डीपी सिंह की रचनाएं

।।गजल।।

उम्र के जिस मोड़ पर लगता था, बेड़ा पार है
अब ये जाना, ज़िन्दगी की ये तो बस मँझधार है

झूठ का सबसे बड़ा दुनिया में कारोबार है
दम घुटा जाता है सच का, आइना लाचार है

इस जहां में हर सू, हर इक शै का इक बाज़ार है
जिसका सिक्का चल गया उसकी ही जय जयकार है

आप का इंकार भी मेरे लिये इक़रार है
आप का मेरी नजर में मुख़्तलिफ़ किरदार है

धूल चेहरे से हटाना अब किसे स्वीकार है
आइने को इक नये बाज़ार की दरकार है

‘नेट’ के अनदेखे-से नेट में फँस चुका संसार है
ख़ून से ज़्यादा रगों में दौड़ता संचार है

कोई दीवाना करे शिद्दत से बेशक इन्तिज़ार
आप का क्या, आप को तो ‘आप’ ही से प्यार है

डीपी सिंह

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