कोलकाता। देश की राजनीति में वामपंथी राजनीति को प्रतिष्ठित करने वाले नेताओं में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का नाम अग्रणी रूप से लिए जाता है। ज्योति बसु 23 सालों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे और उन्हें प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उनकी पार्टी माकपा ने इसे खारिज कर दिया था, हालांकि पीएम बनने के प्रस्ताव को खारिज किये जाने को बाद में माकपा के कुछ नेताओं ने एतिहासिक भूल करार दिया था। हिंदुस्तान की राजनीति में वामपंथी विचारधारा की बहुत गहरी पकड़ और व्यापक जनाधार कभी नहीं रहा।
आजाद भारत के इतिहास में ज्यादातर समय तक सिर्फ दो राज्यों केरल और बंगाल में सीमित रही वामपंथी पार्टी के एक बड़े नेता और वामपंथ के प्रमुख चेहरों में से एक ज्योति बसु की आज पुण्यतिथि है। माकपा उनकी पुण्यतिथि का पालन कर रही है। बंगाल माकपा की ओर से न्यूटाउन के ज्योति बसु सेंटर में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया है। माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम इस अवसर पर पंचायती राज-ज्योति बसु के विचार, आज की स्थित और भविष्य की योजना’ पर वक्तव्य रखेंगे।
लगभग तीन दशक तक बंगाल की वामपंथी राजनीति का प्रमुख चेहरा रहे और तकरीबन ढ़ाई दशक तक बंगाल के मुख्यमंत्री रह चुके ज्योति बसु का 17 जनवरी, 2010 को 95 साल की उम्र में निधन हो गया था। 8 जुलाई, 1914 को बंगाल के अपर मिडिल क्लास परिवार में ज्योति बसु का जन्म हुआ था। पिता निशिकांत बसु ढाका (अब बांग्लादेश में) के बार्दी गांव में डॉक्टर थे। मां का नाम हेमलता बसु था और वह एक गृहिणी थीं। ज्योति बसु की शुरुआती शिक्षा कोलकाता के धरमतल्ला के नामी अंग्रेजी स्कूल लोरेटो में हुई।
इसके अलावा उन्होंने सेंट जेवियर और प्रेसीडेंसी कॉलेज से भी पढ़ाई की। 1935 में परिवार ने उन्हें कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। यहीं से वामपंथ के प्रति उनके झुकाव की शुरुआत हुई। ब्रिटेन में वे वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आए। यहीं उनकी मुलाकात जाने-माने वामपंथी विचारक रजनी पाम दत्त से हुई और उनका ज्योति बसु के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव रहा। 1940 में इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई पूरी करके ज्योति बसु हिंदुस्तान लौट आए और भारत की वामपंथी राजनीति में सक्रिय हो गए।
1944 में भारत की पहली कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई का हिस्सा बनने के बाद वे ट्रेड यूनियन के कामों में लग गए। जब बी.एन. रेलवे कर्मचारी संघ और बी.डी रेल रोड कर्मचारी संघ का विलय हुआ तो ज्योति बसु उसके महासचिव बने. बाद में ज्योति बसु रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़कर बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए। तब डॉ. बिधान चंद्र रॉय पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
उनके काल में ज्योति बसु लंबे समय तक विपक्ष के नेता रहे। यह बंगाल की राजनीति में जमीनी स्तर पर काम करने और युवाओं के बीच अपनी गहरी पकड़ बनाने का दौर था। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) का विभाजन हुआ और एक नई पार्टी बनी कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जिसे सीपीएम कहा गया। ज्योति बसु सीपीएम की पोलित ब्यूरो के पहले नौ सदस्यों में से एक थे। 1967 में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हार हुई और संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी। ज्योति बसु उस सरकार में उप मुख्यमंत्री थे।
मुख्यमंत्री का पद संभाला था अजय मुखोपाध्याय ने। 21 जून, 1977 को बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी भारी बहुमत से जीती और पहली बार सीपीएम की सरकार बनी। इस सरकार में मुख्यमंत्री थे ज्योति बसु। उसके बाद वे सन 2000 तक लगातार बंगाल के मुख्यमंत्री पर बने रहे। 1996 में संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने सर्वसम्मति से ज्योति बसु को भारत के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की पेशकश की थी, लेकिन सीपीएम की पोलित ब्यूरो इसके लिए राजी नहीं हुई। वर्ष 2000 में ज्योति बसु नेद बंगाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उनके साथी सीपीआई (एम) के नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपना उत्तराधिकारी बनाया।