कोलकाता। साहित्य अकादेमी के क्षेत्रीय कार्यालय, कोलकाता द्वारा अपनी विशिष्ट कार्यक्रम शृंखला “दलित चेतना” के अंतर्गत “बांग्ला साहित्य में दलित चेतना” विषयक विमर्श का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादेमी में बांग्ला भाषा परामर्श मंडल की सदस्या तथा प्रख्यात लेखिका कल्याणी ठाकुर चाँड़ाल ने की। आरंभ में औपचारिक स्वागत भाषण करते हुए अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव ने सौ वर्षीय बांग्ला दलित साहित्य की परंपरा को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में मनोरंजन व्यापारी, असित विश्वास, मृण्मय प्रामाणिक एवं मंजुबाला ने अपने विचार प्रकट किए। वक्ताओं ने इस बात को रेखांकित किया कि बांग्ला दलित साहित्य किस प्रकार ब्राह्मणवादी कुचक्र के शिकार दलित समाज की चेतना और उसके प्रतिरोध को अपने में समाहित किए हुए है। असित विश्वास ने बांग्ला नाटक, मंजुबाला ने चुनी कोटाल की आत्मकथा तथा मृण्मय प्रामाणिक ने तुलनात्माक साहित्य को लेकर अपने विचार रखे।
पश्चिम बंग दलित साहित्य अकादमी के अध्यक्ष मनोरंजन व्यापारी ने दलित विषयक प्रचलित शब्दों को संदर्भित करते हुए चेतना को साहित्य के साथ-साथ जीवनचर्या में भी शामिल करने पर बल दिया। अंत में औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।