सबक जो रूस और युक्रेन युद्ध से लेने चाहिये…

रूस :- रूस से हम ये सीख सकते हैं कि आज भी विश्व में कहीं न कहीं जंगल का कानून ही चलता है। अर्थात जब तक जूते में दम, तब तक मालिक हम। आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी शक्ति है, चाहे एक व्यक्ति के संबंध में हो या एक राष्ट्र के संबंध में और आत्मनिर्भरता चाहे वित्त की हो, सामरिक संसाधनों की हो, खाद्यान्न की हो या फिर भावनात्मक हो।
बली व्यक्ति का किया गया अन्याय भी अन्याय की श्रेणी में नहीं आता। तो अवश्यक ये है कि सर्वप्रथम स्वयं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाए… फिर चाहे एक व्यक्ति के रूप में हो या एक राष्ट्र के रूप में। रूस एक राष्ट्र के रूप में इतना सशक्त है कि 30 के 30 नाटो देशों की हिम्मत नहीं कि उसको सीधे चुनौती दे सकें।

युक्रेन :- शांतिप्रियता अच्छा गुण है पर उस शांति को बना कर रखने के लिए शक्ति सम्पन्नता भी होनी चाहिये अन्यथा शांति चयन नहीं मजबूरी कहलाती है। बड़े विवादों से निपटने की क्षमता अगर स्वयं न हो तो दूसरे के भरोसे कोई बड़ा पंगा लेने से बचना चाहिये अन्यथा औकात स्कैपगोट के अतिरिक्त कुछ नहीं रह जाती। अलगाववाद का फन अगर समय रहते न कुचला जाए तो एक दिन विस्फोट अवश्य होता है। जब युद्ध सिर पर आ कर खड़ा ही हो जाए तो अंतिम श्वांस तक लड़ कर वीरों की भांति गर्दन उठा कर मरना बेहतर है। युक्रेन की सराहना करनी होगी कि परिणाम ज्ञात होने पर भी आत्मसमर्पण नहीं किया। ख़त्म हो गया तो भी विश्व इतिहास में युक्रेन एक वीर देश के रूप में अंकित किया जाएगा।

अंततः — युक्रेन में अब नागरिकों से भी अपील की जा चुकी है जो भी हथियार चलाने में सक्षम हो वो रूसी फ़ौज से सीधा मुकाबला करें। सीनियर सिटीजन्स में भी बन्दूकें बंटवा दी गई हैं। कल्पना कीजिये कि यदि भारत के ऊपर भी ऐसा संकट आ गया तो क्या हमारे नागरिकों में इतना आत्मबल है कि वो चीन और पाकिस्तान की सेना से सीधे लड़ सकें? या फिर मोदी जी बचा लो, मोदी जी बचा लो करना चुनेंगे?
अगर तैयारी नहीं है तो भारतीय नागरिकों को स्वयं को मानसिक और शारीरिक, दोनों ही रूप से स्वयं को तैयार करना ही चाहिये। द वर्स्ट के लिए तैयार रहने वाला ही द बेस्ट का भोग करता है।

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
ईमेल : prafulsingh90@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × 2 =