घटनाओं को निष्पक्ष नजरिये से देखेने की जरूरत

राज कुमार गुप्त

मैं हर घटना को भीड़ का हिस्सा बनकर भीड़ की दृष्टि से नहीं देखता। इसके बजाए भीड़ से बहुत दूर हटकर घटना को एक अलग दृष्टिकोण से देखता हूं और आज जिस विषय को उठा रहा हूँ वो सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि इतिहास भी है और वर्तमान भी, जो कि बंगाल में पिछले 44 बर्षो से चला आ रहा है और पता नहीं कब तक राज्यवासी इसे झेलने को अभिशप्त हैं।

बंगाल में रह रहे सभी वरिष्ठ एवं युवा नागरिक जो वामफ्रंट से लेकर आज तक कि वर्तमान सरकार को देख रहे हैं, सभी ने यह जरूर महसूस किया होगा की बंगाल में इस दौरान की सभी राज्य सरकारों ने केंद्र की सभी सरकारों के साथ वो चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, यूपीए की रही हो या एनडीए की किसी के भी साथ बंगाल की तत्कालीन राज्य सरकार ने कभी भी तालमेल नहीं बैठाया!

एकाध अपवाद को छोड़ दीजिए और इन दलों की राजनीतिक लड़ाई का खामियाजा राज्य की जनता को लगातार भुगतना पड़ रहा है। कभी भी केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ राज्य की जनता को नहीं मिल पाता है या फिर काफी देर से एकाध का मिलता है। नई कल-कारखानों को तो छोड़िए, पुराने ही एक-एक कर बन्द होते जाते हैं। फिर भी यहाँ की बहुसंख्यक आबादी लगता है इसी से खुश है पिछले 44 बरसों से! कारण इन्हीं सरकारों को राज्य की बहुसंख्यक आबादी लगातार सत्ता की बागडोर देती रही है।

जनता द्वारा लगातार किसी पार्टी को सत्ता में लाना कोई बुरी बात नहीं है, बशर्ते पार्टी राज्य या देश के लिए सही काम कर रही हो। उदाहरण के तौर पर उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार को ही लीजिए, देश के सभी राज्यों को उड़ीसा की वर्तमान नवीन पटनायक की सरकार से जो कि लगातार चौथी बार शासन में है, सीख लेनी चाहिए।

केंद्र में जिस किसी भी विचारधारा की सरकार हो, उनसे तालमेल बैठाकर राज्य का विकाश और राज्य की जनता को खुशहाल बनाना ही इनका एकमात्र लक्ष्य रहा है। इन्हें कभी भी मीडिया में छाए रहने के लिए बकवास करने की जरूरत नहीं पड़ती। राज्य में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग केंद्र सरकार की सहायता से चुपचाप करते रहते हैं। इन्हें कभी भी किसी भी केंद्र सरकार से बार-बार शिकायत करते हुए नहीं सुना गया।

जबकि बंगाल में इतने सालों से सभी राज्य सरकारें केंद सरकार से सिर्फ सास बहू की तरह लड़ कर पूरे परिवार अर्थात राज्य का कबाड़ा कर रहें हैं और बहुसंख्यक आबादी ‘हम बंगाल के भद्र लोग हैं’ कि भावना के वशीभूत चादर ताने सो रहे हैं और मुगालते में जी रहे हैं?

मैं तो बचपन से ही बंगाल के सत्ताधारी दलों का एक ही बात सुनते आ रहा हूँ कि केन्द्र हमें नहीं दे रहा है या सौतेला व्यवहार कर रहा है। यहाँ छोटी से छोटी घटनाओं को भी तिल का ताड़ बनाया जाता है जबकि बड़ी घटनाओं पर चुप्पी साध ली जाती है!
हम सभी लोगों को देश या राज्य में घट रही घटनाओं को निष्पक्ष नजरिये से देखेने की कोशिश करनी होगी, तभी सब समझ में आएगा।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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