सेवा का सबसे बड़ा अधिकारी हमारा मन ही है! डॉ. विक्रम चौरसिया

डॉ. विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली । ध्यान से देखा जाए तो आज हर इंसान को लगता कि वह काम में बहुत व्यस्त है, उस पर जिम्मेदारियों का व परिश्रम का बहुत ही बोझ है, लेकिन सच में देखे तो ऐसी बात नहीं है। मुझे लगता है उस इंसान का दैनिक दिनचर्या अनियंत्रित, बेसिलसिले, अस्त-व्यस्त ढंग का होगा, इसीलिए ही थोड़ा भी काम बहुत बड़ा लगता है। जिससे वो चिड़चिड़ा रहता है, अपने परिवार व अपनों को समय नहीं दे पाता जिससे रिस्तो में भी दरारे आने लगती है। व्यक्ति यदि हर काम को समय विभाजन के अनुसार सिलसिले ढंग व व्यवस्था के आधार पर बनाए तो सभी काम आसानी से हो सकता है, जिससे हम मानसिक भार से भी बच सकते हैं और समय का एक बहुत बड़ा भाग उपयोगी कार्यों के लिए खाली भी मिल जाएगा।

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डॉ. विक्रम चौरसिया

इस बात को याद रखना, मैं यह बार-बार बोलता रहता हूं भी की आप ही के अंदर पहले से ही शक्तियों का महावृक्ष है, बीज से अंकुर तभी फूटता है जब वह फटता है फिर एक दिन वह महावृक्ष बन जाता है, इसलिए आज से ही आप भी अपने सुप्त पड़ी शक्तियों को जगाने के लिए प्रयास करना शुरू करो। वही यह भी याद रहे की सेवा का सबसे बड़ा अधिकारी हमारा मन ही है, कहते भी तो है कि सेवाओं में समझाने की सेवा सबसे बड़ी सेवा होती है। किसी को हम धन या अन्य कोई भी वस्तुएं दे तो उस व्यक्ति को थोड़ी ही समय के लिए सुख मिल सकता है लेकिन यहीं पर कोई व्यक्ति किसी के समझाने से समझ जाए, कुमार्ग छोड़कर सन्मार्ग पर चलने लगे तो उसके सुखद सतपरिणामों की अत्यंत विशाल संभावना बन जाएगी।

मैं खुद इसी उम्र में ऐसा अपने जीवन में व अन्य दूसरों के जीवन में ऐसी घटनाएं घटते हुए देखा है, अंत में यही कहूंगा कि आप अपने सामर्थ्य अनुसार जितना हो सके लोगों में व खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करें याद रहे जीवन के उत्थान एवं पतन का केंद्र हमारा मन ही होता है। इसीलिए आज से ही भटके हुए व कुमार्ग के रास्ते पर चलने वाले के जीवन में रोशनी लाने के लिए समझाने की सेवा जो की सबसे बड़ी सेवा मानी गई है आप भी कर कर पुण्य का लाभ ले। यह तो आज सभी को मालूम है कि जिस इंसान का मन बेकाबू है। उसका सांसारिक जीवन असफल एवं दु:खमय में ही रहता है। कामवासना की लिप्सा जिसके मन पर चढ़ी रहती है।

वह सोते जागते अपने जीवन रस को बेहिसाब निचोड़ता रहता है व अंत में भीतर से खोखला होकर असमय ही अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाता है। इसीलिए अपने देश की युवा शक्ति को बचाने के लिए उन्हें सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कीजिए। जिससे उनके कष्टों व चिंता दूर हो। लेकिन याद रहे यह कार्य केवल उपदेशों से ही नहीं बल्कि अपना भी आदर्श उपस्थित करके ही किया जाना चाहिए। हम अपने को सुधार कर न केवल अपनी समस्याओं को हल करते हैं बल्कि औरों के लिए आदर्श उपस्थित करके उनको ऐसी ठोस शिक्षा देते हैं जिससे वो भी हमारी ही तरह शांति प्राप्त कर सकें। कहीं ना कहीं सेवा का यही सच्चा मार्ग भी है।

चिंतक/आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय
इंटरनेशनल यूनिसेफ काउंसिल दिल्ली निर्देशक

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