साहित्य की प्रासंगिकता पर राज्य-स्तरीय बहुभाषी संगोष्ठी संपन्न

कोलकाता । सोमवार को कोलकाता के सिटी कॉलेज के हिंदी, बांग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी विभागों एवं आई.क्यू.ए.सी. के संयुक्त तत्वावधान में ‘साहित्य की प्रासंगिकता’ विषय पर राज्य स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया। हिंदी सत्र के मुख्य वक्ता शांतिनिकेतन के डॉ. सुकेश लोहार एवं सत्र के सभापति राममोहन कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश रविदास थे। सत्र का संचालन सिटी कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो. संदीप प्रसाद ने किया। बांग्ला सत्र में बतौर मुख्य वक्ता कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सनत कुमार नस्कर एवं बतौर सभापति सिटी कॉलेज के डॉ.अनिर्बान मान्ना मौजूद थे।

सत्र का संचालन सिटी कॉलेज के बांग्ला के विभागाध्यक्ष डॉ. देवाशीष सरदार ने किया। संस्कृत सत्र की मुख्य वक्ता के रूप में विद्यासागर कॉलेज की डॉ. सुदीपा बंदोपाध्याय एवं सभापति के रूप में सिटी कॉलेज के संस्कृत विभाग की डॉ. मधुमिता देबराय (बर्मन) उपस्थित रहीं। सत्र का संचालन सिटी कॉलेज के संस्कृत की विभागाध्यक्ष प्रो. आराधना मुर्मू ने किया। अंग्रेजी सत्र के मुख्य वक्ता न्यूअलीपुर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. जयदीप सारंगी रहे एवं सभापतित्व सिटी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के डॉ. सुबोध सरकार ने किया। सत्र का संचालन अंग्रेजी की विभागाध्यक्ष प्रो. रितुपर्णा दास ने किया।

डॉ. पंपा गुहा के संचालन में संगोष्ठी की शुरुआत हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ कॉलेज के उप-प्राचार्य डॉ. महितोष गायेन के स्वागत भाषण एवं आई.क्यू.ए.सी. के संयोजक डॉ. अर्णव चौधरी के संबोधन से हुआ। हिंदी सत्र का संचालन करते हुए प्रो. संदीप प्रसाद ने विषय प्रवेश के रूप में हिंदी साहित्य का व्यावहारिक प्रयोग क्या है तथा इसे क्यों पढ़ा जाना चाहिए, जैसे सवालों को उठाया। मुख्य वक्ता डॉ. सुरेश लोहार ने हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता पर विचार रखते हुए साहित्यकार, पाठक और समाज के अंतरसंबंधों पर बात की। उन्होंने बताया कि साहित्य केवल आनंद ही नहीं है बल्कि वेदना की भी अभिव्यक्ति है। साहित्य मानव हृदय का परिष्कार करके एक बेहतर समाज बनाने में मदद करता है। सत्र के सभापति डॉ. ओमप्रकाश रविदास ने हिंदी साहित्य अध्यन के व्यवहारिक पक्षों का उल्लेख किया।

बांग्ला सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. सनत कुमार नस्कर ने बांग्ला के विभिन्न रचनाकारों के हवाले से साहित्य के अर्थ पर चर्चा किया। उन्होंने यह भी बताया की वर्तमान दौर में आधुनिक उपकरणों के बढ़ते चलन की वजह से किताबों को पढ़ने के आकर्षण और धैर्य में बेहद कमी आई है। उन्होंने अपने वक्तव्य के दौरान किताबों की ताकत का जिक्र करते हुए बताया कि दुनिया में क्रांति, परिवर्तन और जनजागरण आदि में किताबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस सत्र के सभापति डॉ. अनिर्वान मान्ना ने स्वीकार किया कि साहित्य के जरिए व्यक्ति और समाज में परिवर्तन घटित होता है।IMG-20220920-WA0010

संस्कृत सत्र की मुख्य वक्ता डॉ. सुदीपा बंदोपाध्याय ने नारी सशक्तिकरण की दृष्टि से वैदिक साहित्य एवं महाकाव्यों का अनुशीलन किया। उन्होंने वेद, उपनिषद, संहिता, ब्राह्मण, महाकाव्य एवं विभिन्न संस्कृत ग्रंथों के सूत्रों एवं दृष्टांतों के माध्यम से तत्कालीन समय के नारियों की समाज में सक्रिय भूमिका को अभिव्यक्त किया। उन्होंने बताया कि उस समय के समाज में नारियां हर स्तर पर सशक्त थीं। ज्ञान-विज्ञान, सेवा, चिकित्सा, युद्ध, अर्थतंत्र आदि हर क्षेत्र में नारियों की अच्छी-खासी भागीदारी हुआ करती थी। सत्र की सभापति डॉक्टर मधुमिता देबराय (बर्मन) ने मुख्य वक्ता की बातों का समाहार किया।

अंग्रेजी सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. जयदीप सारंगी ने अंग्रेजी साहित्य क्षेत्र में अनुवाद के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि विदेशी साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद के द्वारा हम अंतर्राष्ट्रीय संसार को जान पाते हैं ठीक उसी प्रकार भारतीय पृष्ठभूमि के अंग्रेजी साहित्यकारों तथा भारतीय साहित्य के अंग्रेजी अनुवादों के द्वारा हमारे समाज एवं संस्कृति की अस्मिताओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्घाटन होता है। सत्र के सभापति डॉ सुबोध सरकार वर्तमान दौर के अंग्रेजी साहित्य को अंग्रेजों के एकाधिकार से मुक्त होते साहित्य के रूप में देखते हैं। अंत में सिटी कॉलेज के शिक्षक संसद के सचिव डॉ. कौस्तव चक्रवर्ती के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी की समाप्ति हुई।

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