अहसास
आज भी ये अहसास कि
तुम खड़े हो वहीं
जहाँ अक्सर खड़े हो कर
देखा करते थे मुझे
पलट कर देखने तक
यही आभास बना रहता है
कभी मेरे कान में
कुछ हौले से कह जाते हो
जैसे पहले कभी
कह देते थे मेरे कान में
और मैं अपनी मुस्कान
छिपा कर देख लेती थी
तुम्हें झूठे गुस्से से
अब देखती हूँ उसी तरफ़
आँसू छिपा कर
होठों पर आ जाती है
झूठी मुस्कान
साथ बैठे रहते हो आज भी
बस अहसास में तुम
लगता है तुम्हारे हाथ ने
ले लिया मेरा हाथ अपने पास
कि मैं जा ना सकूँ
तुम्हे छोड़कर किसी काम से
पर तुम चले गए हो मुझे छोड़कर
किसी ऐसे जहां में जहाँ से
कभी तुम्हारा हाथ
मेरे हाथों में नहीं आएगा
सहला जाते हो कभी मेरा सिर
अपने स्नेहिल स्पर्श से
मेरी आँख बंद रहने तक
ये स्पर्श महसूस करती हूं
और आँख खुलते ही
ओझल हो जाते हो
दूर किसी शून्य में
ऐसी भी क्या जल्दी थी
तुम्हें जाने की।
सुषमा गुप्ता
शानदार कविता💐💐