डीपी सिंह की रचनाएं

।।ज़िन्दगी।।

वक़्त की छलनी से होकर उम्र छनती जा रही है
देह, लगता है धनुष की भाँति बनती जा रही है
ख़त्म होने को मगर राज़ी कहाँ हैं चाहतें भी
ज़िन्दगी और मौत में तकरार ठनती जा रही है
डीपी सिंह

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