संस्कृत भाषा ही भारतीय संस्कृति की रक्षिका : स्वामी चिदानंद सरस्वती

कोलकाता। संस्कृत भाषा ही भारत की संस्कृति की रक्षिका है। संस्कृत भाषा बची रहेगी तो भारतीय संस्कृति बची रहेगी। ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने यह बात कही। हावड़ा संस्कृत समाज की ओर से रामगोपाल मंच सभागार में पंडित नित्यानंद मुखोपाध्याय की स्मृति शत वार्षिकी के अंतर्गत दो दिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन के दूसरे सत्र का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में स्वामी चिदानंद ने कहा कि आज विश्व में संस्कृत मंत्रों का सम्मान हो रहा है, क्योंकि प्राचीन, पवित्र और मानवीय मूल्यों की भाषा संस्कृत है।

जो देववाणी के रूप में भारत भूमि पर जन्मे उन ऋषियों की भाषा है, जो अपने लिए नहीं अपनों के लिए ही अपना जीवन दियें। ऐसी संस्कृत भाषा की रक्षा में पंडित नित्यानंद मुखोपाध्याय के त्याग को हम विस्मृत नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि केरल से लेकर बंगाल तक के विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्राध्यापक, अध्यापकों के साथ गवेषक एवं छात्र-छात्राओं के रूप में दो सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों की उपस्थिति संस्कृत तथा संस्कृति के उज्ज्वल भविष्य को दर्शाती है ,जो शांति और क्रांति की भूमि बंगाल से ही संभव है।

इस अवसर पर विदेश से भारतीय संस्कृति और भाषा संस्कृत के आकर्षण में भारतीयता को स्वीकारने का संकेत देती ऋषिकेश की ग्लोबल इंटरफेथ वास एलायंस की साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा ही नहीं है, एक संस्कृति है। जो पूरे विश्व के लोगों को भारत भूमि के प्रति आकर्षित करने के साथ यहां खींच लाती है।आज विश्व के अधिकांश देशों में महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र को उच्चारित करते आबालवृद्ध गौरव महसूस करते हैं और इस संस्कृत भाषा ने ही मुझे खींच कर भारतीय बना दी।

अखिल भारतीय हरिजन संघ के अध्यक्ष प्रो.शंकर कुमार सान्याल ने स्वामी जी और साध्वी जी का वृहद् परिचय देते हुए स्वागत भाषण दिया। स्वामी चिदानंद को वरिष्ठ पत्रकार रथीन्द्र मोहन बन्द्योपाध्याय ओर प्रो. रत्ना बसु ने सम्मानित किया । पहले सत्र में संस्कृत महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनुराधा मुखोपाध्याय ने शैक्षिक सत्र का उद्घाटन करते हुए संस्कृत के छात्र छात्राओं गवेषक प्राध्यापक प्राध्यापकियों को संस्कृत के उज्ज्वल भविष्य के प्रति सचेत करते हुए प्रोत्साहित किया।

इसके साथ ही काकोली घोष, जया चट्टोपाध्याय, अंजलिका मुखोपाध्याय, जयंत चट्टोपाध्याय, प्रोफ़ेसर निरंजन जेना, डा पी के त्रिपाठी, प्रो.रत्ना बसु ने अपने वक्तव्य में संस्कृत शिक्षण की समस्यायों और उनके निराकरण पर वक्तव्य रखा। समारोह का संचालन संस्था के सचिव देवव्रत मुखोपाध्याय ने किया।

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