विपरीत हो रहे हैं हालत, अपने बच्चों को संभालें

कोलकाता। अभिभावकों से दूर रहकर युवा बच्चे गलत फैसले कर सकते हैं। उनकी जिन्दगी पटरी से उतरकर, भूल के जंगल में खो सकती है। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता उनके अडिय़लपन को नजरअंदाज करें, उन्हें समझें, उन्हें अकेला ना छोड़ें। मनोविज्ञान की दृष्टि से इस सामाजिक आपातकाल को देखें-समझें। अभिभावक बच्चों के साथ मनोविज्ञान के सुझाए गए सरल सिद्धान्तों पर अमल करके बहुत मधुर और भावनात्मक रूप से सम्बन्ध विकसित कर सकते हैं। आइए डालते हैं एक नजर मनोविज्ञान के उन सिद्धान्तों पर जिनकी नींव पर मजबूत रिश्ते कायम हो सकते हैं :-

उपलब्धता
बच्चों की विकासशील अवस्था में कदम-कदम पर उन्हें आपकी जरूरत होती है। आपके द्वारा उपलब्ध कराए हुए साधन उस समय आपकी कमी पूरी नहीं कर पाएंगे। उनके लिए आपका मौजूद होना, उनकी बात सुनने के लिए तत्पर रहना, उनकी बात के जरिये उन्हें समझना, उनके लिए अमूल्य है।

भाषण नहीं, संवाद करें
तुम ये क्यों कर रहे हो, तुम्हें यह नहीं करना चाहिए, पागल है क्या करने से पहले कुछ सोचता नहीं है, तुम्हें ऐसा करना चाहिए इस तरह के निर्देशों से बच्चे बहुत जल्दी उकता जाते हैं। बढ़ते बच्चों के साथ विशेष रूप से किशोरावस्था में आ चुके बच्चों के साथ ऐसा संवाद स्थापित करना उन्हें स्वयं से दूर करने का सबसे बड़ा कारण है। बढ़ते बच्चों के साथ ऐसा संवाद स्थापित करना चाहिए जहाँ आप उन्हें अपने समानान्तर रखकर उनके मत का भी सम्मान कर पाएं। ऐसा करने से बच्चे अपनी बात आपसे खुलकर रख पाएंगे। उनके साथ आप स्वयं को भी और अपनी सोच को विकसित होने का मौका देंगे।

बच्चों के जीवन में रुचि लेना
बच्चों के जीवन में क्या हो रहा है। उनके मोबाइल गेम, उनके कार्टून, उनके सोशल मीडिया एप्स, उनके रियल और वर्चुअल दोस्त, उनकी पसंदीदा वेब सीरीज, पसंदीदा खेल और खिलाड़ी, इनकी जानकारी रखना, इनके बारे में जानने की उत्सुकता दिखाना, उनकी दुनिया में जाकर उनके साथ समय बिताना, परिचित होना यह सब ऐसे कदम हैं जो निश्चित रूप से उन्हें आपके करीब लाने का काम करेंगे।

संवेदना
बच्चों के मन को पढ़ पाना, उसे समझ पाना, बिना प्रतिक्रिया दिए, उनके मन की बात को पूरी संवेदना के साथ सुन पाना, एक अभिभावक के लिए बच्चों के मन में सदा के लिए घर बनाने के बराबर है। अगर आप से उन्हें संवेदना नहीं मिली तो वे किसी और से भी इसकी उम्मीद नहीं कर पाएंगे।

अगर माँ-बाप के साथ ही उनके मन में असुरक्षा की भावना रही तो आगे आने वाले सारे सम्बन्धों में असुरक्षित ही महसूस करेंगे और किसी पर भी जल्दी से, बिना जाँचे-परखें विश्वास कर लेंगे या फिर किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाएंगे। ऐसे में वे जीवन से और लोगों से असन्तुष्ट और नाखुश बने रहेंगे।

अपने बच्चों से खराब हुए सम्बन्धों को भी इन सिद्धान्तों पर काम करके सुधारा जा सकता है। ध्यान रखिए आपसे भी ऋुटियाँ हो सकती हैं। अपने अहंकार को बच्चों से ज्यादा बड़ा ना होने दें। जहाँ गलती हो उसे मान लें, जहाँ हो सके वहाँ उन्हें क्षमा भी करें। निश्चल स्नेह से बच्चों के मन को फिर से जीतने का ईमानदारी से प्रयास करें।

उनसे ऐसा सम्बन्ध विकसित करें कि आप उनकी सुरक्षा को लेकर अपनी चिन्ताओं को उनसे खुलकर कह सकें और साथ ही हर परिस्थिति में उनका साथ देने का आश्वासन भी दे सकें। बच्चों को आपकी और आपके प्यार की जरूरत है। एक कदम आगे बढ़ाएँ, उन्हें अपने करीब आने दें। जिनसे दूरियाँ बन चुकी हैं उन्हें अपने मन में, अपने घर में लौटा लाएँ।

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