संवेदना और शिल्प से सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं मीरा कृष्ण की कविताएँ

फेसबुक पर राजस्थान की मीरा कृष्ण की कविताएँ निरंतर अपनी संवेदना और शिल्प से सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। नारी के मनप्राण और उसके सहज जीवन का सुंदर रंग इनकी कविताओं के कैनवास पर समाया है। प्रस्तुत है इनसे राजीव कुमार झा की बातचीत…

परिचय :-
सरला सोनी “मीरा कृष्णा”
वरिष्ठ शिक्षक जोधपुर, राजस्थान

कृतियाँ :-
महकते पन्ने, शब्द-शब्द महक, क्षितिज की ओर, पथरीले तट पर, राज-दर-राज, चाँद अधूरा, विवान, काव्य-सृष्टि, सृजन अभिलाष, चिरंतन, सृजन सुगंध, शब्द स्पंदन, काव्य-धारा, तारूष, नारी तू अपराजिता, दूर कहीं जब दिन ढल जाए (साँझा काव्य संकलन) तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

दैनिक युगपक्ष सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएँ प्रकाशन समूहों द्वारा प्रशस्ति पत्र, सम्राट अशोक मानव कल्याण समिति द्वारा प्रशस्ति पत्र, अपराजिता नारी सम्मान, पुनीत माता-पिता सेवी सम्मान, पर्यावरण सेवी सम्मान, राजस्थान गौरव नारी सम्मान, काव्य मेघ सम्मान, अमृता प्रीतम मेमोरियल एवॉर्ड।

प्रश्न : आपकी काव्य संवेदना में नारी जीवन का यथार्थ अक्सर समाज के किसी द्वंद्व को उजागर करता है, इस प्रसंग में आप क्या कहना चाहेंगी ?

उत्तर : हम पुरुष-सत्तात्मक समाज में रहते हैं। नारी होने के नाते नारियों पर पुरुषों के प्रभुत्ववाद को मैंने क़रीब से महसूस किया है तथा मध्यम और निम्न वर्ग के जीवन को भी मैंने बहुत क़रीब से देखा है। जहां स्त्रियाँ अब भी पुरुष के प्रभुत्व और स्वयं को दोयम दर्जे की मान्यताओं को अपने जीवन की सच्चाई मानती है…माननी पड़ती है। स्त्री का अपना कोई दर्जा नहीं समाज की नज़रों में भी और स्वयं की नज़रों में भी। स्वयं के अस्तित्व और समाज की व्यवस्था के बीच खड़ी स्त्री हमेशा आपको जूझती हुई ही मिलेगी। ये स्वाभाविक है हमारे समाज में जहाँ स्त्री और पुरुष के लिए दोहरी मानसिकता है।

प्रश्न : हिंदी कविता का मूल स्वर जीवन को किस रूप में निरंतर रचने – गढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता रहा है?

उत्तर : पहली बात तो ये कि मैं स्वयं नहीं लिखती। मेरा मानना है कि अगर मैं लिख सकती तो बरसों से लिख रही होती। लेकिन मैंने पिछले 6-7 सालों से ही लिखना शुरू किया है तो नि:संदेह ईश्वर की इच्छा है और ईश्वर ही लिखते हैं मैं निमित्त मात्र हूँ और ईश्वरीय प्रेरणा से मैं प्रेम पृष्ठभूमि को अधिक आसानी से और डूबकर लिख पाती हूँ।

प्रश्न : अपने प्रिय कवियों – लेखकों के बारे में बताएँ?

उत्तर : मैं छोटे गाँव से हूँ और अत्याधुनिक पढ़े-लिखे परिवार से नहीं हूँ। मैंने स्नातक तक जो पाठ्यक्रम में पढ़ा वही मेरा साहित्य ज्ञान है। लेकिन पुस्तकों के स्थान पर टेलीविजन के कार्यक्रमों का प्रभाव अधिक पड़ा जिसमें “भारत एक खोज”, “मालगुडी डे’ज”, रामायण, महाभारत, हिन्दी सिनेमा की पटकथाएँ.., यही मेरा साहित्य प्रेम बना। मोहन राकेश सर का साहित्य मेरा पसंदीदा साहित्य है और महाकवि कालिदास के महाकाव्यों का हिन्दी अनुवाद पढ़ना अलौकिकता का अनुभव देता है। मैंने हाल ही में एक साल से ही पढ़ना शुरू किया है और मैं अगले जन्म में किताबी कीड़ा बनकर विश्व-साहित्य को पढ़ लेना चाहती हूँ।

प्रश्न : राजस्थान पारंपरिक संस्कृति का राज्य है, यहाँ के समाज के सुंदर जीवनतत्वों ने इसकी काव्य परंपरा को किस तरह प्रभावित किया ?

उत्तर : राजस्थान की संस्कृति की सुंदरता और शौर्य हर राजस्थानी की आत्मा में बसा होता है। अभावों और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कमाल की जीवटता हममें पाई जाती है। बेरंग उजाड़ धरती की प्रतिकूलता को हम रंगीन लिबास और हरे मन से पूरित कर देते हैं।
राजस्थानी साहित्य पढ़ने का सौभाग्य तो अधिक नहीं मिला पर राजस्थानी गीत और चलचित्र और रोज़मर्रा के जीवन में सुनी गई कहावतें गूढ़ अर्थ के साथ ही अपार सौंदर्य लिए हुए है जो स्वाभाविक रूप से प्रेरित करती है।

प्रश्न : आपका कविता लेखन की ओर कब कैसे झुकाव कायम हुआ?

उत्तर : मैं अंतर्मुखी व्यक्तित्व की हूँ और अंतर्मुखी लोग पढ़ते ज़्यादा हैं और सुनते ज़्यादा है। मैं कहना चाहते हुए भी स्वयं को व्यक्त नहीं कर पाती थी।इस तरह से एक घुटन ने मुझमें अपना घर बना लिया। गृहस्थी से अब थोड़ा समय निकाल पाती हूँ इसलिए वही घुटन शब्दों के ज़रिए रचनाओं में व्यक्त कर लेती हूँ।
घुटन नकारात्मक हो ये ज़रूरी नहीं…सौंदर्य को व्यक्त न कर पाना भी एक घुटन बन सकती है… यहाँ मैं नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की घुटन की बात कह रही हूँ। क़रीब सात साल से फ़ेसबुक पर शायरी और कविताएँ पढ़ते-पढ़ते मुझे लगा यही तो वो बातें हैं जो मैं भी कहना चाहती हूँ…और टूटी-फूटी लाइनों से लिखना शुरु किया…मित्र सूची के ज्ञानी लेखकों ने उन लाइनों के साथ मेरे लेखन को तराशा और मेरे फ़ेसबुक अकाउंट के लेखक मित्रों को पढ़ते-पढ़ते लिखने लगी।

प्रश्न : अपने बचपन घर परिवार शिक्षा के बारे में बताएँ?

उत्तर : मेरी माताजी कम पढ़ी हुई हैं और पिताजी सरकारी कर्मचारी रहे हैं।सामान्य मध्यम किंतु प्रगतिशील परिवार में प्रगतिशील विचारधारा वाले माहौल में पली-बढ़ी हूँ। दोनों परिवार (मायका और ससुराल) पढ़े-लिखे परिवारों की पंक्ति में आते हैं। सरकारी विद्यालय के ज्ञानी शिक्षकों की छत्रछाया में मेरी शिक्षा सम्पन्न हुई है।जैसा कि मैंने बताया कि मेरा पाठ्यक्रम ही मेरा साहित्य ज्ञान है…उस पाठ्यक्रम को मेरे शिक्षकों ने गागर में सागर की तरह हमें प्रदान किया। B.A, B.Ed मेरी शैक्षिक योग्यता है और मैं लगभग पच्चीस वर्षों से राजस्थान सरकार के अधीन शिक्षक पद पर कार्यरत हूँ।

प्रश्न : आज समाज के अच्छे माहौल में नारी जीवन की नयी विसंगतियाँ उजागर हो रही हैं। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?

उत्तर : आज का समाज नि:संदेह निरंतर प्रगतिपथ पर चलायमान है।स्त्रियों के संरक्षण के लिए समाज और संविधान दोनों कार्यरत है। इस संरक्षण ने नई परिस्थितियों को जन्म दिया..यथा बोलने, कपड़े पहनने और घर से बाहर जाने की स्थितियाँ अब पहले से अलग है। संबंध निभाने के दृष्टिकोण में भी बदलाव आया है…समाज के लिए ये बदलाव चुनौतीपूर्ण है। स्त्रियों को तथ्यात्मक तरीक़े से पुरुषों के बराबर लाने में समाज को अभी कई दशक लग जाएँगे। मेरा मानना है कि कई दशकों और सभ्यता का जामा पहन लेने के बाद भी ये विसंगतियाँ बरकरार रहेगी। जब तक हम ये ना समझ लें कि स्त्री हो या पुरुष समाज द्वारा नीयत कर्तव्य हमें निभाने ही चाहिए। जिस तरह मछली का समाज उड़ान भरने की आज़ादी नहीं दे सकता उसी तरह हर समाज के अपने नियम है…हमें अपने समाज के मुताबिक़ अपने को प्रगतिशील विचारधारा को साथ में लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

प्रश्न : कविता लेखन के अलावा अपनी अन्य अभिरुचियों के बारे में बताएँ?

उत्तर : कला जगत की सारी कलाएँ मेरी रुचि में शामिल है। पेंटिंग, संगीत, सिलाई-कढ़ाई-बुनाई, खाना बनाना, पढ़ना-लिखना, नाचना (हालाँकि नाचना मुझे बिल्कुल नहीं आता..पर पसंद बहुत है) इसके अलावा ड्राइविंग, स्विमिंग और आउटिंग ये सब भी पसंद है।

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