कोलकाता। पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी न केवल कुशल प्रशासक थे बल्कि कलम के भी धनी थे। साहित्य के प्रति उनके प्रेम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पांच सालों तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने किसी भी साहित्यिक कार्यक्रम के आमंत्रण को दरकिनार नहीं किया और उसमें शामिल हुए। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ अपनी अदावत और संविधान के अनुरूप कड़े फैसले लेने के लिए भी रहे हैं। इसके साथ ही वह कमाल के साहित्यकार और कवि भी थे।
कहते हैं ना कि “रवि और कवि कभी अस्त नहीं होते”, वैसे ही केशरीनाथ त्रिपाठी भी अपनी कविताओं में हमेशा जिंदा रहेंगे। वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी के प्रकांड विद्वान डॉ आनंद पांडे बताते हैं कि वर्ष 2014 से 2019 तक केशरीनाथ त्रिपाठी राज्यपाल थे तब वह दौर साहित्यकारों के लिए स्वर्णिम दौर था। इसकी वजह थी कि हर साहित्य कार्यक्रम में एक बार आमंत्रण मिलने पर ही राज्यपाल चले आते थे और न केवल आते थे बल्कि अपने शानदार हिंदी संभाषण के जरिए कार्यक्रम को बेहद आकर्षक बनाते थे।
केशरीनाथ त्रिपाठी की हिंदी भाषा पर पकड़ इतनी अच्छी थी कि जब वह बोलते थे तब उनके शब्दों को लोग घंटो तक अपने दिलो-दिमाग में रखकर विचार करते रहते थे। बंगाल में जब भी कोई साहित्यिक पत्रिका, कोई विशेषांक निकालता था और राज्यपाल से मिलकर उस में लिखने का अनुरोध करता था तो केशरीनाथ त्रिपाठी जी निश्चित तौर पर उसमें अपनी नव रचित कविता देते थे।
उनकी कविताएं काफी गहराई समेटे हुई होती थीं। डॉ आनंद का कहना है कि उनकी कविताओं का संग्रह निश्चित तौर पर प्रकाशित होना चाहिए जो ना केवल पश्चिम बंगाल जबकि देशभर के मूर्धन्य साहित्यकारों के लिए दिशा निर्देशक होगा। एक वाकए का जिक्र करते हुए डॉक्टर आनंद पांडे बताते हैं कि उन्होंने कोलकाता के जितने भी साहित्यकारों से बात की वे राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हैं।
जब भी एक साहित्यकार के तौर पर राजभवन में परिचय भेजा जाता था तब राज्यपाल बिना देरी किए मिलने के लिए बुला लेते थे, साहित्य पर खूब चर्चा करते थे और उपहार के तौर पर किताबें दिया करते थे। अब कलम के धनी केशरीनाथ सरस्वती लोक में चले गए हैं लेकिन अपनी कविताओं और लेखन के जरिए हमेशा जिंदा रहेंगे।