नई दिल्ली । अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सेना के लिए अंग्रेजों का एक ही नियम था- Welfare for officers, Discipline for jawans.”
लेकिन ऐसा लगता है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी सेना पर यही नियम लागू हो रहा है। आइए पड़ताल करते हैं…
2012 के लंदन ओलंपिक खेलों के दौरान भारत के खेल मंत्री अजय माकन थे। उन्होंने घोषणा की थी कि ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाले सभी भारतीय खिलाड़ियों को भारत सरकार “प्रथम श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी’ का पद प्रदान करेगी।
लंदन ओलंपिक खेलों में भारत ने दो रजत और 4 कांस्य सहित कुल 6 पदक जीते। इनमें से बाकी पांच खिलाड़ियों को उनके विभाग या भारत सरकार द्वारा “प्रथम श्रेणी का राजपत्रित अधिकारी” बना दिया गया, लेकिन भारतीय सेना के जवान विजय कुमार शर्मा को पुरुषों के 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल शूटिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने के बाद भी जवान (सूबेदार) ही बनाया गया। कमीशन रैंक प्रदान नहीं की गई। हालांकि उन्हें भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार व खेलों का सबसे बड़ा पुरस्कार तत्कालीन राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड (वर्तमान में ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड) दिया गया लेकिन तमाम दावों और आश्वासनों के बाद भी कमीशन रैंक प्रदान नहीं की गई।
इस पर सूबेदार विजय कुमार शर्मा ने उस समय अपनी नाराजगी भी व्यक्त की थी और सेना छोड़ने की धमकी भी दी थी। तब तत्कालीन खेल मंत्री, रक्षा मंत्री और आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह ने उन्हें छह महीने के अंदर कमीशन रैंक देने की बात कही थी। लेकिन वह 6 महीने आज 10 साल बीतने के बाद भी नहीं आए। शायद ब्रिटेन की महारानी की अनुमति न मिलने के कारण यह हो न सका
पिछले टोक्यो ओलंपिक में राजपूताना राइफल्स के सूबेदार नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता में देश के लिए स्वर्ण पदक जीता। अभी हाल ही में विश्व एथलेटिक्स खेल प्रतियोगिता में भी उन्होंने नए रिकॉर्ड के साथ रजत पदक जीता है। लेकिन फिर भी उन्हें कमीशन अधिकारी नहीं बनाया गया, न बनाया जाएगा। क्योंकि सेना के नियम इसकी अनुमति नहीं देते हैं और सेना के नियम बनाता कौन है?
“काले अंग्रेज”
विडंबना यह कि दिलीप वेंगसरकर, राहुल द्रविड़, महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर जैसे तमाम क्रिकेट खिलाड़ियों को सेना द्वारा मानद कमीशन रैंक देने में कोई गुरेज नहीं है लेकिन ओलंपिक जैसी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में सेना और पूरे देश का नाम रोशन करने वाले अपने जवानों को कमीशन रैंक देने में उनकी अंग्रेजी मानसिकता आड़े आ जाती है।
इन काले अंग्रेजों का मानना है कि 8-10 देशों में खेले जाने वाले क्रिकेट के खिलाड़ी सेना के “रोल मॉडल” हैं लेकिन ओलंपिक जैसी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में पदक जीतने वाले जवान इनके “रोल मॉडल” नहीं हैं।
क्योंकि “जवान” के हिस्से में सिर्फ Discipline आता है, Welfare नहीं।
(एयर वेटरन विनय सिंह बैस)
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)