उत्तर प्रदेश में आधुनिक मूर्तिकला को प्रतिस्थापित करने वाले मूर्तिकार थे अवतार सिंह पंवार

– 21वीं पुण्यतिथि पर याद किए गए प्रख्यात मूर्तिकार अवतार सिंह पँवार
– सप्रेम संस्थान द्वारा आयोजित किए गए कला कार्यशाला

लखनऊ। सप्रेम संस्थान व अस्थाना आर्ट फोरम ने उत्तर प्रदेश के कलाकारों को याद करने की परंपरा की शृंखला में मंगलवार को प्रसिद्ध मूर्तिकार अवतार सिंह पँवार को उनकी 21वीं पुण्यतिथि पर चुनिन्दा युवा चित्रकारों के साथ एक कला कार्यशाला के माध्यम से याद किया। लखनऊ सदैव से कलाकारों एवं साहित्यकारों की नगरी रही है। यहाँ एक से एक रचनाकार हुए जिंहोने अपनी कला के माध्यम से देश दुनिया में परचम लहराया है। ऐसे ही एक कला विभूति अवतार सिंह पँवार रहे हैं जिनकी कला की प्रसंशा लोग आज भी करते हैं। सोमवार को वास्तुकला एवं योजना संकाय टैगोर मार्ग परिसर के आर्ट्स एंड ग्राफ़िक में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमे लखनऊ के आठ युवा चित्रकारों ने भाग लिया और एक-एक कलाकृति अपनी शैली में रचते हुए कला आचार्य अवतार सिंह पँवार को याद किया। इस कार्यशाला के क्यूरेटर भूपेन्द्र कुमार अस्थाना रहे। इस अवसर पर गिरीश पाण्डेय, धीरज यादव, रत्नप्रिया कान्त, अविनाश भारद्वाज उपस्थित रहे।
भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की कार्यशाला के आरंभ में चित्रकारों को अवतार सिंह पँवार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक सामूहिक चर्चा किया गया। ताकि लोग इस महान कलाकार से अच्छे से परिचित हों सकें। इस कला कार्यशाला में दीपेन्द्र सिंह, शिवानी यादव, हमना, सल्तनत, शुभी अग्रवाल, जितेंद्र कुमार, आयुषी और विनय सिंह शामिल हुए। सभी कलाकारों ने कैलीग्राफ़ी, पेंटिंग और टेक्सटाइल, जलरंग इत्यादि माध्यम मे कलाकृतियाँ तैयार की। अस्थाना ने बताया की इस चर्चा में देश के कुछ महत्वपूर्ण कलाकारों ने भी अपने भाव अपने शब्दों के माध्यम से संदेश हमें भेजे जिसमें लोगों ने पँवार से संबन्धित स्मृतियों को साझा किया।

अवतार सिंह पँवार के पुत्र मूर्तिकार एवं विश्व भारती यूनिवर्सिटी, शांतिनिकेतन से पंकज पँवार ने लिखा कि मेरे पिता अवतार सिंह पंवार एक दृश्य कलाकार के रूप में मेरी पहली प्रेरणा थे… मैंने उनसे जीवन को साहस के साथ और अपनी शर्तों के साथ जीना भी सीखा!! लखनऊ से वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल ने लिखा बताया कि कलागुरू अवतार सिंह पवार की सन् 1956 में लखनऊ कला महाविद्यालय में मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हुई थी। वह मूर्तिकला के अतिरिक्त वाश पेन्टिंग और म्यूरल पेन्टिंग में भी सिद्धहस्त थे।

प्रधानाचार्य खास्तगीर साहब ने उन्हें अपने विभागीय दायित्वों के अतिरिक्त पेन्टिंग के छात्रों को म्यूरल पेन्टिंग सिखाने का दायित्व भी सौंप दिया। उन दिनों मैं भी छात्र था और मुझे भी पवार साहब से म्यूरल सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ किन्तु दो वर्ष बाद ही पवार साहब ने इस दायित्व से अपने को अलग कर लिया। कारण को लेकर भले ही अनेक अटकलें रही हों किन्तु सच तो यह है कि पवार साहब के म्यूरल की कक्षाएं छोड़ने के उपरांत इस विधा को लेकर हम छात्रों में एक खालीपन व्याप्त हो गया था। पवार साहब को मानव और पशु पक्षियों की शारीरिक संरचना का बहुत अच्छा ज्ञान था। जब उनके हाथ की कलम कागज पर चलती तो चमत्कृत कर देने वाली रेखाएं उभरने लगतीं और हम हत्प्रभ होकर उनको रेखांकन करते देखते रहते…।

वरिष्ठ कला इतिहासकर अखिलेश निगम ने बताया कि कला गुरु अवतार सिंह पंवार जी सच्चे अर्थों में एक कलाकार थे। उनका मूल विषय तो मूर्ति कला था परंतु ललित कला की विभिन्न विधाओं में वे पारंगत थे। उनकी कला में एक जीवंतता थी। कुत्तों और मुर्गों के शौक़ीन पंवार जी ने इन्हें भी अपना सब्जेक्ट बनाया था। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका सानिध्य प्राप्त था, जिसने कला की बारीकियां समझने में मुझे मदद की। उनकी 21वीं पुण्य तिथि पर उन्हें मेरी विनम्र पुष्पांजलि।

वरिष्ठ मूर्तिकार व डीन शकुंतला पुनर्वास विश्वविद्यालय ललित कला के पाण्डेय राजीव नयन ने बताया कि अवतार सिंह पंवार का योगदान उत्तर प्रदेश में आधुनिक मूर्तिकला को प्रतिस्थापित करने वाले मूर्तिकार के रूप में देखा जा सकता है। वे एक ऐसे मूर्तिकार थे जो आधुनिकता के साथ साथ अकादमिक स्तर से भी उतने ही सशक्त थे। लखनऊ उनका कर्म स्थल रहा है। वे एक ऐसे कलाकार थे जो आत्मसम्मान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने के साथ ही मौलिक विचार एवं जीवन जीने का अपना अलग दृष्टिकोण रखते थे जिसका जीवन पर्यंत उन्होने निर्वहन किया। मैं व्यक्तिगत रूप से उन्हे अपने बाल्यकाल से देखता एवं सुनता रहा हूं मुझे लगता है उन्होने कला को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया था। जहां व्यक्तिगत उपलब्धि एवं भौतिक उपलब्धि का कोई स्थान नहीं होता है।

मूर्तिकार राजेश कुमार, वाराणसी से बताया कि मूर्तिकार अवतार सिंह पंवार एक संजीदा और सिद्धहस्त कलाकार थे। मैं अपने छात्र जीवन में (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के दृश्य कला संकाय मूर्तिकला विभाग) मूर्तिकला अध्ययन काल में वाराणसी से जब भी लखनऊ जाना होता, लखनऊ महाविद्यालय के कला एवं शिल्प विभाग में ऐसे कला गुरू का होना एक गौरव की बात समझी जाती थी। मैं पंवार साहब के आवास सह स्टुडियो पर जाने पर वहां की मिट्टी को नमन करने के पश्चात जरूर उनसे मिलता। बाहर आदमकद खड़ी प्रतिमा और अंदर के आवक्ष त्रिआयामी प्रतिमा खुब आकर्षित करती। कई बार तो वे क्ले मॉडलिंग करते हुए मिलते तो उनकी हाथों की अंगुलियों का जादू देखना बहुत कुछ अनकहे सीख दे जाती। वे अकादमिक शैली को अपनाते हुए सदा प्रयोगधर्मी मूर्तिकार की श्रेणी में आते हैं। उत्तराखंड के एक संग्रहालय में उनकी एक जीवंत पोट्रेट शिल्प ने मुझे बहुत प्रभावित किया।

अवतार सिंह पंवार का जन्म 14 जनवरी 1929 को टिहरी गढ़वाल के लसिया पट्टी के धनिया गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा देहरादून और मसूरी में हुआ। उन्होंने 1953 में ललित कला में डिप्लोमा कला भवन शांतिनिकेतन से रामकिंकर बैज से मूर्तिकला में प्रशिक्षण लिया। भित्तिचित्रण में प्रशिक्षण आचार्य नंदलाल बोस और कृपाल सिंह शेखावत से लिया। एक अच्छे कला गुरु, कलाकार और कला मर्मज्ञ रहे। मूर्तिकार, चित्रकार, शिक्षाविद, कला समीक्षक के साथ ही कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ मूर्तिकला 1956-1989 तक विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे। इनके कृतियों की प्रदर्शनी 1956 से लगातार ललित कला अकादमी, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी, लखनऊ, बिड़ला अकादमी ऑफ आर्ट एंड कल्चर, कोलकाता, स्कल्पटर्स फोरम आदि संस्थाओं द्वारा विभिन्न स्थानों पर आयोजित प्रादेशिक एवं अखिल भारतीय कला प्रदर्शनियों के अतिरिक्त अनेक समूह प्रदर्शनियों में भागीदारी रही।

इनकी एकल प्रदर्शनी सूचना केंद्र लखनऊ में 1964 में, बिड़ला अकादमी ऑफ आर्ट एंड कल्चर, कोलकाता, रविन्द्र भवन नई दिल्ली में लगाई गई। पुरस्कार के रूप में राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा 1964 में, अकादेमी ऑफ फाइन आर्ट्स कोलकाता द्वारा 1967 में, अधिसदस्यता सम्मान 1987 में राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा, यश भारती सम्मान 1994 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा, डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की उपाधि 1994 में कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा, कला भूषण सम्मान उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा 1996 में, श्रेष्ठ कलाकार सम्मान गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा 2001 में और चन्द्रज्योति सम्मान 2002 में कोटद्वार द्वारा प्रदान किया गया।

इन्होंने अनेकों कला शिविरों में भी भाग लिया उत्तर प्रदेश, महाबलीपुरम, ग्वालियर, जम्मू कश्मीर, श्रीनगर आदि स्थानों पर। अवतार सिंह पंवार ने मदर टेरेसा, बादशाह खान, इंदिरा गांधी, एन.टी. रामाराव, महादेवी वर्मा, सुनील गावस्कर, अमिताभ बच्चन, चंद्र सिंह गढ़वाली, मुकंदी लाल बैरिस्टर, ललिता प्रसाद नैथानी, गुरु टैगोर जैसी दुनिया की सैकड़ों महान हस्तियों के चित्र बनाए। पवार बचपन से ही अलग प्रवृत्ति के थे। उनका निधन 73 वर्ष में 18 जुलाई 2002, गुरुवार को कोटद्वार (उत्तराँचल) में दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था।

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