किरण नांदगाँवकर, मध्यप्रदेश : क्रिकेट में मैदान में खेल के अलावा जुबानी लडाई भी अक्सर चलती रहती है। खिलाडी अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग कर या उकसाकर प्रतिद्वंदिता को प्रभावित करने का कुत्सित प्रयास इस रुप में भी करते है। स्लेजिंग क्रिकेट में अक्सर समय दर समय देखने मिलती है। कई बार खिलाडिय़ों को नस्लभेदी टिप्पणियों का कड़वा घूंट भी पीना पड़ता है। मकसद यही होता है की इससे खिलाडी की एकाग्रता भंग हो और वह अपना बेहतर प्रदर्शन ना दे सके।
हांलाकि ऐसा भी होता है की इस स्लेजिंग, अभद्रता के कारण कई खिलाडी और अधिक आत्मविश्वास जुटाकर अपनी क्षमता से अधिक बेहतर प्रदर्शन कर जाते है, जो अभद्रता वाले खिलाड़ी या टीम के लिए “लेने के देने पड गए” का रुप सामने आता है।
भारतीय क्रिकेट टीम भी इस स्लेजिंग, अभद्रता, नस्लभेदी टिप्पणी और जुबानी जंग से बच नहीं पाई है और हमारे खिलाडी भी इसके बार-बार शिकार होते रहे है और यह अब भी जारी है। ऑस्ट्रेलिया में स्लेजिंग एक आम बात है और भारतीय टीम जब भी ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर गई इससे दो-चार हुई।
पहले भारत के खिलाड़ी इसका जवाब उतनी मुखरता से नहीं देते थे लेकिन अब हमारे खिलाड़ी इस स्लेजिंग का जवाब उसी भाषा म़े देते हैं और अब तो वह जीत दर्ज कर मुंह तोड जवाब के रुप में दिया जाने लगा है। वैसे ऑस्ट्रेलियाई, इंग्लिश और अन्य देश की इस प्रवृत्ति में पहले से कमी आई है। क्योंकि अब इन देशों के खिलाडी भारत में आकर आइपीएल खेल कर लाखों-करोडों रूपये समेट कर ले जाते है इसलिए इनके मुंह पर अलीगढ़ का ताला जड़ जाता है। लेकिन फिर भी भद्र खेल खेलने वाले खिलाड़ी अपनी अभद्रता से बाज़ नहीं आते है और इस तरह के वाकये सामने आ ही जाते है।
ऑस्ट्रेलिया की तरह इंग्लैंड भी एक ऐसी टीम है जिसके खिलाडी भारत के साथ जुबानी जंग से बाज़ नहीं आते है। यह अलग बात है की इंग्लैंड के खिलाडिय़ों ने भारत के साथ जब-जब ऐसी हरकत की है उन इंग्लिश खिलाडीयों को उसका मुंहतोड़ जवाब मिला है।
बात है सन् २००२ की, इंग्लैंड टीम तीन टेस्ट और सात एक दिवसीय मैचों की श्रृंखला खेलने भारत आई। इस श्रृंखला के पाँच एक दिवसीय मैचों में परिणाम था 3-2 से भारत के पक्ष में। अंतिम एकदिवसीय मुंबई के वानखेडें में खेला गया। भारत को इंग्लैंड के बनाएँ 255 रन के जवाब में अंतिम ओवर में 11 रन जीतने के लिए चाहिए थे। कुंबले और हेमंत बदानी खेल रहे थे। ओवर था एंड्रयू फ्लिंटॉफ के हाथ। इस ओवर में कुंबले रन आउट हो गए और बदानी को फ्लिंटॉफ ने तब बोल्ड कर दिया जब जीत भारत से पाँच रन दूर थी।
फ्लिंटॉफ ने बदानी के बोल्ड होते ही खचाखच भरे़ वानखेडे में बिच मैदान पर ही अपनी टी शर्ट उतार दी। यह किसी के लिए भी हैरानी वाला वाकया था। ग्राउंड के किनारे बैठे कप्तान सौरव गांगुली वापस ड्रेसिंग रुम में चले गए। यह बरदाश्त के बाहर था।
फिर अवसर था उसी वर्ष इंग्लैंड में नेटवेस्ट सीरीज के फाइनल का। इंग्लैंड, भारत की टीमें एक बार फिर आमने सामने थी। इंग्लैंड ने बनाया पहाड जैसा 325 का स्कोर। दादा ने 60 रन और वीरु ने 45 रन कि अच्छी पारी खेली। उसके बाद युवराज और कैफ ने जो बल्लेबाजी की वो अब इतिहास है। सौरव गांगुली उस वक्त लॉर्डस की उस प्रसिद्ध गैलरी में बैठे थे जहां कभी कपिल देव विश्व कप ट्रॉफी उठा चूके थे।
जब जीत के लिए 58 रन चाहिए थे तब युवराज आउट हो गए लेकिन मो. कैफ पहले हरभजन और फिर जहिर खान के साथ मैच अंतिम ओवर तक ले गए। अंतिम ओवर में भारत को जीत के लिए सिर्फ 2 रन चाहिए थे और जब जहीर ने ये 2 रन लिए तब लॉर्ड्स की उस गैलरी में बैठे गांगुली ने अपनी टी शर्ट उतारकर हवा में लहरा दी। भारत नेट वेस्ट ट्रॉफी जीत चुका था। दरअसल यह फ्लिंटॉफ की उस अभद्रता का जवाब था जो उन्होंने वानखेडें में किया था।
अवसर था सन् 2007 का, भारतीय टीम इंग्लैंड दौरे पर थी और इसमें ओवल में खेले गए एक दिवसीय मैच में इंग्लैंड 49 ओवर तक 286/6 रन बनाकर खेल रही थी। 50वां ओवर युवराज सिंह के हाथ था। सामने थे दिमित्री मस्करेन्हास। मस्करेन्हास ने युवी के उस ओवर में एक के बाद एक पाच छक्के उड़ा दिए। युवराज इसको भूले नहीं।
अवसर आया इसी वर्ष 2007 टी-20 विश्व कप का मैच था फिर एक बार भारत-इंग्लैंड के बीच। युवराज ने इस मैच में गेंदबाजी कर रहे फ्लिंटॉफ को दो चौके मार दिए। फ्लिंटॉफ ने इस पर युवराज से जुबानी जंग कर ली और युवराज को यहां तक बोल दिया की “तू बाहर आ मैं तेरा गला काट दूंगा”। फिर क्या था युवराज सिंह का पारा ऐसा चढ़ा की अगला ओवर स्टुअर्ट ब्रॉड का था और फिर ब्रॉड अपनी हर पर गेंद पर सिर्फ आसमान ताक रहे थे।
युवराज ने फ्लिंटॉफ का जवाब एक ओवर में छह छक्के लगाकर दिया था। युवराज ने सारा हिसाब एक साथ कर दिया था। मस्करेन्हास भी इस मैच में बैठे हुए उस “बदले” को पूरा होते देख रहे थे। फ्लिंटॉफ को घटियापन का जवाब फिर एक बार मुंहतोड़ मिला।
अवसर भारत का इंग्लैंड दौरा 2021 अभी कुछ दिनो पूर्व, नॉटिंघम का पहला टेस्ट बारिश में धूला। दूसरा टेस्ट लॉर्ड्स में अंतिम दिन निर्णायक स्थिति म़े पहूँचा। जीत कोई भी सकता था। लेकिन पराजय का खतरा भारत पर ज्यादा था। क्योंकि सिर्फ 157 रन भारत के हाथ थे और रिषभ पंत के साथ बल्लेबाजी के लिए सारे पुछल्ले ही थे। पंत जल्दी आउट हो गए। क्रीज पर थे बूमराह और मो. शमी। इससे पहले जेम्स एंडरसन और कोहली के बीच कहा-सुनी हो चूकि थी। उसके बाद बटलर और बूमराह के बीच भी विवाद हुआ।
मार्क वुड ने बूमराह के सिर को निशाना बनाया और शॉर्ट पिच गेंदे डाली। उसके बाद बूमराह की जो रुट और एंडरसन से भी बहस हुई। इस सारे वाद-विवाद का परिणाम यह हुआ की उकसाए गए और तमतमाएँ मो. शमी और बूमराह ने फिर वो कर दिखाया जो इंग्लैंड के खिलाडी बरसों-बरस नहीं भूलेंगे।
शमी ने अर्धशतक और बूमराह ने 34 रन अंग्रेजों पर लगभग आक्रमण बोलते हुए बना दिए और 272 का ऐसा स्कोर बोर्ड पर लगा दिया जो अंततः इंग्लैंड की हार का सबब बना। भारत के गेंदबाजों ने इंग्लिश बल्लेबाजी के परखच्चे उडाते हुए 120 रन के शर्मनाक स्कोर पर उखाड कर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ही दम लिया। एक बार फिर एंडरसन, बटलर, रॉबिन्सन को अभद्रता भारी पड़ी। इस बदजुबानी की कीमत इंग्लैंड ने फिर हार के रुप म़े चुकाई।
सार यही है की स्लेजिंग हो, बदजुबानी हो, उकसाना हो या और कोई अभद्रता हो यह “आटे में नमक” के बराबर तक तो ठिक है। लेकिन इससे जब किसी खिलाडी या टीम के स्वाभिमान को चोट पहुंचती हो तो वह मर्माहत हो जाती है और परिणाम प्रतिउत्तर में मुंह की खाने के रुप में सामने आते है। इंग्लैंड टीम भारत के साथ इस बदजुबानी जंग में हर बार मुंह की खा चूकी है लेकिन उसका यह “आ बैल मुझे मार” वाला शो सतत् जारी है। खुदा खैर करें!!