नई दिल्ली । हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि महातीर्थ गंगासागर में स्नान और दान का जो महत्व है वह अन्यत्र नहीं है। सभी तीर्थों में कई बार यात्रा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह गंगा सागर में मात्र एक बार स्नान और दान करने से प्राप्त हो जाता है। मान्यता है कि गंगा सागर में एक डुबकी लगाने से 10 अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के बराबर पुण्य मिलता है।
सन 2009 में मेरी पोस्टिंग बैरकपुर (कोलकाता) में थी। पापा मुझे आशीर्वाद देने वहां आए तो उन्होंने गंगासागर जाने की इच्छा प्रकट की। पापा की इच्छा को आदेश मानते हुए अगले ही शनिवार-रविवार को हमने गंगासागर दर्शन करने की योजना बना ली। एक गाड़ी बुक की गई जिसमें हम परिवार सहित गंगासागर के लिए निकल पड़े। चूंकि गाड़ी काकद्वीप लॉट नंबर-8 के पास स्थित हरवुड फेरी पॉइंट तक ही जाती थी। इसलिए काकद्वीप लॉट नंबर-8 के पास गाड़ी पार्क करके हम लोग हरवुड फेरी पॉइंट से एक जेट्टी (बड़ी सी इंजिन चालित नाव) में बैठकर मुरीगंगा (गंगा नदी का स्थानीय नाम) नदी के लगभग 5 किलोमीटर के विशाल पाट को 20-25 मिनट में पार किया। अब हम सागर द्वीप के कचूबेरिया फेरी पॉइंट पहुंच चुके थे।
लगभग तीन लाख जनसंख्या वाला सागरद्वीप 300 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इस द्वीप में कुल 43 गांव हैं। सागर द्वीप सुंदरबन डेल्टा का ही हिस्सा है। इस द्वीप के काचुबेरिया घाट से गंगासागर लगभग 30 किलोमीटर और आगे था। इसलिए हम सब एक लोकल जीप में बैठकर गंगा सागर तट से करीब डेढ़ किलोमीटर पहले पहुंचे। वहां से फ्लैट रिक्शे (जिस रिक्शे में उत्तर भारत की तरफ सामान ढोया जाता है) में बैठकर पतित पावनी गंगा और विशाल सागर के मिलन स्थल गंगासागर पहुंचे। गंगासागर में स्नान करने के पश्चात हम सागर तट पर स्थित कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे।
यह वही आश्रम है जहां पर कपिल मुनि के श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को सद्गति प्रदान करने हेतु राजा सगर के वंशज महाराज भगीरथ मां गंगा को शिव की जटाओं से उतारकर धरती में लाए थे और मां गंगा राजा भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करते हुए यहीं पर सागर में मिल गयी थी। चूंकि मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा शिव की जटा से निकलकर ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची थी, इसलिए मकर संक्रांति के दिन यहां पर विशाल मेला लगता है। इस मेले में शामिल होने के लिए पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं।
गंगासागर मे कपिल मुनि का सन् 1973 मे बनाया गया मंदिर है। कहते हैं कि पहले यह मंदिर कई बार समुद्र की लहरों के साथ बह गया था इसलिए इसे अब समुद्र तट से एक किलोमीटर दूर बनाया गया है। इस मंदिर के मध्य में कपिल ऋषि की मूर्ति है। इस मूर्ति के एक तरफ राजा भगीरथ को गोद मे लिए हुए गंगा जी की मूर्ति है तथा दूसरी तरफ राजा सगर तथा हनुमानजी की मूर्ति है। हम सभी ने पूरे श्रद्धा भाव से मंदिर में स्थित सभी मूर्तियों की पूरे भक्तिभाव से आराधना की और फिर भोजन आदि करने के पश्चात कोलकाता के लिए लौट पड़े।
वापस आते समय जब हमारी जेट्टी गंगा नदी के लगभग बीचो-बीच में थी तब पापा शून्य में देखते हुए अचानक बड़े गंभीर स्वर में बोले- “बेटा, पहले लोग अपने जीवन के चौथे काल में अंतिम यात्रा के रूप में गंगासागर आया करते थे।”
पापा का इतना गंभीर स्वर मैंने कम ही सुना था। ऐसे लगा जैसे पापा किसी अत्यंत गहरे स्थान से बोल रहे हों। एक क्षण के लिए तो मैं सहम ही गया। किंतु माहौल को हल्का करने की गरज से मैंने कहा- “पापा, पहले रास्ता दुर्गम था, संचार के साधन नहीं थे। इसलिए इसे अत्यंत कठिन तीर्थ माना जाता था। अब यात्रा और संचार के आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। इसलिए आपका जब मन करे तब गंगासागर आइए। वैसे भी आप तो अभी 60 के भी नहीं हुए।”
लेकिन कौन जानता था की पापा की जिव्हा में उस समय साक्षात मां सरस्वती का वास था। यह उनके जीवन की सचमुच में अंतिम यात्रा सिद्ध हुई। उसी वर्ष 5 दिसंबर 2009 को पापा हम सब को छोड़कर सदा के लिए चले गए।