इस महामारी ने वैश्वीकरण को मजबूत किया है या कमजोर (आलेख) : रिया सिंह

आज बात जब पूरे विश्व की है तो यहां किसी एक परिणाम पर पहुंचना तर्कसंगत मालूम होता है जिस प्रकार दिन – रात का होना तय है उसी प्रकार अच्छाई और बुराई दोनों जीवन का हिस्सा है हमारे समाज में कई भांति के लोग निवास करते हैं कुछ तो ऐसे हैं जो नि:स्वार्थ मन से मदद की आकांक्षा रखते हैं अथवा कुछ ऐसे भी हैं, जिनके कार्य के पीछे स्वार्थ जान पड़ता है जिसका परिणाम हमारे देश में साफ दिखाई देता है यही कारण है कि कोरोना वाइरस जैसी महामारी ने वैश्वीकरण को कहीं मजबूत तो कहीं कमजोर किया है।
आज हमारे भारत देश को आजाद हुए कई वर्ष बीत गए हैं वह समय जब हमारे देश में भ्रष्टाचार की कोई सीमा ना थी जब मजदूर किसान जैसे निम्न वर्ग के लोगों को कैद खाने में अपना जीवन बिताना पड़ता था जब भूख की महामारी से चोरी करना और एक दूसरे को हानि पहुंचाना आम बात थी आज इतने वर्षों बाद मानो इतिहास उसी स्थिति को दोहरा रहा हो जब हर श्रेणी के लोग चारदीवारी में कैद से मालूम होते हैं मनुष्य मनुष्य से दूरी बना रहा है हां आज एक मनहूस सी बीमारी का शिकार हम लोग होते जा रहे हैं।
इस महामारी ने धीरे-धीरे हर क्षेत्र हर राज्य में अपना कब्जा जमा लिया है जिसका डर आज सबको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करता जा रहा है इतना ही नहीं बल्कि इस महामारी ने तो कई लाखों बेगुनाहों को मौत के मुंह में झोंक दिया है उनका कसूर देखे तो कुछ भी नहीं पर सजा सबको मिली  इस महामारी ने सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि अमेरिका, इटली, चीन, जैसे देशों को भी अपना शिकार बनाया है।
इस महामारी को देखते हुए हमारी सुरक्षा के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  पूरे भारत पर लॉकडाउन लगवा दिया है। पर यदि हम बात करें हर राज्य की तो हर राज्य की आर्थिक रूप से हो चाहे भौगोलिक रूप से सबकी अपनी अपनी नीति है हमारे देश की एकता टूटती जा रही है सिर्फ मुंह से नारे लगाना अनेकता में एकता वाली बात कहां देखने को मिलती है।
आज सरकार एकजुट होने की सलाह जरूर देती है पर हर राज्य की आर्थिक स्थिति हो या भौगोलिक उनके अपने नियम कानून है कुछ राज्य तो आज भी बंद पड़े हैं पर बंगाल, यूपी, बिहार जैसे राज्यों को खोल दिया गया। कई स्थान  जैसे होटल, शॉपिंग मॉल, धार्मिक स्थानों को कुछ नियमों के साथ खोला गया है। इसका यह अर्थ नहीं कि इस महामारी को हम नज़र अंदाज़ करें पर आज सभी लोग पहले की तरह सड़कों पर भीड जमा करते हुए दिखाई पड़ते हैं और तो और बसों में पांव रखने तक की भी जगह नहीं होती है जिसकी वजह से इस महामारी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है क्या इसी प्रकार से जनता नियमों का पालन करेगी?
आज हर राज्य अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहा है। सरकार द्वारा किए गए लॉकडॉउन से आज हजारों मजदूर किसान  अपने घरों में बैठे हैं, जिनकी आमदनी बहुत अधिक नहीं है पर दो रोटी भर की थी आज उनकी दयनीय स्थिति पर नजर डालें तो तरस सा आता है। आज ऑटो रिक्शा चलाने वालों की  भी हालत बहुत बुरी मालूम होती है ऐसी स्थिति में भोजन से लेकर अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए इन्हें तकलीफें सहनी पड़ रही है।
यदि इस बीच किसी भी व्यक्ति को अगर इस महामारी ने अपना शिकार बना लिया है तो उनके आसपास रहने वाले लोगों को भी लोग उसी नजर से देखते हैं बल्कि उन्हें दुकानों पर समान या राशन की कोई भी सामग्री नहीं देते उन्हें उल्टे पांव घर लौटना पड़ता है और तो और चाहे अखबार वाला हो या दूध वाला उनके घर पर कोई भी सामान देने को राजी नहीं होता है। क्या यही हमारे देश की एकता है ऐसे समय में हमलोगो को उनकी मदद करने के बजाय उनसे मुंह मोड़ लेते हैं।
आखिर क्यों आज वही छुआछूत वाली कहावत पुरानी हुई , भला ऐसी परिस्थितियों में हमें एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए पर लोग एक दूसरे की मदद करने के बजाय उनसे दूरी बनाने लगे हैं इस महामारी ने सब कुछ उलट पलट कर रख दिया है। चाहे वह करोड़ों बच्चों की पढ़ाई हो या उनका आने वाला भविष्य मानो सब कुछ रुक सा गया है जहां तक बात रही ऑनलाइन शिक्षा की तो हमें घर में वह वातावरण नहीं मिल पाता जो हमें स्कूल कॉलेज में मिलता है।
हमारा देश ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार नहीं भला क्या  हमने कभी ऐसा सोचा था कि ऐसी महामारी का सामना करना पड़ेगा कभी बिजली की परेशानी तो कभी घरों में होने वाली हलचल तो कभी फोन का नेटवर्क ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और कुछ लोगों के घरों में स्मार्टफोन की भी सुविधा नहीं है जिसकी वजह से हम मानसिक रूप से अपने आप को तैयार नहीं कर पाते ऑनलाइन शिक्षा के लिए इस प्रकार हर क्षेत्र में शिक्षा को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते हैं।
अपने काम के प्रति हमारा लगन तभी संभव है जब हम वह वातावरण पा सकेंगे हम किसी केंद्र या सरकार को दोषी नहीं कह सकते आज परिस्थितियां ही कुछ ऐसी है कि हमारा देश संघर्ष कर है हमारे समाज में रहने वाले लोग अपना मार्ग स्वयं बनाने लगे हैं जिस पर चलना उन्हें आसान लगता है और सिर्फ वे अपनी सुविधा के अनुसार कार्य करते हैं यदि प्रत्येक व्यक्ति नि: स्वार्थ मन से किसी भी कार्य को करने की लालसा रखता हो तो वहां एक दूसरे के प्रति एकता देखने को मिलती है पर आज वह समानता नि:स्वर्थता सिर्फ कहने की बात हो गई है।
जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा कि किसी एक परिणाम पर पहुंचकर निष्कर्ष देना अत्यंत कठिन है। इस महामारी ने हमारे देश के वैश्वीकरण को सिर्फ कमजोर ही नहीं बल्कि कई स्तर पर मजबूत भी किया है। इस देश में ऐसे कई महान लोग भी हैं जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के कई हजारों मजदूरों की सहायता की है जो लोग अपने लोगों से दूर काम करके चार पैसे कमाने शहरों में आए थे इस दौरान इस महामारी के डर से वे अपने घरों को लौटना चाहते थे।
अपने परिवार के पास पर उनके लिए यह सुविधा नहीं थी कि वह अपने घर जा सके हजारों कर्मचारी मजदूर सभी पैदल ही अपने घर का रास्ता तय करने निकल पड़े थे पर आज सोनू सूद जैसे लोग इस महामारी में उन प्रवासियों का मसीहा बन कर उनके लिए बसों का ट्रकों का इंतजाम करवाया और उन्हें सुरक्षित घर तक पहुंचाया है।
इस महामारी में आज भले ही हम परेशान हैं अपने घरों से बाहर नहीं जा पा रहे हैं पर इस लड़ाई को हमें अपने घरों में रहकर ही लड़ना होगा हमें सरकार की आज्ञा का पालन करना होगा वह हमारे लिए एक बेहतर जीवन का रास्ता बनाते हैं  आज हमारे देश की एकता विदेशी सरकारों को भी प्रभावित करती है इस लड़ाई में भारतीय जनता ही नहीं बल्कि अमेरिका इटली जैसे देश भी भारत के साथ खड़े हैं और इस लड़ाई में सब एक साथ होते जा रहे हैं।
आज सभी देश विदेश के डॉक्टर्स मिल कर इस महामारी के इलाज की दवा बनाने में लगे हैं पर असमर्थ मालूम होते हैं पर आशा है कि जल्दी ही वो इस मर्ज की दवा भी बनाने में सफल होंगे आज अंधकार है तो क्या वह सुबह दूर नहीं जब प्रभात की किरणें फिर से पूरे विश्व में अपनी कोमलता बिखेर देगी और चाहे रामनवमी हो या दीपावली हो  ईद हो या कोई भी उत्सव हम सब यह त्यौहार घरों से निकलकर सबके साथ मनाएंगे।
-रिया सिंह  ✍🏻
स्नातक, तृतीय वर्ष, (हिंदी ऑनर्स)

टीएचके जैन कॉलेज

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