श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा । जब प्रख्यात गणितज्ञ एवं ट्रिनिटी कॉलेज के फैलो प्रोफेसर हार्डी बीमार ‘गणित के जादूगर’ श्रीनिवास रामानुजन से मिलने अस्पताल आए और उन्हें देखकर बहुत ही दुखी मन से टैक्सी नंबर ‘1729’ को अशुभ बताया, जिससे वे अस्पताल पहुँचे थे, तब रामानुजन ने कहा कि यह अशुभ नहीं, बल्कि बेहद ही दिलचस्प संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है, जिसको दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योगफल के रूप में लिखा जा सकता है। आज “राष्ट्रीय गणित दिवस” के अवसर पर उस महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 135 वीं जयंती पर हम सादरपूर्वक नमन करते हैं।
सचमुच गणित गगन-मण्डल के उज्ज्वलतम नक्षत्र श्रीनिवास रामानुजन ने गणित में भले ही कोई विशेष शास्त्रीय प्रशिक्षण न प्राप्त किया, पर स्व-शिक्षण से ही गणित-विश्लेषण एवं संख्या-सिद्धांत के क्षेत्रों में चिर स्मरणीय योगदान देकर गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अमरत्व को प्राप्त कर लिया है। उन्होंने अपनी विशेष प्रतिभा के बल पर विश्व मंच पर तत्कालीन गुलाम भारत को सम्मानीय स्थान पर प्रतिष्ठित भी किया था। कई दिग्गज महापुरुषों की भाँति उन्होंने भी अल्पायु में ही कई वर्षों के शोध कार्य को सम्पन्न कर गणित और विज्ञान को समृद्धशाली बनाया। गणित और विज्ञान के प्रति उनकी उपलब्धियों के प्रति सम्मान प्रदर्शन हेतु ही उनकी जयंती ‘22 दिसंबर’ को प्रतिवर्ष “राष्ट्रीय गणित दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को दक्षिण भारत के धर्म-संस्कृति से सम्पन्न तमिलनाडु के कोयम्बटूर के ईरोड नामक गाँव में धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवार श्रीनिवास अय्यंगर तथा कोमलताम्मल के विपन्न आँगन में हुआ था। परंतु उनका बचपन प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध देवनगरी कुंभकोणम में ही बीता था। बालक रामानुजन बाल्यावस्था में सामान्य बालकों से कुछ भिन्न थे। तीन वर्ष की आयु तक उनके कुछ न बोलने के कारण परिजन को उनके गूँगेपन होने का संदेह हुआ था, जो बाद में निर्मूल हो गया।
श्रीनिवास रामानुजन बचपन से ही विलक्षण बौद्धिक प्रतिभा के धनी विद्यार्थी थे। गणित उनका प्रिय विषय था। उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले भर में गणित में सर्वाधिक 45 में से 42 अंक प्राप्त कर सबको अचंभित कर दिया। फिर आगे की पढ़ाई के लिए टाउन हाईस्कूल में भर्ती हुए, जहाँ उनके अटपटे सवालों से विद्यालय के अध्यापकगण भी अक्सर अचरज में पड़ जाया करते थे, पर सबके साथ इनका व्यवहार बहुत ही मधुर-सौम्य था। श्रीनिवास रामानुजन स्कूली शिक्षा के दौरान ही कालेज-स्तर के गणित प्रश्नों का समाधान कर लिया करते थे। वे गणित के किसी भी सवाल को 100 से भी ज्यादा तरीकों से बना सकते थे। फलतः विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन पर लागू नहीं हुआ करते थे। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.एल. लोनी की विश्व प्रसिद्ध त्रिकोणमिति पर लिखित पुस्तक का अध्ययन कर मैथमेटिकल थ्योरी भी बना डाली थी।
हाईस्कूल की परीक्षा में गणित और अंग्रेजी विषय में अच्छे अंक की प्राप्ति के कारण श्रीनिवास रामानुजन को ‘सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति’ प्राप्त होने लगी थी। इसी साल उन्होंने ‘घन’ और ‘चतुर्घात समीकरण’ को हल करने के लिए सूत्र को खोज निकाला। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कुम्बकोणम के राजकीय महाविद्यालय में ‘फैलो ऑफ आर्ट’ के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। वह अपना ज्यादा समय गणित के जटिल प्रश्नों को हल करने में व्यतीत किया करते थे। बाकी विषयों को नजरअंदाज करने के कारण एफ.ए. की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। परिणामस्वरूप उनको जो छात्रवृत्ति मिलती थी, वह भी बंद हो गई।
घर की आर्थिक विपन्नता और ऊपर से छात्रवृत्ति के बंद हो जाने से रामानुजन का जीवन कठिन हो गया। बाद में उन्होंने गणित के कुछ ट्यूशन पढ़ाने तथा खाते-बही का काम भी किया। उन्होंने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, पर वे अनुत्तीर्ण ही रहें। ऐसे में उनकी पारंपरिक शिक्षा की यहीं इतिश्री हो गई। हालाकि पढ़ाई छोड़ने के बाद का समय उनके लिए बहुत हताशा भरा हुआ था। पर उन्हें अपनी कुलदेवी ‘नामगिरी देवी’ के प्रति अटूट विश्वास और गणित के प्रति विशेष प्रेम ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और वे विपरीत परिस्थिति में भी गणित में अपने शोध कार्य करते ही रहे। इसी दरमियान उन्होंने 1905 में गणित संबंधित अनेक ‘समाकलों’ व ‘श्रेणियों’ के बीच संबंधों की खोज कर दी थी।
घर-दुनियादारी से बेखबर निरंतर गणित में डूबे रहने से चिंतित रामानुजम के माता-पिता ने उनका विवाह जानकी श्रीवत्स नामक कन्या से कर दिया। पारिवारिक जिम्मेवारी वहन के लिए नौकरी की तलाश में मद्रास गए। रामानुजन जब भी किसी से मिलते, तो उसे गणित में किए गए अपने कार्यों से परिपूर्ण अपना रजिस्टर दिखाते थे। भला साधारणजन को उनके गणित से क्या प्रेम हो सकता था! पर बारहवीं अनुतीर्ण होने के कारण उन्हें कोई नौकरी भी न मिल पाई। अपने एक शुभचिंतक के परामर्श पर रामानुजन मद्रास के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले, जो गणित के बहुत बड़े विद्वान भी थे। उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी से इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी करवा दिया, जिस पर आश्रित होकर रामानुजन ने अपना प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” को ‘जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी’ में प्रकाशित करवाया।
1912 में श्रीनिवास रामानुजन की ‘अकाउंटेंट जनरल मद्रास’ के कार्यालय में 20 रुपए मासिक वेतन पर नौकरी मिल गई। कुछ समय बाद ही उन्होंने ‘मद्रास पोर्ट ट्रस्ट’ में 30 रुपए मासिक की नौकरी कर ली, जिसमें काम का बोझ कुछ कम था। उन्हें अपने गणित के कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल जाता था। पोर्ट ट्रस्ट के निदेशक सर फ्रांसिल स्प्रिंग को भी गणित में गहरी रूचि थी। इसलिए उन्होंने रामानुजन की काफी सराहना करते हुए मद्रास के इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर सी.एल.ओ. ग्रिफिक्स से रामानुजन का परिचय करवाया।
उनकी सलाह पर रामानुजन ने 1913 में तत्कालीन विख्यात गणितज्ञ एवं ट्रिनिटी कॉलेज के फैलो प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखा, जिसमें 120 प्रमेय और सूत्र शामिल थे। किसी जौहरी की भाँति प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजम सदृश हीरे को पहचान लिया और उन्हें गणित के क्षेत्र में एक दुर्लभ व्यक्तित्व मानते हुए कैंब्रिज बुलाया। परंतु आर्थिक तंगी के कारण रामानुजन ने पहले तो अपनी असमर्थता प्रकट की। परंतु प्रोफेसर हार्डी इस बेशकीमती हीरे को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे। अतः उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने की सारी व्यवस्था करवा दी।
श्रीनिवास रामानुजन गणित के करीब 3800 से भी अधिक अपने नये सूत्रों के साथ मार्च 1914 को लंदन की धरती पर अपने पैर रखें। प्रोफेसर हार्डी के प्रयास से जल्द ही उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश भी मिल गया। श्रीनिवास रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के कई शोधपत्र प्रकाशित किया। एक विशेष शोध के कारण उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी प्रदान की गई। लेकिन वहाँ की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालने लगा और क्षय रोग (टी.बी.) ने उन्हें अपना शिकार बना लिया। परंतु ऐसे विकट समय में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारा और निरंतर गणित के सूत्रों की नई नई कल्पनाएँ करते रहे थे।
श्रीनिवास रामानुजन के गणित विषयक कार्यों-उपलब्धियों को देखते हुए 28 फरवरी 1918 को ‘रॉयल सोसाइटी’ के इतिहास में उन्हें सबसे काम आयु का ‘फेलो’ नामित किया गया, वह भी गुलाम भारत के किसी नागरिक को। इसके साथ ही वे ट्रिनीटी कॉलेज से ‘फेलोशिप’ पाने वाले प्रथम भारतीय भी बने। लेकिन इन सब उपलब्धियों के विपरीत उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा था। फलतः डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा। भारत आने पर श्रीनिवास रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय के प्राध्यापक बने और शोध कार्य में पुनः रम गए। परंतु अब इनका स्वास्थ्य बिल्कुल ही साथ नहीं दे रहा था।
बीमारी की दशा में भी इन्होने ‘मॉक थीटा फंक्शन’ पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र लिखा, जिसका उपयोग केवल गणित ही नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को जानने और समझने के लिए भी किया जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन के क्रमशः गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए अब तो डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया। अंत में मात्र 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल, 1920 को गणित जगत की अपूरणीय क्षति और सबको स्तब्ध करते हुए इस संसार से श्रीनिवास रामानुजन की विदाई की घड़ी आ ही गई। प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते-होते उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया।
श्रीनिवास रामानुजन के द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली ही बने हुए हैं। 1976 में ट्रिनीटी कॉलेज के पुस्तकालय में इनका लगभग एक सौ पन्नों में लिखे हुए प्रमेय और सूत्रों का एक पुराना रजिस्टर प्राप्त हुआ है, जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली ही बना हुआ है। उस रजिस्टर को अब ‘रामानुजन नोट बुक’ के नाम से जाना जाता है। इसी तरह बीमारावस्था में रामानुजन से मिलने जब प्रोफेसर हार्डी टैक्सी से अस्पताल में आए और उन्हें देखकर दुखी मन से उन्होंने उस टैक्सी के ‘1729’ नंबर को अशुभ बताया। तब रामानुजन ने कहा कि यह अशुभ नहीं, बल्कि बेहद ही दिलचस्प संख्या है । यह वह सबसे छोटी संख्या है, जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है । यथा, – ‘1729’ = ‘1³ + 12³ = 9³ + 10³’
उसके बाद से ही ‘1729’ संख्या को उनके सम्मान में ‘हार्डी-रामानुजन नंबर’ कहा जाता है और चुकी यह एक टैक्सी का नंबर था, इसलिए इस नंबर को ‘टैक्सीकैब नंबर’ भी कहा जाता है। इसी प्रकार रामानुजन ने अनेक अवसरों पर अपनी तीक्ष्ण बुध्दि का परिचय देकर लोगों को अचंभित किया। उन्होंने ‘डाइवर्जेंट सीरीज़’, ‘रीमैन सीरीज़’, ‘हाइपरज्यामेट्रिक सीरीज़’, ‘दीर्घवृत्तीय इंटीग्रल’ और ‘ज़ेटा फ़ंक्शन’ के कार्यात्मक समीकरणों पर सिद्धांत प्रतिपादित किया है।
श्रीनिवास रामानुजन को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर एक महान गणितज्ञ माना जाता है। अतः भारत अपने गणितज्ञ पुत्र श्रीनिवास रामानुजन की जयंती ‘22 दिसंबर’ को उन्हें विशेष सम्मान प्रदान करते हुए उसे “राष्ट्रीय गणित दिवस” के रूप में मनाते रहा है। आज भारत के प्रत्येक युवा-छात्रों को ऐसे महान व्यक्तित्व के बारे में अवश्य ही जानना चाहिए, जिससे उन्हें भी शिक्षा तथा अन्य देशहित कार्यों में प्रवीण बनने की प्रेरणा प्राप्त हो सके।
श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा -711101, (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com