“अंतस्” संस्था की 38वीं मासिक गोष्ठी काव्य-संध्या का आयोजन सम्पन्न हुआ

नई दिल्ली । अंतस् संस्था की 38वीं मासिक गोष्ठी काव्य संध्या का आयोजन संपन्न हुआ। आजकल शनिवार और इतवार को काव्य- गोष्ठियों का चलन-सा हो गया है! लेकिन ये काव्य-गोष्ठियाँ कम और “वीकेंड गेट टुगेदर” ज़्यादा होती हैं क्योंकि वहाँ काव्य और उसकी प्रस्तुति हेतु आवश्यक गुण-तत्व अधिकतर अनुपस्थित रहा करते हैं। लेकिन अगर कोई गोष्ठी अपनी गुणवत्ता एवं वैविध्य के कारण मानस-पटल पर अंकित हो जाये तो वह अविस्मरणीय बन जाती है और उसका सोल्लास उल्लेख होना चाहिए।

ऐसी ही एक काव्य-संध्या का आयोजन “अंतस्” संस्था ने अपनी 38वीं मासिक गोष्ठी के रूप में अपने निबंधित कार्यालय दिलशाद गार्डन, दिल्ली में दिनांक 25 सितंबर 2022 को किया। जिसमें दिल्ली एनसीआर के सुप्रसिद्ध कवि, कवयित्रियों और शायरों ने हिस्सा लिया। अनिल वर्मा मीत, पूनम माटिया, दुर्गेश अवस्थी, देवेन्द्र प्रसाद सिंह, कीर्ति रतन, सरफ़राज़ अहमद फ़राज़ देहलवी, दानिश अयूबी, पयंबर नक़वी, आज़म सहसवानी ने अपनी वैविध्यपूर्ण प्रस्तुतियों से सबका आनंद वर्धन किया।

गोष्ठी की रूपरेखा तीन भागों में विभक्त थी। पहले भाग में आगंतुकों का स्वागत, सरस्वती वंदना और अतिथियों का सम्मान किया गया। संस्था की अध्यक्षा पूनम माटिया ने सबका स्वागत किया। दीप प्रज्ज्वलन के बाद कृष्ण बिहारी शर्मा द्वारा वाणी-वंदना की गयी।
“वीणा पाणि जगत कल्याणी, जग पर वर वारिद बन छाओ/ भ्रम तम विघट विघट हट जायें; घट घट रच ज्योर्तिवन जाओ”
तदोपरांत, संस्था-अध्यक्ष पूनम माटिया ने अनिल वर्मा मीत, जिन्होंने गोष्ठी की अध्यक्षता की, का शॉल, मोती-माला, प्रतीक चिह्न से स्वागत-सम्मान किया। अंतस् के संरक्षक नरेश माटिया ने देवेन्द्र प्रसाद सिंह को ‘अंतस् सदस्य’ का सम्मान और पयंबर नकवी को ‘विशिष्ट अतिथि’ का सम्मान प्रदान किया। इसके बाद पूनम माटिया ने अंतस् की गतिविधियों और भविष्य के कार्यक्रमों की रूप रेखा के बारे में बताया।

गोष्ठी के दूसरे भाग में दुर्गेश अवस्थी के शानदार संचालन में सबका काव्य पाठ हुआ। सबका कवितांश अधोलिखित है। जो रस-आच्छादित गोष्ठी की महज़ एक बानगी ही समझें-
“आहों का पहरा होता है, दर्द जहाँ ठहरा होता है/दिल इक छोटी चीज़ सही पर सागर से गहरा होता है।”………अनिल वर्मा मीत
“मैं किसी की भी परस्तिश का गुनहगार नहीं/तू किसी का भी ख़ुदा होगा, सनम है मेरा”
……. सरफ़राज़ अहमद फ़राज़ देहलवी
“ज़ख़्म जब दिल का छुपाना आ गया/ बेसबब भी मुस्कुराना आ गया”

“ये मुहब्बतों का ख़ुमार था, जो हमारे दिल पे सवार था/ वो भी रेज़ा-रेज़ा पिघल गया, मैं भी हौले-हौले बिखर गयी”………पूनम माटिया
“दो नैन बहुत चर्चा में हैं/ वे नैन तुम्हारे ही होंगे।
दो अधर छपे पर्चा में हैं/वे अधर तुम्हारे ही होंगे।”………..कृष्ण बिहारी शर्मा

“दिल उनके जो नाम कर रहे हो/ तुम ख़ुद को तमाम कर रहे हो
हम शाम को सुब्ह कर रहे थे/तुम सुब्ह को शाम कर रहे हो”……..पयम्बर नक़वी

“ये शान सिर्फ़ दोस्तों मेरे वतन की है/ ख़ुशबू हर एक सिम्त बहारे-चमन की है
अपने वतन से हमको मुहब्बत है इसलिए/मिट्टी हमारी वादी-ए-गंगो-जमन की है”……..दानिश अयूबी

“हो मसअला वतन का, तिरंगे की साख का/होते सब एक काश! मगर हो नहीं सका
हिन्दू-मुसलमां मिलते हैं, भारत है वो उफ़ुक़/मिलकर भी पर मिज़ाज कभी मिल नहीं सका”…..डी पी सिंह

“मुहब्बत में हाँ ही ज़रूरी नहीं है/मैं शायर बना हूँ तुम्हारी नहीं से…….. दुर्गेश अवस्थी

“जिस दम से मैं उसके रू हो गया, बस तभी से ख़ूब रू हो गया
उससे मुताल्लिक था मेरा जो भी सुख़न, वो सब का सब ही सुर्ख़रू हो गया”………. कीर्ति रतन सिंह

“उम्र-ए-दराज़ फ़क़त चार दिन ही है/नफ़रतों में इसको ज़ाया न कीजिये
मज़हबी उन्माद सियासत की फ़सल है/अपने घरों में इसको उगाया न कीजिये”…….. आज़म हुसैन सहसवानी

गोष्ठी के तीसरे भाग में औपचारिक धन्यवाद कृष्ण बिहारी शर्मा ने ज्ञापित किया जिसके उपरांत तीन घंटे तक चली यह रोचक और अतिसफल गोष्ठी संपन्न हुई।

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