विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । मेरा दृढ़ विश्वास है कि देश के सभी नागरिकों को फौज की नौकरी जरूर करनी चाहिए और किसी कारणवश अगर सेना की सेवा करने का सौभाग्य न भी मिल पाए तो “ऑल इंडिया सर्विस लायबिलिटी” वाली नौकरी को प्राथमिकता देना चाहिए। ऐसा मैं चेन मार्केटिंग में फंस गए लोगों की तरह इसलिए नहीं कह रहा कि -‘मैं फंस गया तो तुम भी फंस जाओ।’ बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि पूरे देश को समझने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आप देश के विभिन्न हिस्सों में रहें, वहां के रीति-रिवाज, बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन, संस्कृति को समझें।
अब देखिए न, आज फसल पकने की खुशी में मनाया जाने वाला दक्षिण भारत का प्रसिद्ध त्यौहार ओणम है। जिन लोगों ने ‘ऑल इंडिया सर्विस लायबिलिटी’ वाली नौकरी नहीं की है, उनमें से बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह त्यौहार किसी देवता को समर्पित नहीं है बल्कि इस दिन दानव राजा बलि की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में पृथ्वी के दक्षिण भाग में राजा बलि का शासन था। वे भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद के पोते थे और महान दानी भी। उनके पास से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था, लेकिन वे देवताओं को अपना शत्रु मानते थे। एक बार उन्होंने स्वर्ग पर अधिकार करने के लिए विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य मुख्य पुरोहित थे।
देवताओं को जब पता चला कि स्वर्ग पर अधिकार करने के लिए बलि यज्ञ कर रहे हैं तो वे भगवान विष्णु के पास गए। देवताओं की सहायता के लिए भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान का संकल्प लेने से से मना कर दिया। दैत्य गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी बलि ने भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा।
जैसे ही भगवान वामन ने अपना पैर बलि के सिर पर रखा तो वह पाताल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। ये वरदान भी दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। मान्यता है कि इसी दिन राजा बलि अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने पृथ्वी पर आते हैं। राजा बलि के आगमन की खुशी में ही ओणम का त्योहार मनाया जाता है
यह पर्व थिरुवोणम नक्षत्र में मनाया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ पवित्र होता है। इस मौके पर घरों को रंग बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। यह किसी धर्म विशेष का त्यौहार भी नहीं रह गया है, अब इसे हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन सभी धर्मावलंबी बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। हां, इसे क्षेत्र विशेष का त्यौहार जरूर कह सकते हैं। सभी देशवासियों विशेषकर दक्षिण भारतीयों और उसमें से भी विशेष रूप से मल्लू भाइयों को ओणम की हार्दिक शुभकामनाएं।
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)