महिला समानता दिवस पर विशेष…

मां, बेटी, बहन, पत्नी, साथी, शक्ति है वो, प्रेरणा है वो! डॉ.विक्रम चौरसिया

नई दिल्ली । हम सभी आज भी अक्सर कई घरों में देखा ही होगा कि अगर किसी परिवार में दो जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ हो जिसमे एक लड़का हो एक लड़की हो तो अक्सर देखा जाता है कि लकड़े को बहादुरी वाले खिलौने लाकर दे दिया जाता है वही लड़की को चूल्हे चौके गुड़िया रानी वाली खिलौने देकर यही से मन मस्तिष्क में भर दिया जाता है कि तुम लड़की हो तो इसी के लिए बनी हो, खैर आज की वीरांगनाओं ने अपनी बहादुरी से इस बेड़ी को तोड़ रही है, चाहे फाइटर प्लेन उड़ाना हो या किसी भी क्षेत्र में देख ले पुरषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है फिर भी ये संख्या कम है।

इसी को लेकर जागरूकता के लिए ही वर्ष 1971 में अमेरिकी संसद ने हर वर्ष 26 अगस्त को ‘वूमेंस इक्वैलिटी डे’ के तौर पर मनाने की घोषणा की, राष्ट्र के एक एक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा उसे मौका मिले, लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीतियो की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पाते है साथ ही आज भी लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों और समुदायों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है ,पाठ्यपुस्तकों, फिल्मों, मीडिया आदि सभी जगह उनके साथ लिंग के अधार पर भेदभाव किया ही जाता है।

भारत के संविधान में महिलाओं के वोटिंग अधिकार का उल्लेख संविधान के आर्टिकल 326 में है, 1962 के चुनावों में देखे तो महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 46.63% था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गया है जो शुभ संकेत है, हालांकि वैसे भी देखे तो कुछ महिलाओं को विश्वस्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली पदों पर नेतृत्व करते पाया जा रहा है, लेकिन भारत में अभी भी ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को पितृ प्रधान समाज के विचारों, मानदंडों, परंपराओं और संरचनाओं के कारण अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से अनुभव करने की स्वतंत्रता नहीं मिली है।

यह तो हम सभी जानते ही हैं कि हर के नारी मां होती है किसी ना किसी का कभी मां, कभी बेटी, बहन है वो तो कभी पत्नी है वो, जीवन के हर सुख दुःख में शामिल है वो, शक्ति है वो, प्रेरणा है वो! नमन है सृष्टि के सभी उन नारियों को जो जीवन के हर मोड़ पर हमारा साथ देकर हमे इस धरा पर लाकर जीवन देती है, अंत में यही कहूंगा कि : जब होगी स्त्री पुरुष में समानता तभी रुकेगी यह विषमता, कहते भी तो है ही न की ये कोई नियम नहीं हैं कि पुरुष नौकरी करेंगे और महिलाएं घर चलाएंगी, समानता का अधिकार तो यह कहता हैं कोई भी नौकरी कर सकता हैं और कोई भी घर चला सकता हैं।

vikram
डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक/आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय

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