दोबारा इस वर्ष की पुनरावृत्ति ना हो

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” : एक तूफान की तरह गुजरा यह वर्ष। बीस से इक्कीस ही रहा अपनी भयावहता, आक्रामकता और मारक क्षमता की दृष्टि से एक छमाही तो इसने कैद में रखा और थोड़ी राहत दी भी तो पूरे पहरे में चलने की। जाते जाते भी हुंकार करता और चेताता हुआ विदा माँग रहा है। इस वर्ष ने बहुत शब्द दिये। अशिक्षित हों या शिक्षित ग्रामीण हों या शहरी प्राणवायु की चोरबाजारी कालाबाजारी सीख गये। आक्सीजन शब्द सबकी जिह्वा पर आ गया। यह अलग बात है कि सरकारी आँकड़े आक्सीजन की कमी को नहीं स्वीकारते पर उनका दर्द कौन समझे जो आक्सीजन के सिलिंडर के लिए पंक्तिबद्ध रहे। उन बदनसीबों का नया वर्ष जो अपने प्रियजनों का संस्कार नहीं कर सके।

आतंक के पर्याय बने इस काले वर्ष को विदा दें तो कैसे खुशी मना कर या गम? इसे याद करें तो किस रूप में? हर शहर ने बहुत कुछ खोया है। कानपुर के भी बहुत से कंठ मौन हो गये, कितनी खिलखिलाहटें डूब गयीं। कितने बूढ़े पेड़ खड़े तो हैं पर उनके हाथ कटे हुए हैं। साहित्यिक परिदृश्य जो जीवन देता था वहाँ भी चीखें दे गया। हमारा समाज उत्सवधर्मी है और राजनीति अवसरधर्मी दोनों का योग हमें भीड़ बनाता है। उत्सव और अवसर से यदि निकल सकें तो समाज बनते हैं। करुणा सामाजिक होती है भीड़ का स्वभाव नहीं। 2021 चुनौती देता जा रहा है। फिर देख लेने की धमकी दे रहा है पर 2021 में जो करुणा उस संकट में समाज बनाने की कोशिश कर रही थी उसे भुलाकर हम फिर भीड़ बनने के लिए आतुर हैं।

अतीत और व्यतीत के बावजूद डरी सहमी आहटें इस बात का अहसास कराती हैं कि जीवन हारता नहीं है। मुँह पर लगाम लगाये ही सही हम गुनगुनाने की कोशिश करते रहे है। इसीलिए कविता को करुणा भी कहा जाता है। इस भयानकता से उबर कर जो जीवन संघर्ष करता है उसे परीक्षित कहा जाता है अश्वत्थामा नहीं जो शेष को भी निःशेष करने में लगा रहा और परीक्षित जो गर्भ में ही ब्रह्मास्त्र का प्रहार सहता है।

तो आइये आगे बढ़ें पर समाज बनकर भीड़ बनकर नहीं। समय के ये अंतराल मानव निर्मित हैं संवत हो ईसवी ये मनाने के लिए नहीं सोचने के लिए होते हैं। काल के अनंत प्रवाह का यह एक छोटा सा अंश हमारे जीवन का है प्रकृति का नहीं। काल की एक विशेषता है वह कभी विश्राम नहीं करता। चरैवेती का संदेश देता है। इस विभीषिका ने भी जीवन रक्षा के संदेश दिये हैं। हमें उनके साथ चलना होगा, सृजन करना होगा। सृजन का ही दूसरा नाम जीवन है और जीवन वही है जो काल के साथ गतिमान हो। नववर्ष की अमृतमय शुभकामनाएं।

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
ईमेल : prafulsingh90@gmail.com

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