।
स्वीटी दास

झुक गया सिर इस धरा पर
विश्वगुरु बतलाने पर
नही मानते अब के युवा
लाख उन्हें समझाने पर,
रामराज्य की परिकल्पना
लेकर हम चलते थे,
लोकतंत्र की जननी भारत
सबसे यही कहते थे,
मणिपुर का चीर हरण
लोकतंत्र पर भारी है
नग्न हुई बेटियों की प्रतिष्ठा
यही संस्कृति हमारी है?
यह तपो भूमि और देव भूमि
नही हमें गंवारा है
लज्जा लूटती जब तक यहां
यह भूमि नही मुझे प्यारी है,
लोकतंत्र का मुखिया मौन है
प्रशासन क्या सोता है?
मणिपुर का यह कलंक
क्यों नहीं कानून से धोता है?
लेकर खड्ग जब चल पड़ेगी
भारत की यहां नारी
होगा प्रलय विकराल रूप में
होगी अब तैयारी।
जय भवानी

स्वीटी कुमारी

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