ब्लड शुगर की बीमारी में नुकसानदायक हो सकता है लौकी का जूस, हो सकती हैं ये समस्याएं

कोलकाता । ब्लड शुगर अर्थात डायबिटीज में लौकी के जूस का सेवन नुकसानदायक भी साबित हो सकता है। इससे ब्लड शुगर लेवल अचानक से कम हो सकता है, जिससे मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है। आजकल डायबिटीज यानी शुगर की बीमारी काफी आम हो गई है। बड़े ही नहीं, बच्चे भी इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। आपने अक्सर लोगों से सुना होगा कि लौकी का जूस शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है। लौकी के जूस में विटामिन, कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक, आयरन जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके साथ ही यह फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है। ये सभी तत्व शरीर को कई फायदे पहुंचाते हैं और स्वस्थ रहने में मदद करते हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, लौकी का सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की बीमारियों और वजन कम करने में भी मदद मिलती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि डायबिटीज के मरीजों के लिए लौकी के जूस का सेवन नुकसानदायक भी साबित हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लौकी का जूस पोषक तत्वों से भरपूर होता है, लेकिन इसका अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। डायबिटीज की बीमारी में ज्यादा लौकी का जूस पीने से ब्लड शुगर लेवल अचानक से कम हो सकता है, जिससे मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है। आइए जानते हैं डायबिटीज में लौकी का जूस पीने के नुकसान :-

अचानक कम हो सकता है ब्लड शुगर का स्तर : अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं या आप ब्लड शुगर कम करने की दवा ले रहे हैं तो ज्यादा लौकी का जूस पीने से आपकी सेहत बिगड़ सकती है। लौकी के जूस का ज्यादा सेवन करने से शुगर का स्तर अचानक से कम हो सकता है, जिससे आपको बेहोशी या चक्कर की समस्या हो सकती है। इसके साथ ही, कुछ मामलों में इससे हाइपोग्लाइसीमिया होने का खतरा भी रहता है। इस स्थिति में आपके खून में ग्लूकोज का लेवल असामान्य रूप से कम हो जाता है, जिसके कारण शरीर में अपनी गतिविधियों को पूरा करने के लिए एनर्जी नहीं बचती। डायबिटीज के मरीजों को हमेशा सीमित मात्रा में ही करने की लौकी का जूस पीने की सलाह दी जाती है।

हो सकती है कीटोएसिडोसिस (Ketoacidosis) की समस्या : स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, लौकी का जूस पीना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन अगर आप इसका ज्यादा सेवन करते हैं तो इससे आपको नुकसान हो सकता है। ज्यादा लौकी का जूस पीने से दस्त और उल्टी की समस्या हो सकती है, जिससे डायबिटीज के मरीजों में कीटोएसिडोसिस की समस्या हो सकती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें शरीर में ग्लूकोज कम होने की वजह से फैट बर्न होना शुरू हो जाता है। दरअसल, शरीर में सेल्स को ईंधन के तौर पर ग्लूकोज़ की ज़रूरत होती है। लेकिन इंसुलिन का लेवल कम होने पर ग्लूकोज सेल्स तक नहीं पहु्ंच पाता। नतीजतन, शरीर में फैट कीटोंस में बदलना शुरू हो जाता है। इस कंडीशन को केटोएसीडोसिस कहते हैं। केटोएसीडोसिस की समस्या का समय रहते इलाज ना किया जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार लौकी का जूस पीने से ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद मिलती है, जिससे डायबिटीज की बीमारी में फायदा होता है। लेकिन ऐसा तभी होगा जब इसका सेवन सीमित मात्रा में किया जाता है। ज्यादा लौकी का जूस पीना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। एक दिन में 140 से 280 ग्राम या एक गिलास से अधिक लौकी का जूस नहीं पीना चाहिए। इसका जूस सुबह खाली पेट पीना चाहिए। इसके अलावा लौकी का जूस बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से धो लें और साफ कर लें। खराब लौकी का जूस पीने से इंफेक्शन हो सकता है और पेट खराब हो सकता है।

इन समस्याओं में भी नहीं पीना चाहिए ज्यादा लौकी का जूस :-
अस्थमा : अस्थमा के मरीजों को ज्यादा लौकी का जूस नहीं पीना चाहिए। लौकी की तासीर ठंडी होती है, इसका जूस पीने से अस्थमा के मरीजों को खांसी-ज़ुकाम और सांस फूलने की समस्या हो सकती है।

हाई बीपी : हाई बीपी के मरीजों को भी लौकी का जूस कम मात्रा में पीना चाहिए। अगर आप ज्यादा लौकी का जूस पीते हैं, तो इससे ब्लड प्रेशर असामान्य रूप से कम हो सकता है। इससे चक्कर आना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना और बेहोशी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।

एलर्जी : कुछ लोगों को लौकी का जूस पीने से एलर्जी हो सकती है। इससे चेहरे और हाथ-पैरों में सूजन आ सकती है। इसके अलावा स्किन पर रैशेज और खुजली भी हो सकती है। अगर लौकी का जूस पीने के बाद ये समस्याएं हो तो इसे ना पिएं।

हाई यूरिक एसिड लेवल : जिन लोगों का यूरिक एसिड बढ़ा हुआ हो, उन्हें लौकी के जूस का ज्यादा सेवन करने से बचना चाहिए। इससे स्किन और हाथ-पैरों में सूजन की शिकायत हो सकती है। अगर आपको आर्थराइटिस और गाउट की शिकायत है तो आपको डॉक्टर की सलाह के बाद ही लौकी का जूस पीना चाहिए।

(स्पष्टीकरण : यहां दी गई जानकारियां सामान्य मान्यताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की जानकारियों पर आधारित है।)

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