उत्तर बंगाल । उत्तरबंगाल के पहाड़ों व जंगलों में बाघ के विभिन्न प्रजातियों की उपस्थिति का वन विभाग ने पहले ही पता लगा लिया है। बाघ के विभिन्न प्रजातियों यहां तक कि ब्लेक पेंथर तक की उपस्थिति बक्सा पहाड़ी के कोर एरिया में देखी गयी है। जो यहां के जंगलों की समृद्ध बनाती है। अब इन जंगलों में भालूओं की संख्या व प्रजाति पर सर्वे चल रहा है। उत्तरबंगाल के पहाड़ों या जंगलों में कितने भालू हैं? इसकी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए वन विभाग ने शहद का ट्रैप लगाकर सर्वे किया है। पिछले तीन हफ्तों में, इन ट्रैपों में सौ से अधिक भालुओं के नमूने मिल गए हैं। उत्तर बंगाल वन और वन्यजीव विभाग के अधिकारी सर्वेक्षण में पाए गए विभिन्न आंकड़ों और नमूनों की पुष्टि करके भालू की उपस्थिति का अनुमान लगा रहे हैं।
हालांकि, भालुओं की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए वन विभाग ने एकत्रित नमूनों को फोरेंसिक जांच के लिए हैदराबाद भेज दिया है। वन विभाग के अनुसार, मुख्य रूप से ‘हिमालयी काला भालू’ उत्तर बंगाल की पहाड़ियों और वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जिसे ‘काला भालू’ के नाम से भी जाना जाता है। एक साल से पहाड़ों से सटे गांवों व मैदानी इलाकों में भालुओं की आवाजाही से वन विभाग की चिंता बढ़ा दी थी। अभी तक किसी जंगल में भालुओं की संख्या के बारे में वन विभाग को स्पष्ट कोई जानकारी नहीं थी। साथ ही वन विभाग के अधिकारियों को भी अचानक डुआर्स के अलग-अलग हिस्सों में भालुओं की आवाजाही बढ़ने का कारण समझने में परेशानी हो रही थी। इसलिए घने जंगलों का कैमरों से सर्वे करने का निर्णय लिया गया।
उस सर्वे के लिए गरुमारा नेशनल पार्क में 52 कैमरे लगाए गए थे। उत्तर बंगाल वन्यजीव विभाग के मुख्य वनपाल राजेंद्र जाखड़ ने कहा, ‘मैदानी इलाकों में भालुओं की मौजूदगी पहली बार पिछले साल नवंबर में देखी गई थी। इसी दौरान भालू के हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी। जनता के गुस्से के कारण एक भालू की जान चली गई। साथ ही जंगल से सटे विभिन्न इलाकों से 13 भालुओं को रेस्क्यू किया गया। इस साल भी नवंबर में बक्सा, जलदापाड़ा, गरुमारा के जंगल से सटे इलाके में वन विभाग ने भालुओं की आवाजाही देखी है। 8 भालू भी रेस्क्यू किए गए।
वन विभाग के अनुसार मुख्य रूप से मैदान से 10 हजार फीट ऊपर पहाड़ी वन क्षेत्र भालू का पसंदीदा आवास है। वन विभाग का अनुमान है कि बक्सा पहाड़ी वन क्षेत्र, गरुमारा की नेओरा वैली राष्ट्रीय उद्यान सहित दार्जिलिंग पहाड़ियों के सिंचुला जंगलों में अच्छी संख्या में भालू पाए जा सकते हैं। वन विभाग इस बात का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की मदद ले रहा है कि क्यों भारतीय काले भालू अपना निवास स्थान छोड़कर बार-बार मैदानी इलाकों में आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने इन पहाड़ी जंगलों में भालुओं की संख्या का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण किया। यह सर्वे 3 दिसंबर से सर्वे शुरू हुआ था। उसके बाद यह सिलसिला 21 दिनों तक चलता रहा।
वन विभाग ने मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष तरीके से सर्वे किया। वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक भालुओं की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए ‘हेयर कोरल’ पद्धति का इस्तेमाल किया गया। इस पद्धति के तहत जिन क्षेत्रों में भालूओं की आवाजाही है, वहां शहद के साथ जाल बिछाए जाते हैं। जाल के तीनों ओर संकरे तार लगे होते हैं। वन विभाग ने कहा कि यह व्यवस्था इसलिए है कि शहद के लालच में भालू जाल पर पैर रखे तो उसके शरीर के बाल उसमें फंस जाते हैं। राजेंद्र जाखर ने कहा, “बक्सा, जलदापाड़ा, गरुमारा, नेवरा, सिंचुला और आस-पास के जंगलों में 200 से अधिक ऐसे प्वॉयेंट बनाए गए थे। जहां भालू का पसंदीदा खाना रखा हुआ था।
गरुमारा नेशनल पार्क से नेओरा वैली नेशनल पार्क तक 57 प्वाइंट बने हैं। 24 दिसंबर से हर प्वाइंट से सैंपल कलेक्ट किए गए। इसमें भालू के बालों के 100 से अधिक नमूने मिले हैं। ” वनाधिकारी राजेंद्र जाखर ने कहा कि एकत्र किए गए नमूने एक या एक से अधिक भालुओं के हैं, उनकी फॉरेंसिक जांच की जाएगी। वे फोरेंसिक जांच के लिए भालू के बालों के एकत्रित नमूनों को हैदराबाद की एक प्रयोगशाला में भेज रहे हैं। टेस्ट रिपोर्ट से भालुओं की संख्या, उनके लिंग और उम्र का पता चलेगा। उस रिपोर्ट से जंगल में भालुओं की संख्या का भी हिसाब लगाया जा सकता है। वन विभाग का मनना है कि इस समय सैकड़ों की संख्या में ब्लेक बियर डुआर्स के जंगलों में है जो वन विभाग के लिए खुशी की बात है।