नई दिल्ली। हाईस्कूल (10वीं) की परीक्षा में मुझे हिंदी में 58 जबकि बायोलॉजी में 75 (डिस्टिंक्शन) अंक मिले। इंटरमीडिएट में मुझे अंग्रेजी में मात्र 46 जबकि रसायन विज्ञान में 63 अंक मिले। अगर परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर कोई राय बनाई जाए तो हाई स्कूल के अंक मेरी रुचि मेडिकल फील्ड में दर्शाते हैं जबकि इंटरमीडिएट के नंबर मुझे फार्मा क्षेत्र में कैरियर बनाने को कहते हैं। लेकिन इंटरमीडिएट के बाद मैंने वायुसेना की तकनीकी शाखा को कैरियर के रूप में चुना। वायुसेना में जाने के बाद मुझे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में लगभग 72% अंक और ‘आउट आफ टर्न’ प्रमोशन मिला। सुखोई-30 वायुयान के टेट्रा कोर्स में ‘बेस्ट इन ट्रेड’ मिला। AME परीक्षा के पहले प्रश्न पत्र में मुझे 100 में से 90 अंक (हैदराबाद रीजन में सबसे अधिक) मिले।
उक्त अंको के आधार पर धारणा बनाई जाए तो मुझे तकनीकी रूप से पारंगत, दक्ष होना चाहिए। लेकिन मुझे हमेशा से पता था कि मैं टेक्निकल मामलों में बेहद कमजोर हूँ। सिर्फ मैं ही जानता था कि साहित्य में मेरी आत्मा बसती है। इसीलिए वायु सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद मैंने सिर्फ और सिर्फ अनुवाद क्षेत्र में रोजगार के लिए परीक्षा दी। आज एक प्रतिष्ठित संगठन में अनुवाद अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा हूं। ठीक ठाक पैसे मिलते हैं, प्रतिष्ठा भी है और सबसे बड़ी बात यह कि अपने मन का कार्य कर रहा हूँ।
बच्चों, किसी भी परीक्षा में रटकर प्राप्त किए हुए अंक तुम्हारी क्षमता का प्रतिनिधित्व नहीं करते। तुम्हारी वास्तविक प्रतिभा सिर्फ और सिर्फ तुम्हें पता है। इसलिए परीक्षा में किसी विषय मे कम अंक प्राप्त करने पर बिल्कुल भी निराश न हो। कोई गलत कदम उठाने की तो भूलकर भी न सोचो। क्योंकि आज की तिथि में कोई भी सरकारी या निजी संगठन या विभाग तुम्हारे हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के अंकों के आधार पर तुम्हें नौकरी नहीं देता है। अब तो विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश भी परीक्षा के आधार पर होता है।
इसलिए चिल करो बच्चों क्योंकि –
“जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी हैं।
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।।
अभी तो नापी है मुठ्ठीभर जमीन तुमने।
आगे सारा आसमान बाकी है।।
(विनय सिंह बैस)
अनुवाद अधिकारी
लोकसभा सचिवालय