नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 के मामले में 50,000 रुपये की सहायता राशि के लिए कथित तौर पर फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने पर सोमवार को गहरी चिंता जतायी तथा इसकी जांच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से कराने का संकेत दिया। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि इस ‘अनैतिक’ कार्य में अगर कुछ अधिकारी भी शामिल हैं तो यह बेहद गंभीर मामला है। पीठ ने कहा, ‘हमें शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी की जरूरत है।” शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से औपचारिक आवेदन दायर नहीं करने पर उसकी खिंचाई की तथा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को मंगलवार तक का समय दिया।
मेहता ने पिछली सुनवाई सात मार्च को पीठ के समक्ष संकेत दिया था कि सहायता राशि का दावा करने के लिए कई राज्यों में कुछ डॉक्टरों द्वारा बेईमान लोगों को फर्जी मेडिकल प्रमाण पत्र जारी करना एक समस्या है। तब अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई करने का संकेत देते हुए केंद्र सरकार को औपचारिक आवेदन करने को कहा था। शीर्ष अदालत ने कोविड-19 मृत्यु के मामले में सहायता राशि के लिए फर्जीवाड़ा होने का संदेह जताये जाने पर कहा, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारी नैतिकता इतनी नीचे गिर सकती है। इस तरह के फर्जी दावे आ सकते हैं।
यह एक पवित्र दुनिया है। हमने कभी नहीं सोचा था कि इस योजना का दुरुपयोग किया जा सकता है।” पीठ ने कहा, “वह दावों की जांच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को करने का निर्देश दे सकती है।” इस मामले में अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी। वरिष्ठ वकील आर. बसंत ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा मुआवजे के दावों की रैंडम जांच करने का सुझाव दिया।
जबकि अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने ऐसे मामलों से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 52 की ओर इशारा किया। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके द्वारा आदेशित 50,000 रुपये की सहायता राशि का कोविड -19 के मामले में (बच्चों सहित) भुगतान किया जाना है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले के अनुपालन की जांच करते हुए सात मार्च को भी कथित फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र पर चिंता व्यक्त की थी।