उदयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डा मोहन भागवत ने व्यक्ति निर्माण का कार्य संघ का लक्ष्य बताते हुये कहा है कि हिन्दू राष्ट्र के परम वैभव में विश्व का कल्याण निहित है। तीन दिवसीय दौरे पर उदयपुर आये डा भागवत ने आज अंतिम दिन यहां आयोजित प्रबुद्धजन गोष्ठी में संघ के उद्देश्य, विचार एवं कार्य पद्धति के विषय पर उद्बोधन देते हुए कहा कि व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण, समाज निर्माण से देश निर्माण संभव है।
उन्होंने कहा कि जो स्वयंसेवक अन्यान्य क्षेत्र में स्वायत्त रूप से कार्य कर रहे हैं, मात्र उन्हें देख कर ही संघ के प्रति किसी तरह की धारणा नहीं बनाई जा सकती। संघ विश्व बंधुत्व की भावना से कार्य करता है। संघ के लिए समस्त विश्व अपना है। डा भागवत ने कहा कि संघ को नाम कमाने की लालसा नहीं है। क्रेडिट, लोकप्रियता संघ को नहीं चाहिए। 80 के दशक तक हिंदू शब्द से भी सार्वजनिक परहेज किया जाता था, संघ ने इस विपरीत परिस्थिति में भी कार्य किया।
प्रारंभिककाल की साधनहीनता के बावजूद संघ आज विश्व के सबसे बड़े संगठन के स्वरूप में है। संघ प्रमाणिक रूप से कार्य करने वाले विश्वसनीय, कथनी करनी में अंतर न रखने वाले समाज के विश्वासपात्र लोगों का संगठन है। उन्होंने कहा कि सभी हिंदू हमारे बंधु हैं, यही संघ है। संघ की शाखा, संघ के स्वयंसेवक यही संघ है। समाज में सकारात्मक सेवा कार्य स्वयंसेवक स्वायत्त रूप से करते हैं।
संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को उद्धृत करते हुए कहा कि वे कहते थे, हिंदू समाज का संगठन भारत की समस्त समस्याओं का समाधान कर सकता है। हम सभी भारत माता की संतान हैं, हिंदू अर्थात सनातन संस्कृति को मानने वाले हैं। सनातन संस्कृति के संस्कार विश्व को आलोकित कर सकते हैं। हिंदू की विचारधारा ही शांति और सत्य की है।
हम हिंदू नहीं है, ऐसा एक अभियान देश व समाज को कमजोर करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। जहां जहां विभिन्न कारणों से हिंदू जनसंख्या कम हुई है, वहां समस्याएं उत्पन हुई हैं, इसलिए हिंदू संगठन सर्वव्यापी बन कर विश्व कल्याण की ही बात करेगा। डा भागवत ने कहा कि हिंदू राष्ट्र के परम वैभव में विश्व का ही कल्याण होगा।
हिन्दुत्व को सरल शब्दों में समझाते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा कोरोनाकाल में किया गया निस्वार्थ सेवा कार्य ही हिन्दुत्व है। इसमें सर्वकल्याण का भाव निहित है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया था कि दिखने में जो भारत की विविधता है उसके मूल में एकता का एक भाव है, युगों से इस पुण्य भूमि पर रहने वाले पूर्वजों के वंशज हम सभी हिंदू हैं, यही भाव हिंदुत्व है। गोष्ठी में 300 से अधिक प्रबुद्धजन गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।