गोपाल नेवार, ‘गणेश’  सलुवा की कविता : इंसान बदल गया

।।इंसान बदल गया।।
गोपाल नेवार, ‘गणेश’  सलुवा

वो भी एक जमाना था
ये भी एक जमाना है।

पहले परिवार एक साथ रहा करते थे
अब परिवार अलग-अलग रहने लगे है,
पहले माता-पिता, बेटे के साथ रहा करते थे
अब माता-पिता वृद्धाश्रम में रहने लगे है,
पहले साथ-साथ रहकर गर्व किया करते थे
अब अलग-अलग रहकर गर्व करने लगे है,
वो भी एक जमाना था
ये भी एक जमाना है।

पहले बेटियाँ, बाबुल की दुआयें लेकर
ड़ोली चढ़कर ससुराल जाया करती थी,
अब बगैर दुआओं के ही स्वयं निर्णय लेकर
कोर्ट जाकर कोर्ट मैरिज करने लगी है,
पहले घर की कलह मिला लिया करती थी
अब छोटी सी विवाद में भी कोर्ट जाने लगी है,
वो भी एक जमाना था
ये भी एक जमाना है।

पहले हम बुजुर्गों पर गर्व करते थे
क्योंकि वे बच्चों के साथ मिलकर रहते थे,
अब हम उन कुछ बच्चों पर गर्व करते है
क्योंकि वे बुजुर्गों के साथ मिलकर रहते है,
लोग कहते है कि, जमाना बदल गया है
मेरा मानना है कि, इंसान बदल गया है,
वो भी एक जमाना था
ये भी एक जमाना है।

गोपाल नेवार, ‘गणेश’

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