कोलकाता : कोरोना रोगियों के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जोर के बाद दार्जिलिंग की पहाड़ियों में सिनकोना की खेती करने वालों की उम्मीदें एकबार फिर से जग गई है। इस पौधे की छाल का उपयोग कुनैन और मलेरिया की अन्य दवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है। दार्जिलिंग से सिनकोना की खेती 1862 में शुरू हुई थी। अगले कई दशकों तक इसकी खेती खूब होती रही और इससे देश की विशाल आबादी को मलेरिया से निजात मिलने में मदद मिलती रही।
विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार 2016 में, भारत की आधी से अधिक आबादी (69.8 करोड़ लोग) को मलेरिया होने का खतरा था। कुनैन के कृत्रिम-रासायनिक उत्पादन की शुरुआत के बाद इस उगाने वाले लोग को संकटों का सामना करना पड़ा। सिनकोना प्लांटेशन्स, पश्चिम बंगाल के निदेशक सैमुअल राय ने कहा कि हमें उम्मीद है कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर मलेरिया-रोधी दवाओं की मांग बढ़ने के कारण दार्जिलिंग में सिनकोना की खेती में वृद्धि होगी। हम सालों की निराशा के बाद अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं।