योग और संगीत दिवस का संगम – संगीत पर योग का प्रचलन बढ़ा
आधुनिक डिजिटल युग में संगीत पर योग का प्रचलन बढ़ा – संयोग से दोनों का अंतरराष्ट्रीय दिवस 21 जून 2023 है – एडवोकेट किशन भावनानी
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर 21 जून 2023 को मानवीय शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने की दो क्रियाओं के दिवस के रूप में बहुत उत्साह और आगाज से मनाया गया, जिसे हम विश्व योग दिवस और विश्व संगीत दिवस के रूप में मनाए हैं। वैसे तो विश्व संगीत दिवस 1981 से मनाया जाता है। जबकि विश्व योग दिवस 2015 से मनाया जाता है। यह संयोग ही होगा कि जिस संयुक्त राष्ट्र ने दिनांक 2014 में 21 जून को योग दिवस के रूप में घोषित किया था वहीं 21 जून 2023 को योग दिवस हमारे माननीय पीएम के नेतृत्व में मनाया गया। देखा जाए तो मानवीय शरीर को स्वस्थ रखने में दोनों का महत्वपूर्ण रोल है परंतु यह भी एक संयोग ही है कि दोनों के संगम से ही मानवीय शरीर को मजबूती से स्वस्थ रखा जा सकता है।
वर्तमान डिजिटल युग में संगीत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पाश्चात्य ऐसी धुनें तरंगे तैयार की गई है जिसमें योग अकेले और सामूहिक रूप से किया जा सकता है। हमने आज 21 जून 2023 को अनेक स्थलों पर देखे कि संगीत की धुनों पर योग किया गया। हमारे शहर गोंदिया में भी अनेक स्थानों पर संगीत की धुनों पर योग सुबह 6 से 8 बजे तक विभिन्न चरणों स्थानों में आयोजित किया गया था जहां भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी। वैसे भी माननीय पीएम ने पूरे देश में पंचायती स्तरपर योग दिवस योगा करके मनाने की बात कही थी जिसका पालन स्वतः संज्ञान लेकर किया गया था क्योंकि विश्व योग और संगीत दोनों मानवीय शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम है और योग की चर्चा हम पिछले दो आर्टिकलो में कर चुके हैं, इसलिए आज हम मनाए गए विश्व संगीत दिवस की चर्चा मीडिया में दी गई जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से करेंगे, योग और संगीत दिवस का संगम, संगीत पर योग का प्रचलन बढ़ा।
साथियों बात अगर हम संगीत की करे तो, संगीत न सिर्फ शारीरिक, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। विशेषज्ञों की मानें, संगीत सुनने से मानसिक शांति का अहसास होता है। रोज की भागदौड़ और व्यस्तता के बीच संगीत हमको सुकून के पल बिताने का मौका देता है। साथ ही संगीत हमारे अकेलेपन का एक बढ़िया साथी भी बन सकता है। संगीत सुनना हर उम्र के व्यक्ति को पसंद है फिर चाहे युवा हो या वयस्क। हम यह कह सकते हैं कि आज संगीत लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुका है।
साथियों भारत आदि अनादि काल से प्रतिभाओं का धनी रहा है। यहां हर क्षेत्र में ऐसी अनेक गौरवशाली प्रतिभाएं हैं अगर हम उनका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के यहां कुछ ही नहीं बल्कि हर नागरिक में एक शौर्य प्रतिभा समाई हुई है जिसका अंदाज़ शायद उस प्रतिभावान व्यक्ति को भी नहीं होगा। भारत में संगीत का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्त्रों वर्ष पुराना है, पौराणिक काल से ही ज्ञान की देवी कही जाने वाली देवी सरस्वती को वीणा वादिनी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है उन्हें भगवान शिव ने संगीत की शिक्षा दी थी और शिव को वेदों के निर्माता ब्रह्मा ने संगीत का ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसके बाद माता सरस्वती से यह कला नारद मुनि को प्राप्त हुई जिन्होंने इसे स्वर्ग लोक की अप्सराओं, गन्धर्वों और किन्नरों तक पहुँचाया। तभी से भगवान शिव का डमरु हो या कृष्ण की बांसुरी सब से ही सुर-संगीत निकलता रहा है। इनके अलावा इसमें कबीर, रहीम, तुलसीदास और मीरा जैसे अहम नाम शामिल है। इन सभी तथ्यों से यह साफ हो जाता है कि भारतीय संस्कृति में पौराणिक काल से ही संगीत का अस्तित्व रहा है और समस्त देवता गण इसे एक सूत्र में पिरोते आए हैं।
साथियों बात अगर हम संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाओं की करें तो आज हम यह विशेषता पारंपरिक प्लस आधुनिक संगीत दोनों में देखते हैं क्योंकि आज योगा क्लास, व्यायाम, पीटी इत्यादि फिटनेस के तरीकों में हम देखते हैं कि इसकी प्रक्रिया में मानवीय संकेतों, निर्देशों आवाजों का स्थान अब गीतों ने ले लिया है याने अब यह सब प्रक्रियाएं गीतों के माध्यम से होती है। इधर कोई भी नया पुराना गीत चलता है और योगा, व्यायाम, पीटी की प्रक्रिया होती है। याने संगीत में मानवीय काया निरोगी करने की भी अपार क्षमता है। जो कुल 110 देशों में ही मनाया गया।
साथियों बात अगर हम सड़क ट्रेन मंदिरों फुटपाथों चौराहों परअपनी कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों की करें तो, हम सब ने उनकी अभूतपूर्व प्रतिभा देखी होगी कि कितनी मीठी वाणी में गीत गाते हैं, दो पत्थरों डिब्बों या अन्य वेस्ट चीजों से अभूतपूर्व संगीत बजाते हैं जैसे कोई अद्वितीय वाद्य हो और इस कला का प्रदर्शन देख हम उन्हें पांच दस रुपया दे देते हैं जिनमें उनकी रोजी-रोटी चलती है परंतु हमने उनकी उस कला को शिखर तक पहुंचाने, उन्हें साथ देने की कभी सोचे नहीं या सोचे भी तो कितनी रानू मंडल जैसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ाएं? यह एक सोचनीय प्रश्न है? हालांकि सरकारी समय समय पर कुछ प्रोत्साहन उत्सव चलाती रहती है।
साथियों बात अगर हम सदियों पुराने भारत के मशहूर शास्त्रीय संगीत के फनकारों और उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम भारत की रंगबिरंगी अनेक संगीत कलाओं की करें तो आज भी किसी विशेष अवसर पर हम इन फनकारों का करिश्माई हुनर की काबिलियत देखने को मिलती है और आजकल के युवा यह देखकर हैरान रह जाते हैं।हालांकि हम यह भी देख रहे हैं कि साल दर साल हमारे पारंपरिक विभिन्न प्रदेशों के संगीत की शैली और निरंतरता में कमी आ रही है क्योंकि यह क्षमता में गिरावट पीढ़ी दर पीढ़ी से होने के कारण पूर्व जैसा वज़न आज परंपरागत संगीत शैलियों में नहीं मिल रहा है और धीरे-धीरे यह विलुप्तता की और बढ़ रही है।
साथियों बात अगर हम पुराने संगीत शैलियों,परंपरागत भारतीय संगीत की परंपराओं को संरक्षित, सुरक्षित करने और विलुप्तता से बचाने की करें तो सबसे पहले हमें युवाओं को इस पारंपरिक संगीत की ओर प्रेरणा देकर उनमें रुचि जगाना होगा क्योंकि आज 65 फ़ीसदी भारतीय जनसंख्या युवा है और अधिकतम युवा पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुची में मज़बूर होते जा रहे हैं उन्हें अंग्रेजी गाने हिंदी धूम-धड़ाके वाले गीत और वर्तमान परिपेक्ष जमाने के गीतों में अधिक उत्साह और चाहत दिखती है।
साथियों बात अगर हम युवाओं में इस पारंपरिक संगीत की ओर रुझान देने की करे तो इसमें हमारे बड़े बुजुर्गों, शिक्षकों, अभिभावकों का महत्वपूर्ण योगदान की जरूरत है। क्योंकि युवा इनके संपर्क में ही बचपन से बड़े होते हैं और इसलिए इनपर बचपन से ही भारतीय पारंपरिक संगीत के प्रति रुझान पैदा करने की ज़रूरत है ताकि यह अपनी पीढ़ियों में इस संगीत को संरक्षित, सुरक्षित कर अगली पीढ़ियों को प्रोत्साहित करेंगे। भारतीय परंपरागत संगीत -भक्ति और श्रृंगार रस हैं परंपरागत भारतीय संगीत की परंपराओं को संरक्षित और सुरक्षित करना ज़रूरी है। संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाएं हैं।
साथियों संगीत भारत के हर गली और कोने में सुनाई देता है। खुले आसमान के नीचे अपनी बांसुरी और ताली बजाते हुए राहगीरों का मिलना कोई अचरज वाली बात नहीं है। चाहे बारिश हो या धूप ये लोग आसानी से मिल जाते हैं। जिन्हें रोजमर्रा की ज़िंदगी में थोड़ी सी भी नीरसता दूर करने लिए शायद ही कभी धन्यवाद दिया जाता है। हमारे पास दुर्लभ संगीत वाद्ययंत्रों का ढेर भी है जो अपनी कम होती लोकप्रियता और घटते संरक्षण के कारण धीरे-धीरे सार्वजनिक डोमेन से दूर होते जा रहे हैं।
साथियों बात अगर हम विश्व संगीत दिवस मनाने की करें तो इसको मनाने का उद्देश्य अलग अलग तरीके से लोगों को संगीत के प्रति जागरूक करना है ताकि लोगों का विश्वास संगीत से न उठे। इसको मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से म्यूजिक का प्रोपेगैंडा तैयार करने के अलावा एक्सपर्ट व नए कलाकारों को इक्कठा करके एक मंच पर लाना है। विश्व भर में, इस दिन संगीत और ललित कला को प्रोत्साहित करने वाले कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।संगीत हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो न केवल मन को शांति पहुंचाता है बल्कि हमें खुश रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ऐसे में हर वर्ष विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है।
साथियों संगीत को भारत में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की करें तो, भारत में गीत-संगीत, नृत्य,नाटक कला, लोकपरंपराओं, कला-प्रदर्शन, धार्मिक संस्कारों एवं अनुष्ठानों चित्रकारी एवं लेखन के क्षेत्रों में एक बहुत बड़ा संग्रह मौजूद है। जो मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में जाना जाता है। इनके संरक्षण हेतु संस्कृति मंत्रालय ने विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं को कार्यान्वित किया है। जिसका उद्देश्य कला प्रदर्शन, दर्शन एवं साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों, समूहों एवं सांस्कृतिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, दुनियां नें योग और संगीत दिवस 21 जून 2023 को मनाया। योग और संगीत दिवस का संगम – संगीत पर योग का प्रचलन बढ़ा।आधुनिक डिजिटल युग में संगीत पर योग का प्रचलन बढ़ा – संयोग से दोनों का अंतरराष्ट्रीय दिवस 21 जून 2023 है।