तुलसीदास जैसी राम राज्य की अवधारणा और कोई भी नहीं कर सका : श्री वाजपेई

  • स्वतंत्रता दिवस एवं तुलसी जयंती पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने आयोजित की संगोष्ठी

निप्र, उज्जैन : संपूर्ण भारतीय दर्शन विरासत संस्कारों और संस्कृति से साक्षात्कार कराता है। संत तुलसीदास रचित साहित्य उनके जैसा रामराज्य की कल्पना और अवधारणा और कोई अब तक नहीं कर सका। गांधीजी भी एवं अन्य जो उस समय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे तुलसीदास से प्रभावित थे। उपरोक्त विचार विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए जिसका विषय था, तुलसीदास एवं आधुनिक परिपेक्ष।

डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गांधीजी का स्वराज तुलसीदास की ही कल्पना थी। मुख्य अतिथि नॉर्वे ओस्लो से सुरेश चंद शुक्ला ने कहा कि तुलसीदास का साहित्यिक जीवन दर्शन कराता है, विश्व में उन्हें सभी जगह पूजा जाता है पर भारत में वर्तमान में चुनौतियां हैं। मुख्य वक्ता के रूप में भोपाल की डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने तुलसीदास को लोक रंजक और भारतीय संस्कृति का संरक्षक कवि बताया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उज्जैन के बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि तुलसीदास का दृष्टिकोण व्यापक था राम के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण विश्व को एक दृष्टि से देखा वह थे हैं और सदैव रहेंगे। इंदौर से हिंदी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेई ने रामचरितमानस के कुछ प्रसंगों को प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास को स्वतंत्रता प्रिय साहित्यकार बताया। पराधीन सपनेहु सुख नाहीं इस विषय पर उन्होंने विशद व्याख्या की आजादी के लिए उन्हें प्रेरणा प्रदाता बताया।

मुंबई की सुवर्णा जाधव ने तुलसीदास को सामाजिक सामंजस्य और समरसता की भावना का कवि बताया तथा उनके जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला। इंदौर से डॉ. जी.डी. अग्रवाल ने रत्नावली प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए उन्हें एक संत कवि बताया। रायपुर से प्रोफेसर पूर्णिमा कौशिक ने सरस्वती वंदना के साथ तुलसीदास के संदर्भ में भी अपने विचार व्यक्त किए एवं वक्ताओं का परिचय दिया।

संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की एवं बताया यह संयोग है कि आज स्वतंत्रता दिवस पर तुलसीदास जी की जयंती हम मना रहे हैं जो दोनों ही प्रसंग राष्ट्र के गौरव के है। कार्यक्रम का सरस संचालन तुलसी साहित्य को प्रस्तुत करते हुए गाजियाबाद से डॉ. रश्मि चौबे ने किया। अंत में आभार प्रयागराज की उर्वशी उपाध्याय ने व्यक्त किया। गोष्ठी में डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक लक्ष्मीकांत डॉक्टर शिवा लोहारिया डॉ. प्रवीणबाला साहेब तोरसकर एवं डॉ. रोहिणी डावरे आदि कई साहित्यकारों ने सहभागिता की।

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