हम सभी में बसा है एक शिशु…

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ। आज एक छोटे बच्चे का गाया शिव ताण्डव स्तोत्र सुन

समस्त सृष्टि में शिवाय की गूंज

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” । चारो ओर घना अंधेरा है। रात ने जंगल को घेर

प्रेम ज्योत से ज्योत मिलाय

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”। प्रेम ऐसे धँसता है जैसे धँसती है साँझ की धूप पानी

सबक जो रूस और युक्रेन युद्ध से लेने चाहिये…

रूस :- रूस से हम ये सीख सकते हैं कि आज भी विश्व में कहीं

मनुष्य आखिर है क्या?

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” : मनुष्य का अन्तर्जगत इतने प्रचण्ड उत्पात-घात, प्रपंचों, उत्थान पतन, घृणा,

दोबारा इस वर्ष की पुनरावृत्ति ना हो

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” : एक तूफान की तरह गुजरा यह वर्ष। बीस से इक्कीस